सितंबर 08, 2017

आंखों वाले अंधे ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

           आंखों वाले अंधे ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

             नीम हकीम खतरा ऐ जान। मुहावरा सब को याद है। मगर फिर भी खुद खतरा मोल लेते हैं लोग। इधर बहुत आसान है किसी सार्वजनिक जगह पर अपनी दुकान लगाकर मुफ्त जांच के नाम पर अपना कारोबार बढ़ाने का काम करना। मुफ्त की हर वस्तु सस्ती नहीं होती है , खुले आसमान के नीचे किसी मरीज़ की जांच करना शायद ही नियमानुसार उचित हो। अब ये करने वाला शिक्षित है अथवा बिना शिक्षा लिए करता है कोई अंतर नहीं है। ज़हर आपको दोस्त देता है या दुश्मन ज़हर ज़हर का काम करता है। सरकार कभी देखती नहीं कौन कैसा अपराध कर रहा है , हम जानते समझते हैं ये अनुचित है फिर भी अनदेखा करते हैं। जब आप गंदगी के ढेर वाली जगह अजनबी लोगों से अपनी जांच और उपचार कुछ पैसों के लालच में करते हैं तब आप कितनी भयानक बिमारियों को बुलावा देते हैं नहीं जानते। सरकार सभी को स्वास्थ्य सेवा नहीं दे सकती मगर इतना तो कर्तव्य निभाना कठिन नहीं कि किसी को आम जनता के जीवन से ऐसा खिलवाड़ नहीं करने दे। बहुत कुछ नहीं बहुत अधिक अपराधिक ढंग से खिलवाड़ किया जाने लगा है लोगों के स्वास्थ्य के साथ। क्या बड़े बड़े सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स को अपने पास रोगी भेजने की कमीशन देना अथवा किसी डॉक्टर का कमीशन खाना उचित है। नीम हकीम भी वही करते है और बड़े बड़े उच्च शिक्षा वाले डॉक्टर भी। हम्माम में सभी नंगे हैं। आप को पैसा कमाना आता है सौ तरीकों से , आपको खुद अपने ही जीवन से खिलवाड़ करने की बात क्यों समझ नहीं आती , तब आपकी समझ आपकी जानकारी को लकवा मार जाता है। आजकल अधिकतर रोग इसी कारण बढ़ रहे हैं , ईलाज के बिना नहीं गलत ईलाज से मरना अधिक अफसोसजनक है।


कोई टिप्पणी नहीं: