तुम्हारी विजय , मेरी पराजय ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
छल कपट झूठ धोखासब किया तुमने क्योंकि
नहीं जीत सकते थे कभी भी
तुम मुझसे
इमानदारी से जंग लड़कर ।
इस तरह
तुमने जंग लड़ने से पहले ही
स्वीकार कर ली थी
अपनी पराजय ।
मैं नहीं कर सका तुम्हारी तरह
छल कपट कभी किसी से
मुझे मंज़ूर था हारना भी
सही मायने में
इमानदारी और उसूल से
लड़ कर सच्चाई की जंग ।
हार कर भी नहीं हारा मैं
क्योंकि जनता हूं
मुश्किल नहीं होता
तुम्हारी तरह जीतना
आसान नहीं होता हार कर भी
हारना नहीं अपना ईमान ।
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