भटक रही अजनबी राहों में ( हिंदी की बात ) डॉ लोक सेतिया
सुबह सुबह शहर की सड़क किनारे फुटपाथ पर चलते चलते मुझे मिली तो मैंने पहचाना ही नहीं। शिकायत नहीं की तब भी कहने लगी कोई बात नहीं सूरत नहीं पहचानते तो क्या हुआ प्यार तो मुझी से करते हो। हिंदी दिवस मनाते हो सबको शुभकानाएं भेजते हो जानते हो मुझे कहां से कहां ले आये हैं मेरे अपने मगर भाषा का दर्द हिंदी लेखक नहीं समझेगा तो और कौन समझ सकता है। शहर शहर गली गली सभा आयोजित की जाएगी मुझे जाने क्या क्या संबोधन देकर पुकारेंगे मगर मुझे बुलाना भूल गए होंगे और अनचाही सी वहीं किसी आखिरी कतार में कोने में सिमटी बैठी मैं सोचती रहूंगीं हर बार की तरह क्या ये मेरी बात की जा रही है। हिंदी से हिंदी लिखने वालों को ही नहीं देश दुनिया भर को कितना मिला है भाषाओं को कला को व्यौपार को आपसी संबंधों से लेकर मानवता तक को समृद्ध किया है मगर क्या किसी ने मुझे थोड़ा भी एहसास दिया है अपनेपन का। सब उपयोग करते हैं जानते नहीं पहचानते नहीं मुझे अपना मानते नहीं। हिंदी भावनाओं में बहकर भी उदास निराश नहीं थी हंसती मुस्कुराती हुई सबको गले लगाती चलती जा रही थी। हिंदी को मिलकर लगा कोई अथाह समंदर अपनी गहराई में कितना कुछ समाये हुए है अपनी आगोश में आये हर किसी को झोली भर भर अनमोल रत्न देती रहती है। किसी मां की तरह बच्चों पर सर्वस्व लुटाती हुई ममता से लबालब भरी सबको अपने आंचल की छांव में बिठाकर वात्सल्य से अभिभूत करती लोरी गाती मधुर सपनों की नींद में परियों की कहानी सुनाकर सब दुःख दर्द मिटाती।
हिंदी सबकी है कोई पराया नहीं हिंदी के लिए सबको समझना होगा हम हिंदी के कौन हैं और हमारा हिंदी से क्या नाता है। सोशल मीडिया फिल्मकार कथाकार विज्ञापन से लेकर टीवी सीरियल रियल्टी शो और नृत्य संगीत तक सभी बिना हिंदी क्या कुछ भी कर सकते हैं। हिंदी ने अपनाया है सभी को भले किसी ने उसको अपना समझा हो या बेगाना। भाषा सभी जोड़ती हैं आपस में मगर हिंदी की तरह घुल मिल जाना पानी और दूध की तरह ख़ासियत सब में नहीं होती है। ये ऐसी महिला है जो माता पिता भाई बहन सास ससुर ननद देवर क्या गली मुहल्ले तक से निभाती है खुद अपनी पहचान खोकर बेटी पत्नी बहु मां बन जाती है। कोई उसकी कीमत समझे या नहीं उसके बिना गुज़ारा किसी का नहीं होता है। चलो आज उन सभी से जाकर मिलो गले लगाकर बात कर जिनसे पाया है जाने कितना लेकिन देने की बात भूल गए हैं। हिंदी की तरह कई रिश्ते हैं जिन में चाहत की प्यास अधूरी रही है क्योंकि उन्होंने सभी को सब दिया बदले में चाहा कुछ भी नहीं। ये हिंदी दिवस इक भाषा का नहीं विश्व भर को प्यार अपनत्व देने का उत्स्व बन जाए तो कितना अच्छा होगा।
1 टिप्पणी:
बहुत सही 👌👌👍👍
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