ग़ाफ़िल कहता ग़ाफ़िल की बात ( हास्य व्यंग्य कविता ) डॉ लोक सेतिया
दिल ही समझा ना है दिल की बात
लहरों से होती क्या साहिल की बात ।
दर्द अपना किसे बताएं लोग जब अब
मुंसिफ़ ही कहता है क़ातिल की बात ।
दिल्ली में कोहराम मचा हुआ है कोई
कीचड़ से सुन कर कमल की बात ।
जमुना का पानी रंग बदलता नहीं कभी
मछलियां जब करती जलथल की बात ।
आई डी दफ़्तर में रखा है सर का ताज़
यही पुरानी आज बनी इस पल की बात ।
गूंगों बहरों की बस्ती में होता शोर बहुत
यही है दिल्ली की हर महफ़िल की बात ।
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1 टिप्पणी:
Munsif hi kahta👌👍
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