तुम्हारे अश्क़ मोती हैं ( मेरा लेखन ) डॉ लोक सेतिया
सभी
लोग अपनी पुस्तक के पहले पन्ने पर अपने बारे में लेखन और किताब की बात
कहते हैं। मुझे लिखते हुए चालीस साल और अख़बार मैगज़ीन में रचनाएं छपते तीस
साल से अधिक समय हो चुका है देश भर में पचास से अधिक पत्र पत्रिकाओं में
हज़ारों रचनाएं छपी हैं । ब्लॉग पर ये 1550 से अधिक पोस्ट हैं दस साल से
नियमित लिख रहा हूं और 320000 से अधिक संख्या अभी तक पोस्ट की पढ़ने वालों
की है।
किताब छपवाने की हसरत रही है और काफी रचनाओं का चयन ग़ज़ल , कविता- नज़्म ,
व्यंग्य , कहानी , हास-परिहास की रचनाओं पांच हिस्सों में किया गया है जो
इसी ब्लॉग पर लेबल से समझ सकते हैं। लेखक दोस्त और पहचान वाले किताब छपवाने
पर चर्चा करते रहे हैं। हिंदी साहित्य को लेकर ये कड़वा सच कभी खुलकर सामने
नहीं आया है कि हर किसी के दुःख दर्द की बात लिखने वाले खुद अपने अश्क़
किसी को नहीं दिखाते। तुम्हारे अश्क़ मोती हैं नहीं ये जानता कोई। क्या नाम
दिया जाये इस को कि साहित्य का सृजन करने वाले को रचना छपने पर इतना भी
उचित मेहनताना नहीं मिलता जिस से उसका पेट भर सके। हर कोई उस से काम लेना
चाहता है बिना कीमत चुकाए। मुझे तभी सालों लगे समझने में कि खुद जेब से
खर्च कर किताब छपवा उपहार में उनको बांटना जो मुमकिन है पढ़ना भी नहीं चाहते
समझना तो दूर की बात है क्या हासिल होगा। मगर पाठक को पढ़ने को मिलना चाहिए
ये सोच कर ब्लॉग पर पब्लिश तमाम जगह छपी रचनाओं को पुस्तक रूप में
सुरक्षित रखना ज़रूरी लगता है। कभी किसी को अपने लेखन के कॉपीराइट नहीं दिया
है अब कानून भी अनुमति नहीं देता है। ये घोषणा करना चाहता हूं मेरा लेखक
मौलिक है और उस पर केवल मेरा लेखक डॉ लोक सेतिया का ही संपूर्ण अधिकार
सुरक्षित है पंजीकृत है और रहेगा हमेशा। 70 साल की आयु में ये नई शुरआत है
मुझे कुछ न कुछ करते रहना पसंद है।
मैंने साहित्य पढ़ा भी बहुत कम है कुछ किताबें गिनती की और नियमित कई साल
तक हिंदी के अख़बार के संपादकीय पन्ने और कुछ मैगज़ीन पढ़ने से समझा है
अधिकांश खुद ज़िंदगी की किताब से पढ़ा समझा है। केवल ग़ज़ल के बारे खतोकिताबत
से इसलाह मिली है कोई दो साल तक आर पी महरिष जी से। ग़ज़ल से इश्क़ है व्यंग्य
सामाजिक विसंगतियों और आडंबर की बातों से चिंतन मनन के कारण लिखने पड़े
हैं। कहानियां ज़िंदगी की सच्चाई है और कविताएं मन की गहराई की भावना को
अभिव्यक्त करने का माध्यम। लिखना मेरे लिए ज़िंदा रहने को सांस लेने जैसा है
बिना लिखे जीना संभव ही नहीं है। लिखना मेरा जूनून है मेरी ज़रूरत भी है और
मैंने इसको ईबादत की तरह समझा है।
मुझे चलना पसंद है ठहरना नहीं
कभी
कभी खुद से अपने बारे चर्चा करता हूं। आत्मचिंतन कह सकते हैं। मुझमें
रत्ती भर भी नफरत नहीं है किसी के लिए भी , उनके लिए भी प्यार हमदर्दी है
जिनकी आलोचना करना पड़ती है सच कहने को। कोई व्यक्तिगत भावना दोस्ती की न
विरोध की मन में रहती है। कुछ अधिक नहीं पढ़ा है मैंने जीवन को जाना समझा है
और उसी से सीखा है। किताबों से जितना मिला समझने की कोशिश की है विवेचना
की है। बहुत थोड़ा पढ़ा है शायद लिखा उस से बढ़कर है विवेकशीलता का दामन कभी
छोड़ा नहीं है और खुद को कभी मुकम्मल नहीं समझा है। क्यों है नहीं जानता पर
इक प्यार का इंसानियत का भाईचारे का संवेदना का कोई सागर मेरे भीतर भरा हुआ
है। बचपन में जिन दो लोगों से समझा जीवन का अर्थ मुमकिन है उन्हीं से मिला
ये प्यार का अमृत कलश। मां और दादाजी से पाया है थोड़ा बहुत उन में भरा हुआ
था कितना प्यार अपनापन और सदभावना का अथाह समंदर। दुनिया ने मुझे हर रोज़
ज़हर दिया पीने को और पीकर भी मुझ पर विष का कोई असर हुआ नहीं मेरे भीतर के
अमृत से ज़हर भी अमृत होता गया। और जिनको मैंने प्यार का मधुर अमृत कलश भर
कर दिया उनके भीतर जाने पर उनके अंदर के विष से वो भी अपना असर खो बैठा।
मेरी कोई मंज़िल नहीं है कुछ हासिल नहीं करना है मुझे लगता है मेरे जीवन
का मकसद यही है बिना किसी से दोस्ती दुश्मनी समाज और देश की वास्तविकता को
सामने रखना। समाज का आईना बनकर जीना। भौतिक वस्तुओं की चाहत नहीं रही अधिक
बस जीवन यापन को ज़रूरी पास हो इतना बहुत है। सुःख दुःख ज़िंदगी के हिस्सा
हैं कितने रंग हैं बेरंग ज़िंदगी की चाह करना या सब गुलाबी फूल खुशबू और
सदाबहार मौसम किसी को मिले भी तो उसकी कीमत नहीं समझ आएगी। हंसना रोना खोना
पाना ये कुदरत का सिलसिला है चलता रहता है। लोग मिलते हैं बिछुड़ते हैं राह
बदलती हैं कारवां बनते बिगड़ते हैं हमको आगे बढ़ना होता है कोई भी पल जाता
है फिर लौटकर वापस नहीं आता है ये स्वीकार करना होता है। जो कल बीता उनको
लेकर चिंता करने से क्या होगा और भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है नहीं
मालूम फिर जो पल आज है अभी है उसी को अपनाना है जीना है सार्थक जीवन बनाने
को। कितने वर्ष की ज़िंदगी का कोई हासिल नहीं है जितनी मिली उसको कितना जीया
ये ज़रूरी है।
लोगों से अच्छे खराब होने का प्रमाणपत्र नहीं चाहता हूं खुद अपनी नज़र
में अपने को आंखे मिलाकर देख पाऊं तो बड़ी बात है। मगर यही कठिन है। मैली
चादर है चुनरी में दाग़ है और अपना मन जानता है क्या हूं क्या होने का दम
भरता हूं। वास्तविक उलझन भगवान से जाकर सामना करने की नहीं हैं अपने आप से
मन से अंतरात्मा से नज़र मिलाने की बात महत्वपूर्ण है। और अब यही कर रहा
हूं। मैंने खुद को कभी भी बड़ा नहीं समझा है बल्कि बचपन से जवानी तक कुछ हद
तक हीनभावना का शिकार रहा हूं। कारण कभी मुझे समझ नहीं आया क्यों हर किसी
ने मुझे छोटा होने अपने बड़ा होने और नीचा दिखाने की कोशिश की है। बहुत कम
लोग मिले हैं जिन्होंने मेरे साथ आदर प्यार का व्यवहार किया है। जाने कैसे
मैंने अपना साहस खोया नहीं और भीतर से टूटने से बचाये रखा खुद को। मुझे कभी
किसी ने बढ़ावा देने साहस बढ़ाने को शायद इक शब्द भी नहीं कहा होगा हां मुझे
नाकाबिल बताने वाले तमाम लोग थे। मुझे किसी को नीचा दिखाना किसी का
तिरस्कार करना नहीं आया और नफरत मेरे अंदर कभी किसी के लिए नहीं रही है।
ऐसा दोस्त कोई नहीं मिला जो मुझे अपना समझता मुझे जानता पहचानता और साथ
देता। अकेला चलना कठिन था मगर चलता रहा रुका नहीं कभी भी।
जब भी मुझे निराशा और परेशानी ने घेरा तब मुझे इस से बाहर निकलने को संगीत और लेखन ने ही बचाया और मज़बूत होना सिखाया है। अपनी सभी समस्याओं परेशानियों का समाधान मुझे ग़ज़ल गीत किताब पढ़ने से हासिल हुआ है। इंसान हूं दुःख दर्द से घबराता भी रहा मगर जाने क्यों अपने ग़म भी मुझे अच्छे लगते रहे हैं ग़म से भागना नहीं चाहा ग़म से भी रिश्ता निभाया है। ग़म को मैंने दौलत समझ कर अपने पास छिपाकर रखा है हर किसी अपने ग़म बताये नहीं। इक कमज़ोरी है आंसू छलक आते हैं ज़रा सी बात पर हर जगह मुस्कुराना क्या ज़रूरी है कभी ऐसा हुआ कि हंसने की कोशिश में पलकें भीग जाती हैं। अपने आप को पहचानता हूं और अब तन्हाई अकेलापन मुझे अच्छा लगता है उन महफिलों से जिन में हर कोई अपने चेहरे पर सच्चाई भलेमानस की नकाब लगाए इस ताक में रहता है कि कब अवसर मिले और अपनी असलियत दिखला दे। ये दुनिया और उसकी रौनक मुझे अपनी नहीं लगती हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात मुझे बचपन से दोस्ती की चाहत रही है। बहुत दोस्त बनाए हैं साथ दोस्तों से कम रहा है बस इक सच्चे दोस्त की तलाश रही है जो मुझे समझता भी और जैसा हूं वैसा अपनाता भी शायद कहीं है कोई कभी मिलेगा भरोसा है या सपना हो सकता है। ज़िंदगी ने जितना दिया बहुत है।
जब भी मुझे निराशा और परेशानी ने घेरा तब मुझे इस से बाहर निकलने को संगीत और लेखन ने ही बचाया और मज़बूत होना सिखाया है। अपनी सभी समस्याओं परेशानियों का समाधान मुझे ग़ज़ल गीत किताब पढ़ने से हासिल हुआ है। इंसान हूं दुःख दर्द से घबराता भी रहा मगर जाने क्यों अपने ग़म भी मुझे अच्छे लगते रहे हैं ग़म से भागना नहीं चाहा ग़म से भी रिश्ता निभाया है। ग़म को मैंने दौलत समझ कर अपने पास छिपाकर रखा है हर किसी अपने ग़म बताये नहीं। इक कमज़ोरी है आंसू छलक आते हैं ज़रा सी बात पर हर जगह मुस्कुराना क्या ज़रूरी है कभी ऐसा हुआ कि हंसने की कोशिश में पलकें भीग जाती हैं। अपने आप को पहचानता हूं और अब तन्हाई अकेलापन मुझे अच्छा लगता है उन महफिलों से जिन में हर कोई अपने चेहरे पर सच्चाई भलेमानस की नकाब लगाए इस ताक में रहता है कि कब अवसर मिले और अपनी असलियत दिखला दे। ये दुनिया और उसकी रौनक मुझे अपनी नहीं लगती हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात मुझे बचपन से दोस्ती की चाहत रही है। बहुत दोस्त बनाए हैं साथ दोस्तों से कम रहा है बस इक सच्चे दोस्त की तलाश रही है जो मुझे समझता भी और जैसा हूं वैसा अपनाता भी शायद कहीं है कोई कभी मिलेगा भरोसा है या सपना हो सकता है। ज़िंदगी ने जितना दिया बहुत है।
फ़लसफ़ा - ए - ज़िंदगी ( अफ़साना बयां करती ग़ज़ल और नज़्म )
( सभी ग़ज़ल से प्यार करने वाले दोस्तों और साहित्य पढ़ने में रुचि रखने वाले बंधुओं को जानकार ख़ुशी होगी कि मेरी पहली पुस्तक ग़ज़ल एवं नज़्म की 151 रचनाओं की आपको पढ़ने को उपलब्ध करवा दी जाएगी।
किताब की सिमित प्रतियां लागत मूल्य पर भेजी जा सकती हैं अथवा प्रकाशक से खरीद सकते है।
फोन - 9992040688
पर मुझसे बात कर मंगवा सकते हैं।
विश्वास है आपको पसंद आएंगी मेरी चुनिंदा रचनाएं शामिल हैं।
डॉ लोक सेतिया। )
डॉ लोक सेतिया
एस सी एफ - 30
मॉडल टाउन ,
फतेहाबाद ,
हरियाणा - 125050
मोबाइल नंबर - 9416792330
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http://blog.loksetia.com
Email:- drloksetia@gmail.com
अपनी
ग़ज़ल- नज़्म को यूट्यूब चैनल पर अंदाज़-ए -ग़ज़ल नाम से बनाकर कोशिश की है अधिक
चाहने वालों तक पहुंचने की कुछ महीने पहले ही। लिंक नीचे दिया है।
https://youtube.com/channel/UC5fgxqiYhBth2eRtsQF7oDw
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