दिसंबर 22, 2019

POST : 1229 सोने की चिड़िया की कहानी ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

     सोने की चिड़िया की कहानी ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

 पता नहीं कैसे पचास साल पुरानी सुनी कहानी याद आई है । अनपढ़ थे मेरे दादाजी मगर सब उनकी समझदारी का लोहा मानते थे । मैंने दादी नानी को नहीं देखा दादाजी से बहुत कुछ सीखा समझा है । तब उनकी बातों की गहराई कहां समझ आई थी उनकी मौत 1970 या 1971 में हुई थी जब मेरी आयु 20 की रही होगी । गीता रामायण सब उनको याद थे सुनते रहते थे और मैंने उनको बचपन में सब धार्मिक किताबों की कथा पढ़कर सुनाई है । मुझे उनसे बहुत प्यार मिला और समझ भी उनकी बातें तब नहीं अच्छी लगती थी कि धन दौलत नहीं इंसानियत भाईचारा और सादगी से मिलकर रहना वास्तविक जीवन का आधार है । भूमिका को छोड़ उनकी सुनाई कहानी बताता हूं । 

परिवार में नई बहुरानी लाने को उसको चुना गया जिसने घर को स्वर्ग बनाने और सभी की सेवा करने दासी बनकर रहने की मीठी मीठी बात से होने वाली सास का दिल जीत लिया जिसने घर भर को उसकी तारीफ कर इक सपना देखने को विवश कर दिया कि बस यही इक कमी है और नई बहुरानी के आने से सबकी हर मनोकामना पूरी हो जाएगी । आते ही घर की खज़ाने की चाबी अपने हाथ ले ली थी और समझाया था अभी तक सभी घर के लोग कहने को खुश रहते रहे हैं वास्तविक आनंद को जानते भी नहीं हैं । मधुर भाषा और सज धज नाज़ नखरे हर नई दुल्हन के शुरू शुरू में लुभाते हैं । हर कोई उसकी चिकनी चुपड़ी बातों में आकर उसी का गुणगान करने लगा था । चार दिन में उसने बढ़े बूढ़े सभी पुराने लोगों को साबित कर दिया था कि उन्होंने जो भी किया गलत था और जो करना था उनको पता ही नहीं था । मगर अब मैं आई हूं तो सब ठीक कर दूंगी । आधुनिकता के नाम पर बदलाव का नाम लेकर सब पहले का किया हुआ बर्बाद करने लगी थी मगर इक जादू था जो सबको नशे में रखता था सुंदर सपने वाली दुनिया दिखलाने का । उसकी बातों से लगता था सच उसने सब तरह की पढ़ाई की हुई है जबकि कोई नहीं जानता था उसने कब किस स्कूल कॉलेज से क्या किस अध्यापक से पढ़ा था । 

बड़ों की सेवा उनकी दासी बनकर रहने  की बात क्या होती है कोई भी उसे कह नहीं सकता था और उसने घर की सभी तरह की देखभाल अपने पीहर से ला ला कर अपनी पसंद के लोगों के हाथ सौंप दी थी । दो चार साल में वही घर की वास्तविक मालकिन बन गई थी और घर के असली मालिक बेबस होकर रह गए थे । पति-पत्नी का नाता क्या है उसको मालूम ही नहीं था । बस मनमानी करती गई और घर की हालत बिगड़ती गई थी । जो लगता था सीधी सादी भोली भाली है उसने अपने असली रंग दिखला कर सबको अपने आधीन कर लिया था और सब अपने अधिकार में लेती गई थी । हर कोई उसकी चाल में फंसकर घर के बाकी लोगों से लड़ने झगड़ने नफरत करने लगा क्योंकि उसने सभी को इक दूसरे की मनघड़ंत बातों से भेदभाव की दीवार खड़ी कर अलग अलग कर दिया था । जिस महल बनाने की बात करती थी उसकी कोई नींव ही नहीं थी आसमान में हवा में कोई जादू का नगर बसाने की झूठी बात से सभी को ठगने का कार्य कर दिया था । 
 
तमाम तरह से अपने गुणगान के चर्चे अपने खास लोगों को आर्थिक फायदा पहुंचा कर करवाने लगी थी । धीरे धीरे घर का सब बिकने लगा था हरा भरा घर किसी तपते रेगिस्तान में बदल गया था । उसकी हर योजना असफल होती रही मगर सबको भरोसा दिलाती रही अब बस सब ठीक होने वाला है कुछ दिन सहन करो , मगर खुद उसने अपने खुद पर बेतहाशा धन शौक पूरे करने पर बर्बाद करने में कोई सीमा नहीं बाकी रहने दी । हाल  ये हुआ कि पहले सब चैन से रहते थे अब हर कोई बेचैन है घबराया हुआ है । आपसी मेल जोल बचा नहीं भरोसा कोई किसी पर नहीं करता और हर कोई अकेला उसकी चालों का शिकार होकर परेशान है । खेल खलियान कारोबार सभी चौपट हो गए थे उसकी योजनाओं की विफ़लता को कोई अनुचित नहीं कह सकता था अन्यथा उसे भविष्य का दुश्मन घोषित किया जाता था ।

आसपास रहने वाले सभी पड़ोसियों को उस नई नवेली बहू ने कितने हथकंडे अपना कर कभी प्रलोभन का मायाजाल बिछाकर अपने समर्थन में खड़ा कर लिया और एक एक कर परिवार के अन्य सदस्यों से पूर्वजों तक को बदनाम और नासमझ साबित करने में झूठ की बातों को फैलाना शुरू कर दिया । जिस गली जिस बस्ती में सभी आपस में मिलकर रहते थे उसकी चालों से सभी आपसी विश्वास छोड़ कर शंका करने लगे । माहौल बदल कर आपसी भाईचारा खत्म हुआ और टकराव की बातें होने लगीं । उसकी कुछ खास लोगों की चतुराई से अधिकांश उसका गुणगान करने लगे और जब कोई उसकी कार्यशैली पर संशय करता तो उस से टकराव कर उसका जीना दुश्वार करने लगे । गांव गली से लेकर शहर से चलते चलते उसकी शोहरत महानगर तक पहुंच गई और अख़बार में आधुनिक नारी की मिसाल कहलाने लगी थी । सभी का हिस्सा अकेले ही खाकर खुद देवी का स्वरूप होने का ढोंग कर अपनी मनमानी कर महारानी कहलाने लगी थी । बहुरानी को महारानी बनाने वाले पछताते हैं उसको सर पर बिठाकर खुद तिगनी का नाच नाचने को मज़बूर हो जाते हैं ।    माफ़ करना दादाजी ने आगे की कहानी सुनाई थी मगर मुझे नींद आ गई थी । आप भी आजकल किसी नींद की खुमारी में लगते हो नहीं जानते कल क्या होने वाला है । भविष्य का कुछ पता नहीं है और कोई आपको जगाने वाला भी नहीं । घनी गहरे अंधेरे की रात है मगर कहते हैं हर रात का अंत होता है और सुबह होती है । चलो इक गीत सुनते हैं जाने माने शायर का है । 

मौत कभी भी मिल सकती है , 

लेकिन जीवन कल न मिलेगा ।

रात भर का है महमां अंधेरा , 

किस के रोके रुका है सवेरा । 

रात जितनी भी संगीन  होगी , 

सुबह उतनी ही रंगीन होगी । 

ग़म न कर गर  है बदल घनेरा , 

किस के रोके रुका है सवेरा । 

लब पे शिकवा न ला अश्क़ पी ले , 

जिस तरह भी हो कुछ देर जी ले । 

अब उखड़ने को है ग़म का डेरा , 

किस के रोके रुका है सवेरा ।

आ कोई मिलके तदबीर सोचें , 

सुख के सपनों की ताबीर सोचें । 

जो तेरा है वही ग़म है मेरा , 

किस के रोके रुका है सवेरा । 

आपको याद है फिल्म का नाम था , सोने की चिड़िया । 

 सोने की चिड़िया l सुनहरी गौरैया l रोहित धीर l गजनी का महमूद l


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