दिसंबर 02, 2021

कांटो का गुलशन है ये ( सोशल मीडिया की बात ) डॉ लोक सेतिया

   कांटो का गुलशन है ये ( सोशल मीडिया की बात ) डॉ लोक सेतिया 

मिले न फूल तो कांटों से दोस्ती कर ली , इसी तरह से बसर हमने ज़िंदगी कर ली। कैफ़ी आज़मी के अल्फ़ाज़ मुहम्मद रफ़ी की आवाज़ अनोखी रात फिल्म का गीत नायक परीक्षित साहनी का किरदार असित सेन का निर्देशन सब पर्दे पर लाजवाब लगता है वास्तविक ज़िंदगी में बात अलग होती है। बशीर बद्र जी की बात सही लगती है , भूल शायद बहुत बड़ी कर ली , दिल ने दुनिया से दोस्ती कर ली। सोशल मीडिया पर चाहा था अच्छे सच्चे दोस्त की तलाश पूरी हो जाए शायद हुआ ऐसा कि दुश्मनी शब्द भी छोटा लगता है। घर से चले थे हम तो ख़ुशी की तलाश में ग़म राह में खड़े थे वही साथ हो लिए। हर कोई फेसबुक व्हाट्सएप्प को कचरा डालने की जगह समझता है मन की बात कम होती है अनबन की ज़्यादा। समय की बर्बादी होती है हासिल इतनी उलझन कि समझना मुश्किल हो जाता है सच क्या झूठ क्या , अफ़वाह का बाज़ार  सा है घबराहट होने लगती है लगता कोई पागलखाना है जिस में सभी मनोरोगी नासमझ फज़ूल की बकझक अजीब सी उल्टी सीधी हरकतें कर ख़ुशी से नाचते झूमते हैं। कोई पागल खुद को पागल नहीं मानता सबको लगता है बाक़ी दुनिया पागल है। खिलौना जान कर तुम तो मेरा दिल तोड़ जाते हो फ़िल्मी नायक का पागलपन ठीक करने को अमीर बाप बाज़ार से खिलौने की तरह नाचने वाली बुला लाते हैं। सोशल मीडिया के पागलपन का कोई ईलाज मुमकिन नहीं है इश्क़ के मरीज़ की तरह मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की , फेसबुकिया इश्क़ पर लानत खुदा की। इस नामुराद सोशल मीडिया का नशा उन पर और गहरा चढ़ता है जिनको शराब अफ़ीम चरस गांजा सिगरेट जैसे नाम से भी परहेज़ है , तौबा तौबा क्या कहते हैं भाई हम शाकाहारी धर्म संस्कार वाले नशे की बात करना गुनाह है। नाम लिया हुआ है गुरूजी के दर्शन करते हैं निहाल हो जाते हैं। 
 
सोशल मीडिया जानने समझने की जगह नहीं कोई मैदान ए जंग बन गया है भाई बंधु दोस्त रिश्तेदार सब को छोड़ सकते हैं किसी की चाटुकारिता अंधभक्ति कभी नहीं छोड़ सकते। जिनकी महिमा का गुणगान करते हैं उनके सौ खून हज़ार गुनाह करोड़ झूठ माफ़ किये जा सकते हैं उनकी आलोचना करने वालों का सच माफ़ी के काबिल नहीं उसकी सज़ा ज़रूरी है। क्या करें खुदा बना लिया जिसको जीहज़ूरी करना मज़बूरी है। इस सोशल मीडिया ने बढ़ाई आपस में दूरी है नफरत की खाई रास्ते में आई है चोर पुलिस ने मिलकर शपथ उठाई है। जो ईमानदार कहलाये सबसे बड़ा हरजाई है अधिकारी नेता माई बाप हैं गरीब जनता सबकी भौजाई है। अजब मुसीबत है गले पड़ा ढोल है बजाना पड़ता है स्टेटस कुछ भी नहीं स्टेटस बढ़ाना है तो बिना कारण मुस्कुराना पड़ता है बिना सोचे समझे बगैर जाने पढ़े बिना लाइक दबाना पड़ता है। कमेंट क्या लिखना समझते नहीं स्माइली से काम चलाना पड़ता है। फुर्सत नहीं काम कितने कोई करे मसरूफ़ हैं समझाना पड़ता है दिल नहीं लगता दुनिया में स्मार्ट फोन पर घंटों बैठ वक़्त बिताना पड़ता है। बस मज़बूरी हो पेट भरने को खाना और वाशरूम जाकर नहाना पड़ता है रिचार्ज करवाना मज़बूरी है वाई फाई लगवाना पड़ता है। 
 
हम आज़ाद नहीं गुलाम बन गए हैं सच कहें तो कागज़ी पहलवान बन गए हैं। कठपुतली सभी नादान इंसान बन गए हैं अजनबी लोग भाईजान मेहरबान बन गए हैं। चाय की प्याली के हम तूफ़ान बन गए हैं। अभिशाप मिला है हमको नासमझी को समझदारी मानते हैं आदमी थे पायदान बन गए हैं । आखिर में इक ग़ज़ल के बोल हैं।   
 

कोई समझेगा क्या राज़ ए गुलशन , जब तक उलझे न कांटों से दामन। 

गुल तो गुल खार तक चुन लिए हैं , फिर भी खाली है गुलचीं का दामन। 

   फ़ना निज़ामी कानपुरी ( शायर )

 

 

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