सितंबर 04, 2017

हम सभी लोग ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

        हम सभी लोग ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

बेईमान लोग।

झूठ के सहारे 
सच को हराकर 
धनवान बन गए।
बड़े पदों को पा लिया 
छल कपट धोखा कर सब से
ऊंची पायदान पर  हैं
बैठे भगवान बनकर।

ईमानदार लोग।

रात दिन जूझते बेईमानी से
मात खाते  हर बार
पल पल मरते हुए जी कर 
खुश हैं इस बात से कि 
किसी तरह अपना  बसर
कर रहे हैं बिना किसी तरह से
कोई भी समझौता किये। 

नासमझ लोग।

बेईमान लोगों की जय
बोलकर सोचते हैं वही हैं 
देश समाज के रखवाले।
उन्हीं से चाहते हैं पाना 
सब कुछ अपने लिए जो 
कभी किसी को देते नहीं है 
कुछ भी वास्तव में। 

बदनाम लोग।

कोई गुनाह नहीं किया
फिर भी सब को लगते हैं
मुजरिम हैं 
हर किसी को देते रहते हैं 
अपनी बेगुनाही के सबूत।
कोई नहीं करता तब भी यकीन 
सफाई देना , बिना किये अपराध 
बना देता है गुनहगार उनको। 

नाम वाले लोग।

खुद ही अपनी कीमत 
बढ़ा चढ़ा कर बाज़ार में 
बेचते हैं अपने आप को रोज़।

भीतर पीतल और बाहर है 
इक चमकती हुई सुनहरी परत 
सब खरीद रहे उन्हीं से सब 
वो भी जो नहीं रखा उनकी 
आलीशान सजी बड़ी बड़ी 
बाज़ार की दुकानों में।

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