पुरुषों से पक्षपात क्यों ( हास्य-व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
नारद जी सीधे सवाल करते हैं ईश्वर से कहने लगे आपका भी हिसाब उल्टा पुल्टा है। जो हाथ जोड़ मांगते हैं भगवान भरोसे रहते हैं उनको नहीं मिलता और जो आपसे नहीं मांगते सरकार से मांगते हैं उनको बिना आपसे मांगे कितना मिलता है। आपने समझाया था जो नहीं आते झोली फैलाकर आप उनको बुलाने को बेताब रहते हैं और जो गरीब मध्यम वर्ग आपकी भक्ति अर्चना पूजा करते हैं उन्हें थोड़ा मिलता है अधिक जतन करने पर भी। जिन अमीर लोगों को छप्पर फाड़कर देते हो वो कभी आपके दर्शन करने आते भी हैं तो दाता बनकर भिखारी बनकर नहीं। बिन मांगे मोती मिलें मांगे मिले न भीख ये बात क्या उचित है। शायद आपकी तरह भारत देश की सरकार ने सुनते हैं महिलाओं को बहुत कुछ देने का काम करने का वादा किया नहीं निभाया है। तीन तलाक पर कानून लेकर मुस्लिम महिलाओं को भरोसा दिलाया है खुद क्या हुआ जो अपनी पत्नी को बीच मझधार छोड़ आया है। साल नया जाने क्या लाया है पुरुषों ने पक्षपात का मुद्दा उठाया है। संगठन विवाहित पुरुष संघ जैसा महिलाओं से छुपकर बनाया है सवाल वही सामने आया है कोई शादी करने के बाद लड्डू खाकर कोई बिना लड्डू खाये पछताया है। विवाहित पुरुषों ने पत्नियों पर प्रताड़ित करने का इल्ज़ाम लगाया है।
मांग उठाई है सरकार जी दुहाई है दुहाई है आप बताओ कौन हरजाई है। जब से शादी रचाई है हमारी शामत आई है। हर पत्नी को अपने पति में जहान भर की खामियां नज़र आती हैं खुद को सभी सर्व गुण संम्पन बतलाती हैं। दुनिया का हर पति बेचारा है दुनिया से जीत सकता घरवाली से हमेशा हारा है। सौ बार बिना गलती माफ़ी मांगकर करता गुज़ारा है। सरकार डूबते को तिनके का सहारा है कहलाता है पति परमेश्वर फिरता मारा मारा है। महिलाओं ने अपने पति को सुधारने का खुलेआम किया ऐलान हैं साथ निभाती हैं ये भी कितना बड़ा एहसान है। क्या आपने सभी महिलाओं को अच्छा और पुरुषों को खराब बनाया है नारद जी के सवाल पर ऊपरवाला चकराया है। भगवान को इस बात ने उलझाया है सरकार किस ने बनाई है क्या सिर्फ महिलाओं से वोट पाकर सत्ता पाई है। बराबरी की बात के मायने बदल जाते हैं खुद पहले अपनी पत्नी को सर पर बिठाते हैं जब नाचने लगती है समझ तभी पाते हैं। महिलाओं की झूठी तारीफ़ का अंजाम है पुरष नासमझ नहीं काबिल भी है मगर थोड़ा नादान है।
सरकार ने पुरुषों को एकांत में बुलाकर बताया है। खुद अपनी पत्नी से जो नहीं निबाह पाया है उसने जाना पहचाना है महिलाओं को भगवान भी नहीं रोक टोक सकता है मेरी क्या मत मारी गई है जो नारी शक्ति से रार तकरार ठानूंगा। मेरी मज़बूरी है आपकी समस्या सही है लेकिन इसको समस्या नहीं मानूंगा आपने कब सरकार से पूछकर विवाह रचाया था। जो पेड़ आपने लगाया था क्या सोचकर हाथ बढ़ाया था। अंगूर खट्टे हैं हाथ नहीं आये महिलाओं ने मीठे आम खाये गुठली का क्या करना समझ नहीं पाये। सरकार ने चेतावनी दी है बात को यहीं खत्म करो भूल जाओ घर वापस जाओ ऐसा नहीं हो सरकार महिलाओं को बताये और आप धोबी के गधे बन जाओ। घर के न घाट के बनने से अच्छा है सुर ताल समझो उनकी उंगलियों पर नाचने का लुत्फ़ उठाओ। गर्म गर्म रोटी हलवा पूरी मिलती है जी भर खाओ।
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर और सारगर्भित।
नव वर्ष 2021 की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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