ख़ामोश रहो हसरत है उनकी ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
उनकी सियासत मुसीबत है हमारी सत्ता को लगी है इक ऐसी बिमारी , जनता की बड़ी भूल जो की उन्हीं से है यारी । सहयोग करें उनका फ़रमान है जारी , चाकू की शिकायत है मदद करती नहीं पसलियां हमारी , शायर दुष्यंत कुमार पढ़ पाये नहीं आदेश सरकारी । जाने खुद आये या बुलाया गया उनको खफ़ा थे किसी बात पे मनाया गया उनको सब लोग गुनहगार हैं , ये उनकी अदालत है कुछ भी किसी से पूछा नहीं सुना नहीं , बस फैसला था उनका सुनाया गया सबको । तलवार हैं या कि खऱीदार हैं , जाने किस किस बात से रूठे हुए खुद सरकार हैं , अपने मुंह मियां मिट्ठू मियां अपना पक्ष रखता इश्तिहार हैं जनाब , आपका नसीब हाथ जोड़ खड़े हैं सभी चुपचाप ख़ानाख़राब । वो आए कि बुलाए गए कोई फर्क नहीं पड़ता है , लेकिन वो शिकायत सुनने को नहीं खुद शिकयत करने को उत्सुक थे । शिकायतें शिकवे उनको सभी से थे कम नहीं जाने कितने थे लेकिन सब से बड़ी शिकायत थी लोग खामोश होकर उनकी सुन कर यकीन नहीं करते यही उनकी बेचैनी है उनकी नींद में खलल पड़ता है , नींद क्यों रात भर नहीं आती । जाने कब से उनको यही महानता लगती थी कि लोग ही नहीं दुनिया तक उनसे डरती है , किसी को भयभीत करना शूरवीरता नहीं होती है शूरवीर डर रहे लोगों को निडरता का भरोसा देते हैं सत्य हमेशा निडर होकर सच के पक्ष में खड़े होने का पाठ पढ़ाता है ।
सत्ता का रोग ही ऐसा है कि शासक बनते ही सभी अपने बेगाने लगने लगते हैं केवल हां जी कहने वाले चाटुकार अपने परिजन लगते हैं । ऐसा भी होता है हम खुद कुछ सोच कर किसी को आदर दे कर आमंत्रित करते हैं , मगर हम नहीं जानते कि जब किसी को सत्ता मिलती है तो वो शालीन होकर आपकी गरिमा की परवाह नहीं रख अपनी असलियत दिखला ही देता है । शायद शासक बनते ही सभी का आचरण बदल जाता है और जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि खुद को जनसेवक नहीं दाता समझने लगते हैं । अख़बार में पढ़ने को मिलता है जनता की समस्याओं का निवारण करने को आयोजित सभाओं में किसी की परेशानी समझने की जगह शिकायत करने पर ही नाराज़गी जताई जाती है और जैसे फटकार लगाई जाती है । जनता सरकार बनाती है और जनता या कोई भी वर्ग शासक से कोई ख़ैरात नहीं चाहते हैं उनकी बात सुनना उनको इंसाफ़ दिलवाना जिनका कर्तव्य है उनकी भाषा अहंकारी होना बेहद आपत्तिजनक है । बदले बदले मेरे सरकार नज़र आते हैं घर की बर्बादी के आसार नज़र आते हैं । आपको इतिहास बदलना है तो कुछ सार्थक कर दिखाना होगा सिर्फ बड़बोलापन किसी को इतिहास में जगह नहीं दिलवा सकता है ।
जुर्म किया जो उन पर ऐतबार किया उम्र भर बस यही इंतिज़ार किया , अभी तलक जनता को इतनी बात नहीं समझ आई कि चोर चोर होते हैं भाई भाई । सुनानी बांसुरी थी बजाने लगे वो शहनाई लगा जैसे विदाई की घड़ी करीब आई मिला दूल्हा नहीं दुल्हन नहीं यहां है सिर्फ तन्हाई । सलीके से बात नहीं करते समझेंगे क्या किसी की परेशानी जिनको हालत से होती है परेशानी वार्तालाप करना ही बेमानी वहां जाना है नादानी जहां क़द्र नहीं अपनी पहचानी । भले वो कितने बड़े सिंहासन पर बैठे हों अगर सभी का आदर नहीं करते बल्कि कोशिश करते हैं नीचा दिखाने खामोश करवाने की तो ध्यान देना तुलसीदास जी कहते हैं :-
आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं स्नेह
तुलसी तहां न जाइए कंचन बरसे मेह ।
सरकार है बेकार है लाचार है ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
सरकार है , बेकार है , लाचार हैसुनती नहीं जनता की हाहाकार है ।
फुर्सत नहीं समझें हमारी बात को
कहने को पर उनका खुला दरबार है ।
रहजन बना बैठा है रहबर आजकल
सब की दवा करता जो खुद बीमार है ।
जो कुछ नहीं देते कभी हैं देश को
अपने लिए सब कुछ उन्हें दरकार है ।
इंसानियत की बात करना छोड़ दो
महंगा बड़ा सत्ता से करना प्यार है ।
हैवानियत को ख़त्म करना आज है
इस बात से क्या आपको इनकार है ।
ईमान बेचा जा रहा कैसे यहां
देखो लगा कैसा यहां बाज़ार है ।
है पास फिर भी दूर रहता है सदा
मुझको मिला ऐसा मेरा दिलदार है ।
अपना नहीं था ,कौन था देखा जिसे
"तनहा" यहां अब कौन किसका यार है ।
1 टिप्पणी:
..सही कहा..कई बार जनता दरबार मे जनता को ही खरी खोटी सुनाई जाती है न कि समस्या हल की जाती है
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