सब बर्बाद हुआ किसलिए ( शहंशाह की मौज ) डॉ लोक सेतिया
शहंशाह को मज़ाक पसंद है ख़ास कर जिनको पसंद नहीं करते उनका उपहास करना किसी को ज़ख़्मी कर उस के घाव पर मरहम लगाने के नाम पर नमक छिड़कना उनको लगता है शासन करने का मज़ा इसी में है। उनके सभी झूठ देश की जनता के साथ गंदे मज़ाक ही होते हैं और कुछ भी नहीं सत्ता का नशा चढ़ता है तो मदहोशी की नहीं सुरूर की बात होती है। तोडना फोड़ना मनचाहे ढंग से मिटाना अहंकार गरूर की बात होती है। शासकों को सचिव से भरोसेमंद और कोई नहीं लगते हैं सचिव की हैसियत सचिवालय से बढ़कर होती है और हर सत्ताधारी का सचिव उसको भगवान से बढ़कर लगता है। शासन करते चुनाव जीतते बहुमत हासिल करते समय का पता ही नहीं चला तो इक दिन शहंशाह को सचिव ने अनुरोध किया उनकी जीवन कथा लिखनी ज़रूरी है। शहंशाह खुद नहीं लिख सकते सचिव जानते हैं सरकारी बाबू भी ये काम नहीं कर सकते जिन कलम वालों को शहंशाह ने खरीदा हुआ है उनकी लिखी जीवनी पर दुनिया यकीन ही नहीं करेगी। काफी सोच विचार कर इक निर्भीक साहित्यकार का चयन किया गया खोजबीन कर मिल ही गया कोई। शर्त थी लिखने वाले की यही कि जनाब को अपनी जीवन कथा लिखवानी है तो लिखने वाले को सच सच बताना होगा और उसकी किसी बात से खफ़ा बिल्कुल नहीं होना बल्कि सही आलोचना करने पार ठीक उसी तरह तालियां बजानी होंगीं जैसे लोग प्रशंसक उनके झूठ सुनकर बजाते रहे हैं । साहित्यकार ने बताया लोग आपको जैसा समझते हैं अगर आप साबित कर सकते हैं कि वैसे नहीं हैं और आपकी जीवनी का हर अध्याय दुनिया को अचरज में डाल कर चौंकाता हो तब कौतूहलवश सभी पढ़ना चाहेंगे अन्यथा किसी सरकारी लायब्रेरी की अलमारी में आत्मकथा दम तोड़ती रहती है। शहंशाह हमेशा सन्यासी होने की बात कहते रहे हैं सोचा अपने तमाम झूठों पर पर्दा डालने को इस एक बात को सच साबित करना उचित होगा। जीवन कथा उसी अवसर पर छपवाना तय किया गया क्योंकि जब सब त्याग कर जा रहे हों तब खोना क्या पाना क्या। शहंशाह की बात उन्हीं के शब्दों में ध्यान पूर्वक पढ़िए।
मैंने रिश्ते नाते सब छोड़ दिए थे परिवार पत्नी भाई मां सबको त्याग कर दर दर भटकता रहा भीख मांग कर गुज़र बसर करता रहा। किस्मत से मुझे सिकंदर बना दिया नासमझ लोगों ने ख़राबहाल बंदे के ख़्वाब बर्बादी को ख़त्म कर खानाबादी लाने की बात पर भरोसा कर अपनी बदनसीबी को खुद बुला लिया। भटकते भटकते मुझे आभास हुआ था कि लोग भौतिकता के जाल में धन दौलत मोह माया में राम नाम जपना भूल गए हैं। आधुनिक शिक्षा ने उनको सही मार्ग से भटका दिया है तभी जिस को खुद अपनी मंज़िल की खबर नहीं उस से राह पूछने की मूर्खता करने लगे थे। राजनेताओं से जनता की भलाई की उम्मीद करना बिल्ली से दूध की रखवाली जैसा काम था। चौकीदार बनकर चोरी करना नेताओं की फ़ितरत होती है। मैंने बहुत कमाल के तौर तरीके से जो कुछ भी पहले शासक बनाते रहे उन सब संगठनों संस्थाओं को मर्यादाओं को एक एक कर छिन्न भिन्न कर दिया और इस ढंग से टुकड़े टुकड़े कर दिया जिस को कोई फिर जोड़ नहीं सकेगा। देश समाज बर्बाद हुआ तो लोग कब तक आबाद रहेंगे उनको भी तबाह होना ही होगा धीरे धीरे। लेकिन ऐसे में उनको अपनी बर्बादी पर जश्न मनाने की आदत बनानी पड़ेगी और समझना होगा जब शहंशाह और सिकंदर ख़ाली हाथ दुनिया से रुख़सत होते हैं तो उनको पैसा और साज़ो-सामान की चिंता छोड़ राम नाम जपने और खाली पेट भजन कीर्तन करने का महत्व समझना होगा।
लिखने वाला समझ गया उपरवाले की माया है उस ने किसी को दुनिया बसाने को भेजा होगा शुरआत में कभी अब जब लगा कि ये दुनिया किसी काम की नहीं तो बर्बाद करने को इक शहंशाह को भेज दिया।
वास्तव में जब तक लोग ऊपरवाले ईश्वर को अपना विधाता समझते रहे उसको भी दुनिया की फ़िक्र होती थी लेकिन जब लोग खुद भगवान बनने लगे अपना भगवान यहीं धरती पर किसी को बनाने लगे तब दुनिया का अच्छा रहना संभव नहीं था। असली भगवान से नकली भगवान की तुलना नहीं की जा सकती है। हुआ ऐसा कि लोगों ने नकली मुखौटे लगाकर भेस बदलने वाले बहरूपिए को असली समझ लिया और उस की चिकनी चुपड़ी बातों में आकर अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने का कार्य किया। गांव गांव शहर शहर गली गली चेहरा बदल भगवान बनकर लोगों की भावनाओं से खेल बहरूपिए अपना पेट भरते थे उनको महनत करना नहीं आता था मुफ्त भीख मांगने की आदत होती थी। शहंशाह ने शुरुआत नकली शासक बनकर नकली लालकिला बना भाषण देने से ही की थी।
काठ की हांडी बार बार चढ़ाने का जादू पहली बार देखा है दुनिया ने। अब भला इस से बढ़कर खराब हाल क्या होंगे कि लोग अपने क़ातिल को मसीहा समझते हैं उसकी चाटुकरिता करते करते वास्तिक भगवान को भुलाकर उसकी भक्ति करते हैं। लोग मनोरंजन और खेल तमाशों से इस हद तक बहलने लगे हैं कि उनको मालूम नहीं पड़ता कि कब कोई बहरूपिया रूप बदल कर उनको तमाशा दिखलाते दिखलाते तमाशाई से तमाशा बना गया है। उसकी तरह झोला उठाकर सन्यासी बनना सबके बस की बात नहीं है। लेकिन शहंशाह बने बहरूपिए की ज़िद है सबको लोभ मोह माया छोड़ सन्यासी बनाने की। जीवनी लेखक ने जैसा कहा शहंशाह की कथा ने सबको सकते में डाल दिया है जब जनाब जाने किधर चले गए हैं। पर लिखने वाला स्तब्ध है कि असलियत जानकर भी लोग नाराज़ नहीं है उस नकली भगवान बने बहरूपिए को उसके बनवाये मंदिरों में मूर्तियां लगाकर आरती पूजा करने लगे हैं। उसकी लीला वही जाने कहते हैं फिल्म वाले इक और नई फ़िल्म बनाने पर विचार कर रहे हैं। बदलता कुछ नहीं नाम चेहरे बदलते रहते हैं इसी को राजनीति और लोकतंत्र कहते हैं।
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