जनवरी 05, 2025

POST : 1937 असली भगवान बंदी हैं ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

     असली भगवान बंदी हैं  ( हास-परिहास )  डॉ लोक सेतिया 

आज जो कहना चाहता हूं उसे कविता कहानी ग़ज़ल अथवा निबंध साहित्य की सभी विधाओं से हटकर शायद किसी जीवनी की तरह वर्णन किया जा सकता है । लेकिन ये मेरी अथवा किसी एक व्यक्ति की ज़िंदगी की बात नहीं बल्कि शायद अधिकांश लोगों की दास्तान कहा जा सकता है । सिर्फ औपचरिकता निभाने को इक नाम रखते हैं अजबनी , कोई पुरुष या महिला दोनों संभव है । अजनबी की ज़िंदगी बचपन से लेकर बुढ़ापे तक हर दिन किसी अनचाहे हादिसे से गुज़रती रही है । कभी भी समाज में उसको कुछ भी जैसे मिलना ही चाहिए था मिला नहीं , लेकिन दुनिया ने समझाया कि ऐसा किस्मत में निर्धारित था । अनेक बार अजनबी को अनावश्यक दुःख दर्द और परेशानियां होती रहीं और उन सभी का कारण था कुछ लोगों का अन्य तमाम लोगों से अधिकार छीन कर अपना आधिपत्य जमा लेना । लेकिन अजनबी ने हमेशा उसको भगवान की मर्ज़ी ही मान लिया दोषी अनुचित आचरण करते रहे अपना अधिकार मानकर तमाम लोगों से अन्याय करने को कोई भी नाम कोई कारण कोई बहाना घोषित करते रहे । अजनबी को शराफ़त से रहने का जो सबक पढ़ाया गया था उस में ज़ालिम से ज़ुल्म सहना कायरता नहीं बल्कि समझदारी माना जाता है । सहनशीलता की कोई सीमा होती है पर अत्याचार करने वालों के अन्याय और दमन की कभी कोई सीमा शायद नहीं थी जब भी लगता अब बस बहुत हो चुका उनकी ज़ुल्म करने की सीमा बढ़ती ही जाती रही कोई इन्तिहा नहीं थी उनकी उस से बढ़कर अजीब था उसे कोई मकसद बता कर अनिवार्य घोषित करते रहना । 
 
अजनबी पर घर परिवार के सभी सदस्यों ने अन्याय किया अपमानित करते रहे और उस पर बिना किसी आधार लांछन आरोप लगाकर प्रताड़ित करते रहे । स्कूल में अध्यापकों से सहपाठियों तक ने अजनबी की शराफ़त को कमज़ोरी समझ दंडित करने का कार्य किया उसका आत्मविश्वास ख़त्म करते रहे । दोस्तों से लेकर जीवन में हर दिन जिन जिन से वास्ता पड़ता सभी ने ऐसा ही किया जैसे कहते हैं कि पानी नीचे की तरफ बहता है । अजनबी हमेशा नीचे धरती पर खड़ा रहा जबकि अन्य तमाम लोग किसी ऊंचे आसमान पर खड़े समझते थे कि उनका कद बड़ा है जो वास्तव में नहीं था । जीवन में अनगिनत बार अजनबी को लगता उसे ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए लेकिन फिर सोचता अभी रहने देता हूं दोबारा होगा तो सहन नहीं करूंगा । मगर हर बार इक सोच रोक लेती कि मुझे बुराई का बदला बुराई से नहीं भलाई से देना चाहिए । गलत लोगों को कोई विधाता कर्मों की सज़ा कभी न कभी अवश्य देगा ही । ऐसा भी होता कभी अजनबी सोचता जब गलत आचरण करने वाले मौज में रहते हैं तो उसे भी उन की तरह बनकर जिन पर संभव हो अन्याय या षड्यंत्र कर अपने स्वार्थ साधने चाहिएं पर जब भी ऐसा करने का अवसर होता अजनबी की अंतरात्मा उसे रोकती गलत नहीं करने देती । कभी महसूस होता कि अगर गलत राह पर चलकर सफलता हासिल की भी तो कोई विधाता इस गुनाह की सज़ा देगा जो शायद पहले से खराब ज़िंदगी से भी बुरी हो जाएगी । कहने का अर्थ है कि भगवान पर भरोसा किया कभी उस से डर कर अपनी इंसानियत को बनाये रखा लेकिन दिल को चैन था सुकून था कि कदम डगमगाये नहीं कभी हमेशा सही रास्ते पर ईमानदारी से नैतिक मूल्यों मर्यादाओं का पालन करते रहे । 
 
कोई अदालत नहीं थी जो अजनबी से उम्र भर होने वाले हमलों के दोषी लोगों सरकार धर्म समाज को कभी कटघरे में खड़ा कर निर्णय करती उनको अपराधी साबित कर सज़ा देती । हमारे देश के करोड़ों लोग ठीक इसी तरह से अपनी शराफ़त का बोझ ढोते हमेशा मौत से बदतर ज़िंदगी बिताते हैं , बाकी दुनिया में भी ऐसा होता होगा लेकिन इस तरह उस को उचित नहीं ठहराया जाता सामाजिक धार्मिक अथवा सरकारी नियम कानून व्यवस्था की आड़ लेकर । जिसको पुरातन परंपरा इत्यादि कहते हैं वास्तव में कुछ चालाक लोगों का रचा इक षड्यंत्र है धोखा देने को किसी विश्वासघाती की योजना को ढकने छुपाने को । ताकतवर सत्ताधरी धनवान लोगों के लिए ये सभी कोई परेशानी नहीं खड़ी करते बल्कि उनके लिए सभी कुछ बदल जाता है सुविधानुसार । कभी कभी तार्किक कसौटी पर परखने पर लगता है कि कोई भगवान ईश्वर ख़ुदा उन सभी के गुनाहों की कोई सज़ा नहीं देता बल्कि उनको फलने फूलने देता है जैसे भगवान नहीं दुनिया को कोई शैतान चलाता है और ऊपरवाले का नाम सभी अपकर्मों को उचित समझाने को लिया जाता है । कहीं ऐसा तो नहीं कि वास्तविक ईश्वर भगवान ख़ुदा को किसी ने अपहरण कर अपनी कैद में बंदी बनाया हुआ हो और असली भगवान से मनचाहे ढंग से दुनिया का प्रबंधन करवा रहा हो । 
 
 Mohali: हरियाणा पुलिस द्वारा वांछित 3 हिस्ट्रीशीटर हथियार के साथ पकड़े गए |  Mohali: 3 history-sheeters wanted by Haryana Police caught with weapons  Mohali: हरियाणा पुलिस द्वारा ...

जनवरी 04, 2025

POST : 1936 वैज्ञानिक चिकत्स्क जिनको सामाजिक सरोकार है ( अनूठी मिसाल ) डॉ लोक सेतिया

   वैज्ञानिक चिकत्स्क जिनको सामाजिक सरोकार है ( अनूठी मिसाल ) 

                                 डॉ लोक सेतिया   

बहुत कम ऐसा देखने को मिलता है जैसा 3 जनवरी 2024 के कौन बनेगा करोड़पति के 105 वें एपिसोड में डॉ कन्हैया जी से अनुभव हुआ जो 2500000 रूपये की जीती हुई धनराशि का उपयोग कोई ऐसा ऐप्प बनाने पर करना चाहते हैं जिस से ज़रूरत होने पर निःशुल्क उपयोग कर लोग कैंसर रोग की जांच समय रहते करवा सकेंगे क्योंकि भारत में विलंब होने से पूरा उपचार नहीं किया जा सकता है । शुरआत में उन्होंने बताया कि बनिया समाज में अधिकांश पिता बेटे से अपनी दुकान संभालने को कहते हैं लेकिन उनके पिता ने उनको शिक्षा हासिल करने को कहा । उन्होंने 3 जनवरी 1954 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जी की पहल पर शुरू किया गया भाभा परमाणु रिसर्च सेंटर में न्यूक्लियर मेडिसिन की शिक्षा प्राप्त की और आजकल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान दिल्ली में विभाग के प्रमुख हैं । उन्होंने समाज को जागरूक करने को बहुत सारी जानकारी शो पर देते हुए बताया कि उनका केबीसी पर आने का मकसद यही है । जब भी ऐसे लोगों से परिचित होते हैं जिनके लिए मानवीय संवेदना का महत्व सबसे अधिक होता है दिल को इक राहत मिलती है और ख़ुशी होती है कि कितने लोग आज भी अपने लिए नहीं समाज के लिए चिंतित रहते हैं । 
 
इसे क्या इत्तेफ़ाक कहेंगे कि उस एपिसोड का अंतिम प्रश्न भी ऐसा ही था , रूस में जब लेनिनगार्ड शहर को घेरा गया था और बर्बाद कर दिया गया था तब उस शहर में स्थापित बीज और पौधों की प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों ने पौधों को बचाने को अपनी जान तक दे दी थी भूखे मर गए लेकिन वहां पर सुरक्षित पौधों को नहीं खाया था जब पत्थर तक खाने की नौबत आई थी । अब उस शहर का नाम सैंट पीटरगार्ड है , आजकल क्या ऐसा संभव लगता है कि मानवता की भविष्य की सुरक्षा की चिंता करते हुए पढ़े लिखे लोग अपनी ज़िंदगी तक न्यौछावर कर देते थे । खेद है आधुनिक समाज अपनी सुविधा ज़रूरत और महत्वांकाक्षा से ऊपर नहीं देख पाते हैं । नैतिक मूल्यों पर हम कितना निचले स्तर पर पहुंच चुके हैं ऐसे में कोई अनूठी मिसाल बनकर हमको सही राह दिलखाये तो उसको सलाम करना चाहिए । डॉ कन्हैया जी का अभिवादन करते हैं । 
 

 

POST : 1935 तेरी मेहरबानियां ग़ज़ब हैं ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

          तेरी मेहरबानियां ग़ज़ब हैं ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

साहब की बात सुनकर लगता है जैसे उनका बड़ा कारोबार है उद्योग है करोड़ों का टर्नओवर है जिस से उन्हने अपना कोई घर नहीं बनवाया बल्कि सब देश की जनता की भलाई की खातिर दान दे दिया । उनकी मेहरबानी से अब सभी अपने पक्के घर में रहते हैं , उन्होंने लोगों से कहा ये बात आप भी सभी से कह सकते हैं मेरे नाम पर अर्थात सभी को अधिकार दे दिया शाहंशाह की तरह फरमान जारी करने को । देश में कितने लोग 2024 में बेघर हैं , नवभारत टाइम्स के अनुसार बेघर लोगों की यह संख्या 2023 की तुलना में 18 फीसद ज्यादा है । इसका मतलब है कि देश के हर 10,000 लोगों में से लगभग 23 लोग बेघर हैं । नेशनल लो इनकम हाउसिंग कोलिएशन के अनुसार , जनवरी 2024 में औसत किराया जनवरी 2021 की तुलना में 20 फीसद ज्यादा था । आंकड़ों को देखना चाहें तो सौ करोड़ में 23 लाख 140 करोड़ में 32 लाख बीस हज़ार लोग बेघर हैं । हम सभी को क्षमा मांगनी चाहिए कि हम अपने प्रधानमंत्री को रहने को कायदे का निवास नहीं दे पाए और उनको किसी झौंपड़ी में रहना पड़ रहा है । सत्ता का कितना बड़ा मज़ाक है इतने आलीशान घर में रहते हैं करोड़ों रूपये रोज़ आप पर रहन सहन पर खर्च होते हैं सैंकड़ों करोड़ अपनी उन यात्राओं पर बर्बाद किये जाते हैं जिन से जनता को कुछ नहीं मिलता सिर्फ आपकी हसरत पूरी होती है दुनिया में अपनी पहचान बनाने की और करोड़ों रूपये उपहार दान अन्य आडंबर करने पर आपके लिए विमान खरीदने पर खर्च होने पर भी आपको लगता है जनता पर उपकार करते हैं । 

क्या देश की संसद की ईमारत थोड़ी थी जो इक नई ईमारत बनवाई गई जब देश में सरकार 80 करोड़ लोगों को भूख से बचने ज़िंदा रहने को राशन देने को मेहरबानी समझती है । कभी सोचते हैं आज़ादी के 77 साल बाद ऐसी हालत है तो कैसी व्यवस्था है । दस सालों में आपके दल का राजधानी में आलीशान भवन ही नहीं बना है सैंकड़ों शहरों में आपके दल के दफ्तर की भवन बनाये गए हैं कभी उन सभी का विवरण भी भाषण में जनता को बताते किसी श्वेत पत्र की तरह । इलेक्टोरल बॉन्ड्स से तमाम अन्य कारनामों की सच्चाई कभी तो सभी को मालूम होगी । जिनकी आलोचना आप ने शालीनता की सीमा का उलंघन कर लाखों बार की होगी उन्होंने प्रधानमंत्री बनते ही अपनी करोड़ों की निजी पारिवारिक संपत्ति देश को दे दी थी क्या कोई अन्य ऐसा करता दिखाई देता है ।