ओ नादान तू बन जा भगवान ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
दार्शनिकता की बात है समझना कठिन नहीं है थोड़ा सोचो ज़रा सा समझो वो जो कोई भी है किसी भी नाम से जाना जाता है विधाता ईश्वर ख़ुदा वाहेगुरु परमात्मा अल्लाह यीसु करता क्या है। तथाकथित ऊपरवाला किसी से पूछता नहीं किसी को बतलाता नहीं जब जैसा चाहता है अच्छा भला खराब करता चिंता नहीं करता दुनिया वालों को कैसा लगता है। मगर हर कोई उसकी दी परेशानी की बात उसी से जाकर कहता है रहम की भीख मांगता है। तुमने ऐसा क्यों किया कहने का साहस कभी कोई नहीं कर सकता। आदमी आदमी से रिश्ता निभाता रहता है तब तक जब तक आस रहती है कभी काम पड़ेगा तो साथ देगा मगर जब महसूस होता है अमुक व्यक्ति भविष्य में किसी काम में सहायक नहीं हो सकता उस से किनारा कर लेते हैं। आदमी की बात चेहरे के हाव-भाव बता देते हैं उसके पास बचा नहीं कुछ बांटने को पर भगवान को देख कर कोई नहीं समझ पाता कि उसके पास क्या है और उसके मन की मर्ज़ी क्या है। भगवान भले देता कुछ भी नहीं लेकिन उसको देख लगता है सामने खड़े व्यक्ति को आशिर्वाद दे रहा है। कभी उसके हाव भाव चेहरे के देख समझ नहीं सकते चाहता क्या है। अच्छा साहूकार इनकार नहीं करता बहाना बनाकर टालता है और जिस पर भरोसा होता है सूद सहित समय पर लौटाने का उसका अंगूठा लगवा बही पर नकद उधार दे देता है। भगवान सब जानता है आदमी मांगता है लेकर वापस करना याद नहीं रखता इसलिए जो इंसान अच्छा लगता है उस पर मेहरबान होता है ऊपरवाला। उसकी अपनी मौज है सच्चे फांसी चढ़दे वेखे झूठा मौज मनाये लोकी कहंदे रब दी माया मैं कहंदा अन्याय , की मैं झूठ बोलिया की मैं कुफ़र तोलिया।
सरकार भी भगवान की तरह होती है दिखाई नहीं देती बस सरकार है सब विश्वास करते हैं और सरकार भी सब कर सकती है लेकिन भगवान की तरह करती कुछ भी नहीं किसी के लिए जो भी करती है सिर्फ खुद की शान बढ़ाने को करती है। हर सरकार चाहती है लोग उसके सामने हाथ जोड़ भिखारी की तरह खड़े रहें और उसको जिनको देना है उन्हीं को देकर समझती है सबको सब मिल गया है। अमीरों को अमीर गरीबों को बेबस बनाना शासक होने सत्ता और सरकार का अहंकार होता है हम सरकार हैं हम जो करें हमारी मर्ज़ी जनता को सर झुककर स्वीकार करना चाहिए। राजा कभी भगवान नहीं होता है राजनेता कभी मसीहा नहीं होते हैं मगर चाटुकार लोग उनका गुणगान कर उनको भगवान होने का एहसास करवाते रहते हैं। मगर सत्ता जाते ही उनके होश ठिकाने लग जाते हैं शासक वास्तव में खुद सबसे भूखे नंगे भिखारी होते हैं ऐसे भिखारी जिनकी झोली कभी भरती नहीं है। जनता की सेवा देश समाज की भलाई की बातें भोले भाले लोगों को बहलाने का माध्यम हैं कथनी अलग करनी विपरीत होते हैं।
ओ नादान आम आदमी तू भिखारी नहीं है भिखारी को राजा बनाकर पछताता है कभी नहीं देखा क्या तेरा बही खाता है। ठोकर खाकर भी समझ नहीं आता है क्यों भगवान की तरह सरकार पर भरोसा कर खाली दामन घर वापस लौट आता है। खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले , खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें