सितंबर 11, 2021

रौशन सितारों के घने अंधेरे ( पीतल की चमक ) डॉ लोक सेतिया

 रौशन सितारों के घने अंधेरे ( पीतल की चमक ) डॉ लोक सेतिया

बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी। शुरआत कल रात के तथाकथित शानदार शुक्रवार केबीसी एपिसोड की बात से करते हैं। सामान्य लोग ख़ास समझे जाने वाले लोग यहां भी हैं चार दिन आपके एक दिन उनके अपने वर्ग के लिए। सामान्य वर्ग कोशिश करता है सालों साल किस्मत से पहुंचता है खेल का खिलाड़ी बन कर शहंशाह के सामने और तलवे चाटने तक कुछ भी करता है बड़ी शख़्सियत से मिलने को समझता है खुदाई मिल गई लेकिन उच्च वर्ग वाले शानदार ढंग से बुलाया जाता है सब अलग भव्य दिखाई देता है। ये माजरा क्या है दो महमान आये ख़ास मकसद से पैसा पाने केबीसी खेल से बड़े लोग बड़े इरादे। फरहा जी को इक छोटे बच्चे को करोड़ों रूपये की दवा बस कुछ दिन में दिलवानी है फाउंडेशन बन गया छह करोड़ जमा भी हो गए केबीसी से मिलने कुछ लाख हैं लेकिन रास्ता बन सकता है जाने कितने करोड़ जमा होने का। अमिताभ बच्चन जी समझाते हैं देश के एक करोड़ लोग दस दस रूपये देते हैं तो दस करोड़ हो जाएंगे। कोई नहीं समझता जिनको कुछ शब्द बोलने थोड़ा अभिनय कर दिखाने के सच्चे झूठे विज्ञापन के लाखों से करोड़ों तक मिल जाते हैं उनको दस बीस करोड़ जमा करने को कहीं जाने की क्या ज़रूरत है। वास्तव में माजरा टीवी शो और ख़ास लोगों की आपसी कारोबारी सहमति का है फायदा दोनों का है। 
 
दीपिका पादुकोण जी अपनी मानसिक परेशानी की बात करती हैं चकाचौंध रौशनी में रहने वाले अवसाद अकेलापन निराशा से पीड़ित हो सकते हैं क्योंकि जिस आधुनिक समाज में ऐसे लोग रहते हैं उस में मौज मस्ती झूमना नाचना ख़ुशी मनाना चाहते हैं तो तमाम लोग मिलते हैं तनाव की तनहाई की ख़ालीपन की बात समझने को किसी को फुर्सत नहीं होती है। नाम पैसा शोहरत आपको ऐसे दोस्त या अपने जो हर हाल में साथ निभाते हैं नहीं दिला सकता है बल्कि उनसे दूर करता है। क्योंकि जानी मानी शख़्सियत बनते हर कोई उनसे फ़ासला बना लेता है कि कहीं कोई उनसे किसी मतलब से मिल लाभ नहीं उठा ले ये धारणा बन जाती है। उनकी माता जी को अपनी बेटी का रोना देख कर समझ आया जैसे वो सहायता मांगती हुई लगी तब शायद यही सही लगा कि अपनी बेटी से ज़िंदगी की परेशानी सांझा करने को कहने से अधिक उसको सलाह दी किसी मनो-चिकित्सक से मिलने की। अब उनको कोई कैसे समझाए की आपकी फाउंडेशन किसी सामान्य नागरिक को क्या समझा सकती है। ख़ास बड़े धनवान लोग विशेषज्ञ मनो-चिकित्सक से बड़ी फीस देकर उपाय जान सकते हैं जिन करोड़ों लोगों से आपको कितने करोड़ की कमाई होती है उन्हें खुद अपनी ज़िंदगी की उलझनें सुलझानी पड़ती हैं क्योंकि गरीबी बदहाली के शिकार पीड़ित से हर कोई बचकर निकलता है। जबकि आप बड़े लोग वास्तविक शुभचिंतक से बचकर रहते हैं। 
 
सवाल समस्या की चर्चा करने का होता तो अनुचित नहीं था लेकिन जब सवाल दुःख दर्द परेशानी को भी इक इक खेल तमाशा बनाने का हो तो उसको मानसिक दिवालियापन समझ सकते हैं। शायर सुरेश भारती नादान की कलम से आभार सहित शब्द उधार लेकर समझते हैं , कहते हैं नादान जी :- 

           रौशनी से जो मकां भरा-भरा लगा , तुम कहो कुछ भी मुझे वो मकबरा लगा।

           जब मिला नादान तो रोता हुआ मिला , बज़्म में देखा उसे वो मसखरा लगा।

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1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

केबीसी पर शानदार शुक्रवार पर अच्छा लेख लिखा...बड़े स्टार्स को कुछ करोड़ एकत्र करने के लिए केबीसी पर जाना पड़े..शर्म की बात है.. आप खुद अरबों के मालिक हैं कर दो मदद...या सिम्प्थी बटोर कर 10-10 रुपये 1 करोड़ लोगों से मांगकर ही पूरा करना है...