सितंबर 05, 2017

हिसाब कर रहे हैं ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

        हिसाब कर रहे हैं ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

          लाला जी की दुकान पर गया था , हाथ जोड़ विनती की थी थोड़ा समय और मांगा था उधार चुकाने को। लाला जी की आदत है जिस को उधार दिया सब को बताते रहते हैं उसने अभी तक ब्याज चुकाया नहीं है। लाला जी ने अपमानित कर वापस भेजा था। कुछ दिन बाद लाला जी उसके गांव में घर पर जा पहुंचे और अपना उधार चुकाने को कहा , उसने कहा आपकी दुकान पर आऊंगा खुद चुकाने को। मगर लाला जी ने घर में सब के सामने और आस पड़ोस वालों को सुनाते ऊंची ऊंची आवाज़ में खूब बुरा भला कहा। तब उसने कहा लाला जी आप कल सुबह आना आपका हिसाब करना ही होगा। अगली सुबह लाला जी अपने मुनीम को साथ लेकर बही खाता लेकर पहुंच गए थे। वहां जाकर देखा दो ढोल वाले दरवाज़े पर खड़े हैं , सोचा ज़रूर कोई ख़ुशी की खबर होगी। लाला जी ने दरवाज़ा खटखटाया तो उसने लाला जी को भीतर आने को कहा और बोला मैं आपका इंतज़ार ही कर रहा हूं। और ढोल वालों को कहा आप ढोल बजाते रहना जब तक मैं लाला जी का हिसाब चुकता नहीं कर लेता। बाहर ढोल का शोर था और अंदर लाला जी का हिसाब बराबर किया जा रहा था। अपने अपमान का बदला लाला जी की जमकर धुनाई कर के , लाला जी को समझ आया था हिसाब सभी का होता है। आखिर दरवाज़ा खुला और बाहर सब के सामने उसने पूछा लाला जी हिसाब बराबर हुआ या अभी भी बकाया है कुछ लेना है जो। लाला जी की बही खाता सब में हिसाब बराबर किया जा चुका था। 
 
               आपको अभी नहीं समझ आया होगा आज ये सब क्यों बताया जा रहा है , कौन लाला कौन कर्ज़दार और कैसा हिसाब। आजकल कितना शोर है , रोज़ नई नई कहानी सुना रहे हैं इक अपराधी की , कितने राज़ खोल रहे हैं। इस शोर का अर्थ क्या है , किसी साहुकार का हिसाब किया जा रहा है। मीडिया वाले शोर मचा रहे हैं ताकि आपके सवाल खो जाएं उनके इस शोर में। इतने सालों तक क्या क्या अपराध होते रहे और सरकार नेता अधिकारी कानून के रखवाले और वो सभी जो इसी काम का वेतन लेते हैं कि देश में कहीं भी कुछ भी हो उनको निगाह रखनी है। बजट का बड़ा हिस्सा इसी काम पर खर्च किया जाता है ताकि देश में अराजकता नहीं कानून और न्याय का शासन हो। ये सब अनजान नहीं थे , ये सब उनसे छुपा हुआ नहीं था , ये सब अपने अपने मतलब को आंखे बंद कर किसी को अवसर देते रहे अपनी मनमानी करने का। आज खुद को बचाना है और उनको भी बचाना है जिनसे कीमत मिलती है तभी ये शोर है। ढोल बजाने वाले खुद भी गुनहगार हैं और जो इनसे ढोल बजवाते हैं वो भी। हिसाब कर रहे हैं या सब हिसाब किताब शोर के पीछे दबाना चाहते हैं। 
 
           आधा सच नहीं पूरा सच सामने आना चाहिए और सभी गुनहगार पकड़े जाने ज़रूरी हैं। नहीं तो वही खेल फिर से शुरू हो जायेगा कुछ अंतराल के बाद। ऐसा समझा जाता है इक दिन सब का हिसाब कोई करता है मरने के बाद , मगर अभी शायद इनको और शोर मचाना है।

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