अब नहीं ज़रूरत हमारी ( उस लोक की बात ) डॉ लोक सेतिया
भगवान ने अपने सीसीटीवी पर देखा शनिदेव जी अभी तक अपने कक्ष से बाहर नहीं निकले तभी उनके व्हाट्सएप्प पर शनिदेव का संदेश मिला जिस में अपना न्याय करने का काम छोड़ने का निर्णय सूचित किया गया था। ये सामान्य घटना नहीं थी और भगवान भी न्याय के मामले में कोई हस्ताक्षेप नहीं करने की शपथ को दरकिनार नहीं कर सकते थे। न्याय का भार कोई और देवता नहीं वहन कर सकता है क्योंकि उनकी अपने अपने भक्तों से अनुराग की आदत जो है। भगवान जानते हैं शनिदेव को मनाना उनके अकेले की बस की बात नहीं है इसलिए सभी अन्य देवताओं की विशेष बैठक तुरंत बुलाना ज़रूरी हो गया। जब बाकी सभी आ गए तब भगवान ने शनिदेव से बात करने को वीडियो कॉल करना उचित समझा। जय शनिदेव महाराज जी क्या बात है आपने अपना न्याय का कार्य त्यागने का निर्णय ले लिया कोई परेशानी है तो बताएं। आप जानते हैं न्याय के बिना संसार का क्या हाल हो सकता है और निष्पक्ष न्याय सर्वोच्च अदालत की तरह केवल आप ही कर सकते हैं जो निर्णय देते समय पिता तक का भी लिहाज़ नहीं करता है। सभी देवता देवियां आये हैं आप भी आ जाएं या हम सभी आपके पास निवेदन करने आ सकते हैं आपसे अनुमति लेना ज़रूरी है। शनिदेव ने कहा किसी के भी आने की ज़रूरत नहीं है मगर फिर भी इंतज़ार करें मैं आपके आवास पर उपस्थित होता हूं।
शनिदेव ने आते ही सभी को अभिवादन करने के बाद खुद ही कहा आपको पूछने की ज़रूरत नहीं है आपको खबर भी है मगर फिर भी अपने आप ही खुद बताता हूं क्यों मैंने इक खबर का संज्ञान लेते हुए ये संदेश भेजा अपना फैसला बताने को। जब पुलिस वाले ही अपराधी को पकड़ अदालत में पेश करने की ज़रूरत नहीं समझते और खुद ही निर्णय करते हैं उसको जान से मारने की सज़ा दे देते हैं और सरकार अदालत देख समझ कर भी खामोश रहते हैं अदालत को अपनी तथाकथित मानहानि नहीं दिखाई देती तब मेरी क्या आप सभी देवी देवताओं की भी ज़रूरत है भी कि नहीं ये गंभीर चिंतन का विषय है। मुझे अगर न्याय नहीं करना करवाना तो मेरा कक्ष से बाहर जाना किस काम का। कोरोना काल है सबको अपनी सुरक्षा की चिंता है और घर में बंद रहना है विवशता होने पर मुंह बंद रखना है पट्टी बांध कर निकलना है।
तभी यमराज जी भी खड़े होकर अपनी बात कहने लगे , बोले ये सच है आजकल जो कोई भी मरता है कोरोना ने उसकी जान ली ऐसा समझते हैं कोई भगवान की धर्मराज की बात नहीं करता और यमराज है भी या नहीं कोई नहीं सोचता है। मेरा काम भी कोई और करता है ये होने लगा है तो मेरा भैंसा भी कहता है हमको छुट्टी मिल गई है बदनाम होने से बच गए हैं। बस ये शुरुआत थी एक एक कर सभी देवी देवता जो कब से खामोश थे अपने अपने विभाग के उपयोगी नहीं रहने के कारण अपनी अपनी दर्द भरी दास्तां खुलकर बताने लगे। महकाल जी चाह कर भी कुछ नहीं कह सके और बजरंग बली हनुमान जी भी संकट हरने में खुद को विवश पा रहे थे। देवी लक्ष्मी को बताना पड़ा उनके खज़ाने की दशा क्या है और कौन है जिसने कुबेर से बढ़कर खज़ाना बढ़ा लिया है लूट खसूट और चोरी हेराफेरी का युग है बात राम राज्य की होती है आचरण की मत पूछो कभी दानव भी ऐसा नहीं करते थे जो डायन होती थी वो भी चार घर छोड़ देती थी।
ईश्वर भी विचार करने लगे और सोचने लगे क्या अब दुनिया मेरी मर्ज़ी से चल रही है लगता तो नहीं है। अब मेरे नाम पर धर्म स्थल बनाने का ही काम किया जाता है मैं वहां रह नहीं सकता ऐसा वातावरण है। जब किसी सरकार के बस में कोई भी विभाग नहीं रहे तब उसको होने बने रहने का क्या अधिकार है। भगवान दुःखी होकर कहने लगे मुझे बताओ मेरा कोई अस्तित्व बचा ही नहीं है मैंने अपना पद छोड़ कर जा भी नहीं सकता किसे सौंपूंगा ये कर्तव्य और अधिकार। लगता है इस दुनिया का अंत करना ही उपाय है जब इंसान इंसान नहीं बन सकता भगवान समझने लगा है और शैतान बन गया है। ये शैतान का शासन है मगर हम क्या शैतान से हार मानकर उसको मनमानी करने देंगे। शनिदेव जी आपने हम सभी की आंखें खोल दी हैं लेकिन आपको अभी निराश होकर कोई निर्णय जल्दबाज़ी में नहीं लेना चाहिए। अभी आप इस विषय को छोड़ कर अपने कर्म करते रहें हम सभी की विनती है जल्द ही पूर्ण सभा में कठोर निर्णय इसको लेकर अवश्य लिया जाएगा। बस हर सीमा पर हो चुकी है अब मुझे भगवान देवी देवताओं को तमाशाई नहीं बनकर रहना है जो भी करना चाहिए करना ही पड़ेगा।
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