इंसान में इंसानियत ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
उसको तराशने को छीलने को
ज़ख्म देने घायल करने की तरह
बार बार कितनी बेरहमी से तोड़
बनाते हैं बेहद खूबसूरत कलकृति ।
कोई शिकायत की कभी पत्थर ने
ठोकर खाने वाला राह का पत्थर
सजाया जाता है महलों में और
गली चौराहे पर शहर गांव घर
इक पहचान मिलती है उसको ।
मगर इक अंतर है इंसान पत्थर
इक जैसे बनकर भी एक नहीं होते
संवेदना भावना होने नहीं होने का
इक दिल की धड़कन विवेक का होना
बेजान रहता है पत्थर इंसान नहीं ।
इंसान को इंसानियत की समझ
मिलती है दुःख दर्द मिलने से ही
खुशियां पाकर सुख मिलने से तो
संवेदना और मानवीय भावना कभी
जागती नहीं हैं खो जाती हैं बेशक ।
आंसू बहाना जीवन का संघर्ष पाना
जाने कितने इम्तिहान देकर मिलती
इंसान को इंसानियत की सौगात है
कष्ट पाकर ठोकर खाकर दुनिया की
खुशनसीब बनते हैं अच्छे इंसान ।
आपको अगर मिलती रही निराशा
पग पग पर कठिनाइओं का सामना
लेकिन नहीं छोड़ा अपने दामन कभी
सच्चाई और अच्छाई का घबराकर
शिकवा नहीं धन्यवाद करना खुदा का ।
ज़िंदगी जिनको परखती है काबिल हैं
उन्हीं का लेती है इम्तिहान हमेशा
जो कभी सामना नहीं करते इनका
जीवन का अनुभव नहीं हुआ उनको
जीते रहे भले जिये नहीं ज़िंदगी को ।
2 टिप्पणियां:
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 20/01/2019 की बुलेटिन, " भारत के 'जेम्स बॉन्ड' को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बेहद खुबसुरत नज्म.
इंसानियत का एग्जाम इंसानों से व इंसानों में सम्भव.
पधारिये- ठीक हो न जाएँ
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