जनसेवा का अजब कारोबार ( गंदा है पर धंधा है ) डॉ लोक सेतिया
सभी चाहते हैं इस गंगा में स्नान करना , स्थानीय निकाय के चुनाव घोषित होते ही गली गली सड़क पर इश्तिहार बैनर लगने लगे हैं। खुद को ईमानदार और मिलनसार ही नहीं सबकी सहायता को रात दिन तैयार रहने वाला बताकर अपनी सेवा का अवसर मांगते हैं। साल भर पहले से अपना गुणगान खुद पैसे खर्च कर करने लगते हैं। लाखों की बात नहीं करोड़ों तक चुनाव पर खर्च करना चाहते हैं जो उनको समाज की देश की छोड़ो अपने शहर गली बस्ती की परवाह होती तो इतना पैसा लगाकर कई आस पास की समस्याओं का समाधान कर सकते थे मगर कभी नहीं करते। किसी संस्था को थोड़ा पैसा देते हैं अगर तो पहले हिसाब लगाते हैं फ़ायदा क्या होगा नाम शोहरत के साथ चुनावी गणित साधते हैं। कुछ साल पहले इक दोस्त के बड़े भाई टिकट हासिल करने को बड़े नेता को बुलाकर सभा आयोजित कर रहे थे। मुझसे मिलने आये निमंत्रण देने तो उनके छोटे भाई की आर्थिक दशा और स्वास्थ्य की हालत को लेकर चर्चा हुई। मैंने कहा आप इस पर लाखों खर्च करते हैं क्या भाई की सहायता नहीं कर सकते बल्कि उन्होंने बताया था भाई बहन और अन्य रिश्तेदार खराब हालत को देख मिलते तक नहीं शायद डरते हैं कुछ उधार नहीं मांग ले। जबकि उन्होंने नहीं मांगी आर्थिक सहायता किसी से कभी। जवाब मिला छोटे भाई की सहायता कर सकता हूं क्या आप मेरा पैसा सूद समेत लौटाने की ज़िम्मेदारी लेते हैं। मैंने कहा आपके भाई ने नहीं कहा मुझसे कोई क़र्ज़ दिलाने को ये तो मैंने आपसी परिवारिक संबंध को देख कर सलाह दी थी , लेकिन जिस चुनाव की टिकट की दावेदारी कर रहे हैं किसी ने उस टिकट की गारंटी दी है और टिकट मिल गई तो भी जीतने की कोई गारंटी देता है। क्या आप इक जुआ नहीं खेल रहे हैं इस राजनीति के कारोबार में किसी का कोई भरोसा नहीं है। आपसे जितना चंदा मांग रहे हैं दल वाले कोई उस से अधिक दे दे तो टिकट उसको मिल जाएगी।
आज की बात पर आते हैं जितने भी लोग चुनाव लड़ना चाहते हैं किसी राजनीतिक दल में शामिल होकर खुद को बिना विचारधारा की बात सोचे बंधक रखने को तैयार हैं। जब जिस को भी जीत कर कुर्सी मिली तब उसकी निष्ठा उसकी वफ़ादारी जनता के लिए नहीं उस दल के और नेताओं के लिए होगी। समाज सेवा जनता की भलाई की बात पीछे छूट जाएगी और बंदरबांट का खेल शुरू हो जाएगा। कुर्सी पर बैठ कर हर काम में मुनाफ़े में हिस्सा लेंगे कर्मचारी अधिकारी ठेकेदार मिलकर। कितनी संस्थाएं सामाजिक बदलाव से लेकर सफाई पर्यावरण नशा का कारोबार बंद करवाने की आड़ में खूब पैसा बना रहे हैं। संस्थाओं एनजीओ के नाम पर शान से गुलछर्रे उड़ाते हैं। यहां धर्मराज कहलाने वाले सत्ता पाने से पहले खुद अपना ईमान बेचते हैं और बहुत ऐसे लोग अपनी जाति बिरादरी को बंधक या गिरवी रखने की कोशिश करते हैं। अभी सबको फेसबुक व्हाट्सएप्प पर संदेश भेजते हैं मगर किसी से पहचान नहीं है फोन पर बात नहीं करते संदेश का जवाब नहीं देते कोई पूछे कौन हैं क्या जानते हैं मुझे। पता चला आप सभी से संपर्क करने को ठेके पर आई टी सैल बना लिया है कभी आप को ज़रूरत हो तब आई टी सैल किस काम आएगा उसको जिस काम का अनुबंध मिला चुनाव तक रहेगा।
दौलत शोहरत ताकत पाने की ललक ने कितने लोगों को स्वार्थ में अंधा कर पागल बना दिया है । कितने ऐसे लोग जीवन भर भटकते रहे मगर कभी इधर कभी उधर के बनकर भी खाली हाथ चले गए दुनिया से। जाना सबको ख़ाली हाथ है बस कुछ सार्थक वास्तविक समाजसेवा करने वालों का जीना सार्थक हो जाता हैं और मर कर भी उनकी सच्चाई ईमानदारी बाक़ी रहती है। लेकिन कई ऐसे होते हैं जिनको सत्ता पद मिल भी जाते हैं तब भी उनकी लूट की भ्र्ष्टाचार की दौलत और शानो-शौकत उनके किरदार को ऊंचा नहीं छोटा बना देती है उनकी असलियत सामने आती अवश्य है हर कोई जानता है उनके महल गरीबों की लाशों पर बने हैं उनकी अवैध संपत्ति काली कमाई कारनामे सभी समझते हैं। ऊपरवाला भी हिसाब लिखता है।
ये सच जिनको उजागर करना चाहिए
जब देखते हैं उनका भाईचारा नेताओं अधिकारियों और प्रशासनिक कर्मचारियों से
है और उनके वीडियो किसी का विज्ञापन किसी अधिकारी की चाटुकारिता उसकी
महिमा का बखान करने पर केंद्रित हैं तब निराशा होती है। अपना कर्तव्य
ईमानदारी से निष्पक्षता से निभाना है तो देश जनता समाज की सच्चाई सामने
लानी ही होगी।
भटक गए हैं तो अभी भी सही राह पर चल सकते हैं अन्यथा झूठ को सच साबित करना कोई महान कार्य नहीं है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें