अगस्त 13, 2020

आत्मनिर्भरता की पढ़ लो पढ़ाई ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

 आत्मनिर्भरता की पढ़ लो पढ़ाई ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

       शहंशाह का मूड आज बदला बदला है आज खास बैठक में बात आत्मनिर्भर बनाने की है। शुरुआत करते हुए बोले कि कितना अच्छा है जो कभी सोचा नहीं था कोरोना के लॉक डाउन ने करवा दिया है। जो पुरुष घर के काम को आसान समझते थे खुद करना पड़ा तो होश ठिकाने आ गए। जिन महिलाओं ने खुद अपने हाथ से चाय क्या पानी का गलास नहीं उठाया था पकोड़े बनाना उनको आ गया। देश के आत्मनिर्भर बनने की ओर ये पहला कदम है। सभी समझते हैं शादी विवाह ज़रूरी है कोई भी घर और बाहर दोनों जगह एक साथ काम नहीं कर सकता है। पति पत्नी दोनों इक दूजे की ज़रूरत हैं मुहब्बत नहीं मज़बूरी है बस यही गलत है इस आधुनिक युग में कोई किसी पर निर्भर क्यों रहे। मेरे परिवार ने भी मुझे आत्मनिर्भर बनाने की जगह मेरा विवाह रचाया था और मुझे उसी जाल में फंसाया था जिसको परंपरा समझ बनवाया था। मगर जैसे ही मुझे समझ आया था मेरे मन का पंछी पिंजरा छोड़ आया था। रसोई का काम मुझे भी नहीं भाया था मगर मैंने आत्मनिर्भर होने का अपना ढंग अपनाया था। तीस साल तक मैंने कहीं कोई चूल्हा नहीं जलाया था भीख मांग कर खाया था और स्वयं सेवक कहलाया था। मुफ्त का माल खाकर बड़ा मज़ा आया था इस से अच्छा कोई कारोबार नहीं है दुनिया भर को समझाया था। 

     देश की शिक्षा नीति को बदलना ज़रूरी है सभी को सब सीखना करना ज़रूरी है। मेरी बात और है मेरी शिक्षा में पढ़ना लाज़मी नहीं उपदेश करना ज़रूरी है। नवयुवकों को खुद खाना बनाना सीखना होगा उसके बाद गंभीरता से सोचना होगा बंधन में बंधना है या आज़ाद रहना है आप सभी घर परिवार वाले हैं कहो जो भी कहना है। शादी का लड्डू सभी खाते हैं कुछ खाकर कुछ बिना खाये पछताते हैं मैंने भी ये लड्डू खाया था किसी को खिलाया किसी का भोग लगाया था। मगर मुझे उसका स्वाद समझ नहीं आया था दिल में कुछ ज़ुबान पर कुछ करना था कर नहीं पाया था सच सोचकर ही ये बात घबराया था जब उसने जन्म जन्म के बंधन का अर्थ समझाया था। कोई बात थी दिल उकताया था मैं भाग आया था। शादीशुदा ज़िंदगी अनसुलझी कोई पहेली है आपका कोई दोस्त है आपकी कोई सहेली है जिस किसी ने आपको ये राह बताई है मत पूछो किस जन्म की दुश्मनी निभाई है। शादी वो इम्तिहान है जिसमें कोई भी पास नहीं होता है ज़ीरो नंबर मिलने से बढ़कर कोई एहसास नहीं होता। हमने शिक्षा नीति में शादी का विषय शामिल किया है सोलह अध्याय की किताब लिखवाई है लेखक किसी का साला नहीं है जीजा है न बहनोई और न किसी का सगा या सौतेला भाई है। बस इकलौता है और घरजवाई है नहीं कोई ननद न कोई भोजाई है सास ससुर शहद हैं दुल्हन रसमलाई है। सबने झूठी कोई कसम भी खाई है छाछ है कौन कौन मक्खन कौन दूध मलाई है।

  पहले अध्याय में गहराई है ऊंचाई है शादी की परंपरा कब किसने क्यों बनाई है। जाने किसने बेमेल जोड़ी बनाई है एक बकरा है एक कसाई है बारात है दूल्हा दुल्हन बजती शहनाई है। उलझन है हर किसी ने उलझन उलझाई है हर कोई कहता है तू बड़ा हरजाई है। भला कौन किसको खिलाता है हर कोई अपने नसीब का खाता है विधाता ही दाता है दुनिया भिखारी है कानून कितने हैं समाज के नियम हैं अदालत सरकारी है। ज़रा सी देर में अविवाहित विहाहित बन जाता है उसके बाद कोई रास्ता उधर नहीं जाता है। मुझे बस यही समझ आया है झूठे सभी बंधन झूठी मोह माया है। शादी से परेशान हैं भविष्य से अनजान हैं क्या किया क्यों किया सोचकर हैरान हैं। अलग होने का पूछते रास्ता बताओ अगर ज़रूरत है पास मेरे आओ तलाक की बात छोड़ो बंधन को तोड़ो भाग जाओ भूलकर फिर से नहीं शादी रचाओ जिओ उसको भी जीने दो का रास्ता आज़माओ। आत्मनिर्भरता की पढ़ना पढ़ाई उसके बाद सोचना क्यों करनी शादी क्यों करनी सगाई। मुझे देख लो मैं विवाहित नहीं न ही कुंवारा मुझे चाहिए क्यों किसी का सहारा। मैं ये बाज़ी खेला इस तरह से नहीं जीत पाया मगर नहीं फिर भी हारा। हर कश्ती को मिलता नहीं है किनारा नहीं सबको मांझी ने पार लगाया। ये दरिया है डूबकर पार कर लो मौत को ज़िंदगी मत समझना इसे छोड़ कोई और कारोबार कर लो।

 सरकार विवाह कानून में बदलाव करने पर विचार कर रही है। लड़के-लड़की की आयु के साथ साथ शादी की पढ़ाई विषय में पचास फीसदी अंक पाने की शर्त अनिवार्य की जा सकती है। सरकारी इश्तिहार टीवी अख़बार में नियमित दे सकते हैं कि गठबंधन करने से पहले सावधान रहना है जांच लें कि दोनों में आत्मनिर्भरता की पढ़ाई की है और शादी के विषय काअध्यन किया है अच्छे अंक मिलने वाले को ही चयन करने का सुझाव और हिदायत जारी की जाएगी। शादी विषय का अध्यन करना सभी के लिए कल्याणकारी है यही ईलाज है ऐसी बिमारी है। शादी कहते हैं खाना-आबादी है मगर कभी बन जाती ये भी बर्बादी है। पढ़नी इस की पूरी तरह से समझकर पढ़ाई है सभी की इसी में भलाई है। 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

Bahut bdhiya likha h...Bs kavyatmak shaili thik nhi lagi...तुक का त्याग करके वाक्य व्यंजना शक्ति से और जानदार हो सकते थे...ख़ैर...जो खुद जिम्मेदारियों से भाग रहे हैं वो सबको आत्मनिर्भर और भी न जाने क्या क्या बना रहे हैं। 👌👍