जनवरी 27, 2019

उनको कब मिलेगा ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

         उनको कब मिलेगा ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

      ऐसे वैसों को दिया है कैसे केसों को दिया है उनको भी भाररत्न दिला दे चींटी को पहाड़ चढ़ा दे। बेहद उदास बहुत निराश हैं। अभी नहीं मिला तो फिर कब मिलेगा। ऊपर वाले तेरी रहमत से दिल भर गया है कोई जीते जी जैसे मर गया है। पहले से भगवा धारण नहीं किया होता तो आज का दिन देख बाबा जी बाबा बन जाते। निंदा करने से जो हाथ से निकल गया मिलने वाला भी नहीं जानते हैं मगर क्या करें आंसू छुपाना आता नहीं है। काश इतना सब बनाया खुद अपने नाम से इक भारतरत्न भी खुद का घोषित किया होता तो किसी और की दया मेहरबानी का इंतज़ार नहीं रहता। व्यथा सुनाई तो सुनकर दार्शनिक दोस्त कहने लगे चिंता की बात नहीं है थोड़ा वक़्त बीतने दो फिर जैसे कभी फोन किसी किसी के पास था मगर समय बदला तो मोबाइल फोन क्या स्मार्ट फोन भिखारी तक के पास है। आपको याद है कभी गांव में पढ़ा लिखा कोई विरला हुआ करता था और खुद आप काला अक्षर भैंस बराबर थे लेकिन समय का खेल है कि आज हर खेल के मैदान में असली खेल आपका ही है। आपका नाम सफलता का दूसरा नाम है। कुछ साल पहले आपके पास साईकिल भी नहीं थी मगर आजकल हवाई जहाज़ पर चलते हैं टीवी चैनल पर धूम मची है। कोई मुनाफाखोरी करते नहीं कहते हैं और जितना धन अपने जमा किया है किस ने इतनी जल्दी किया है बताओ। चाहो तो किसी और देश से भी जुगाड़ किया जा सकता है समकक्ष कोई ईनाम मगर आपका स्वदेशी का भांडा फूट जाएगा। धैर्य से काम लो अबकी नहीं तो अगली बार सही पहले से इंतज़ाम कर लेना यूं ही किसी के भरोसे मत रहना। मगर लगता नहीं दार्शनिक जी की बात का कोई असर हुआ है। 
 
     कुछ सोच कर बोले नहीं मुझे नहीं मिला इसका अफ़सोस नहीं है जिसको मिला उसको कैसे मिला क्यों मिला इस का गिला है। भाई मैंने क्या दिया है देश को जो मुझे मिलता लेकिन जिनको मिला उनका कोई योगदान देश को ऐसा ख़ास हो तो बताओ। भारतरत्न को इतना आसान बना दिया तो कल हर कोई लिए फिरता दिखाई देगा। दुखती राग को छेड़ना उचित नहीं ये सोच दार्शनिक बात बदलने लगे। छोड़ो ये सब राजनीति की बातें हैं आपको तो राजनीति नहीं देश की जनता की चिंता है अभी तक काला धन भी मिला नहीं लोकपाल का कुछ नहीं हुआ अब कोई तो कदम उठाना होगा चुनाव आने को हैं। इक पल में कितने आसन बदल डाले खामोश रहकर कहा कुछ भी नहीं। हाथ में कभी काले धन वालों के नाम की लिस्ट हुआ करती थी आज सरकारी ईनाम पाने वालों की सूचि हाथ में है। जाने क्या बात है कि लाख कोई समझाता रहे इन धन दौलत ईनाम तमगे का मोह व्यर्थ है दिल है कि जितना मिलता है लालच बढ़ता जाता है और अपना ही विज्ञापन याद आने लगा है लालची लोगों ने मिलवाट कर देश को लूटने का काम किया है। भारतरत्न की शुद्धता को लेकर किसी ने विचार किया ही नहीं। सोना खरा खोटा परखने को मापदंड तय हैं तो रत्न जैसे मूलयवान चीज़ की कोई कसौटी होनी ज़रूरी है। पता तो लगाया जाये कौन खरा रत्न है और किस को सौ फीसदी शुद्ध रत्न समझा जाये। किसी शासक के दरबार में नवरत्न हुआ करते थे ऐसे गिनती बढ़ती गई तो भाव कम होता जाएगा हीरे जवाहरात रत्न सभी का। जिसको देखो हीरे की अंगूठी पहने फिरता है। ये बात उस दिन खत्म होगी जिस दिन उनकी झोली भी खाली नहीं होगी। इक भारतरत्न का सवाल है बाबा।

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