लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई ' ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
मैं किसी खेल किसी तमाशे की नहीं समाज की देश की वास्तविकता की बात कर रहा हूं । जब खिलाड़ी किसी मैदान पर खेलते हैं तब जीत हार से अधिक महत्व खेल की भावना का होता है जिनको खेल में दिलचस्पी है उनको अच्छा खेल पसंद होता है भले उनका लगाव किसी एक टोली से होता है । लेकिन जब हम देश की समाज की राजनीति की विचारधारा को लेकर बात करते हैं चर्चा करते हैं सोचते हैं वार्तालाप करते हैं तब भले हम किसी राजनीतिक विचारधारा से जुड़े हों किसी राजनेता के प्रशंसक हों हमको सब से पहले उनके आचरण को ठीक से देखना चाहिए और सामाजिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था अपने देश के संविधान और सामाजिक सरोकारों को महत्व देना चाहिए । लेकिन अगर हम इन सब को विरुद्ध गलत और अनुचित आचरण देख कर भी बिना विचार किए किसी के पक्षधर बन कर समाज विरोधी आचरण करने वालों का बचाव करते हैं तो हम खुद अपना कर्तव्य अपनी निष्ठा अपनी देश समाज के प्रति ईमानदारी को छोड़ देश समाज के पतन का कारण बन जाते हैं । इसलिए अपने विवेक से काम लेकर कायरता को चाटुकारिता को छोड़ सही को सही कहना और अनुचित का मुखर होकर विरोध करना चाहिए अन्यथा हम भविष्य में अपने ही देश समाज के इतिहास में दोषी कहलाएंगे । कृपया दलीय विचारधारा से ऊपर उठ कर अपनी राय बनाना चाहिए अन्यथा हम शिक्षित होकर भी अज्ञानता की बात कर सकते हैं । कुछ लोग जिन को पसंद नहीं करते उनकी खामियां खोजते ही नहीं बल्कि जो कभी हुआ ही नहीं उस मनघड़ंत बात को बार बार दोहरा कर खुद भी समझने लगते हैं कि वही सत्य है । ऐसे कितने झूठे तथ्य घड़े जाते हैं प्रचारित किए जाते हैं किसी की छवि को धूमिल कर किसी अन्य की छवि को चमकदार साबित करने की कोशिश में । कभी उसकी कमीज़ मेरी कमीज़ से सफेद क्यों है का इश्तिहार दिखाई देता है आजकल दाग़ अच्छे हैं का विज्ञापन नज़र आना बदलाव की निशानी है कि दुनिया में बेदाग़ कोई नहीं है ।
विडंबना की बात है कि आजकल देश की राजनीति के अपराधियों से मुक्त करवाने की कोई चर्चा नहीं होती है बल्कि शासक दल विरोधी दल के जिन नेताओं को दाग़ी भ्रष्टाचारी कहता है अपने दल में शामिल कर उसी का गुणगान करने लगते हैं । जैसे कभी किसी अदालत ने पुलिस को कानूनन संघठित अपराधियों का गिरोह बताया था आज किसी राजनीतिक दल को ठीक वैसा समझा जा सकता है जब सबसे अधिक अपराधी उसी दल के सांसद विधायक हैं । हम ऐसे लोगों से देश की कानून और न्याय व्यवस्था को सही करने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं जिनको राजनीति में प्रवेश ही बाहुबली और किसी देश प्रदेश में उसकी दहशत को देख कर मिला हो । संविधान से कितना विचित्र मज़ाक किया जाता है जब ऐसे लोग जो नफरत और समाज को किसी न किसी तरह विभाजित करने का कार्य करते रहते हैं शपथ लेते हैं कि संविधान और न्याय तथा निष्पक्षता का पालन करेंगे । नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली कहावत चतिरार्थ होती है ।
शायद हम सदियों पुरानी बड़े बज़ुर्गों की शिक्षाओं को भुला बैठे हैं , जिसे देखो बुर्ज की तरह ऊंचाई की चाहत रखते हैं जबकि वास्तव में ईमारत की बुनियाद को खोखला करने का कार्य कर रहे हैं । नींव को कमज़ोर करने से खतरा होता है बहुमंज़िला भवन तक का धराशाही होने का जैसे आये दिन सामने दिखाई देता है किसी पुल के गिरने से जो हादिसे नहीं आपराधिक चूक से होता है । निर्माण सामिग्री से बनाने वाले से लेकर कितने विभागीय अधिकारी शामिल रहते हैं रिश्वत खा कर कोताही बरतने का गुनाह करने वाले । जब देश की संवैधानिक संस्थाएं तक अपने दायित्व निभाने में नाकाम रहती हैं तब दोष किसी और पर नहीं थोपा जाना चाहिए बल्कि उन सभी संस्थाओं का होना ही व्यर्थ है अगर उन संस्थाओं पर उच्च पदों पर बैठ कर भी उनकी सोच बेहद संक्रीण हो जाती है । नाकाबिल लोगों को सिर्फ सत्ताधारी दल की पसंद के कारण संवैधानिक पदों पर नियुक्त करना देश की जनता संविधान से गंभीर अक्षम्य अपराध है । ऐसे कृत्यों को आंखें मूंद कर होने देना इक भयानक भूल है जिसे लेकर कहा जाता है कि ' ये ज़ब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने , लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई '। ( मुज़फ़्फ़र रज़्मी )
1 टिप्पणी:
आज के संदर्भ में उत्तम आलेख...
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कुर्सी की लाचारी है।
चोरों पर सरदारी है।
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