फ़रवरी 17, 2025

POST : 1946 ग़ाफ़िल कहता ग़ाफ़िल की बात ( हास्य व्यंग्य कविता ) डॉ लोक सेतिया

 ग़ाफ़िल कहता ग़ाफ़िल की बात ( हास्य व्यंग्य कविता ) डॉ लोक सेतिया

 
दिल ही समझा ना है दिल की बात 
लहरों से होती क्या साहिल की बात ।
 
दर्द अपना किसे बताएं लोग जब अब  
मुंसिफ़ ही कहता है क़ातिल की बात ।  

दिल्ली में कोहराम मचा हुआ है कोई
कीचड़ से सुन कर कमल की बात । 

जमुना का पानी रंग बदलता नहीं कभी  
मछलियां जब करती जलथल की बात ।
 
आई डी दफ़्तर में रखा है सर का ताज़
यही पुरानी आज बनी इस पल की बात ।
 
गूंगों बहरों की बस्ती में होता शोर बहुत 
यही है दिल्ली की हर महफ़िल की बात ।  
 
 
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