शिकायत है कोरोना को ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
अपनी तो ये आदत है कि हम कुछ नहीं करते , कोरोना को भी शिकायत है कि हम कुछ नहीं करते। कोरोना कौन है बिन बुलाया महमान है या मुफ्त में हुआ बदनाम है जाने क्या क्या उस पर इल्ज़ाम है। कोरोना से लड़ना मज़बूरी है जब कुछ नहीं समझ आये तो ये कहना ज़रूरी है। सरकार ने उसको अवसर बताया था शायद वोटर समझ प्यार से मनाया था। राजनेताओं ने राजनीति का हथियार तक बनाया मगर कोरोना नासमझ नहीं चालाक निकला किसी दल किसी नेता के हाथ नहीं आया। बात की तह तक जाना होगा सबको आईना दिखाना होगा। एक एक कर सबको मिलवाना है कोरोना का पता क्या है कहां ठिकाना है। हम सभी रोज़ खुद ही मरते हैं जीना नहीं सीख सके बेमौत मरते हैं ज़िंदगी से प्यार नहीं करते हैं मौत पर तोहमत धरते हैं। सोचते हैं क्या क्या किस किस ने करना था जो नहीं किया सभी ने यही किया कुछ भी नहीं किया। कब क्यों किसे क्या क्या करना था क्या नहीं किया कैसे बताएं किस किस को सामने लाएं किसको बचाएं छुपाएं। शामिल हैं इस तरफ से उस तरफ सभी जुर्म के मुजरिम सच सच बताएं।
सरकारों ने अस्पताल कितने बनवाये मगर स्वास्थ्य सेवाओं को तंदरुस्त नहीं रख पाए। अस्पताल नर्सिंग होम डॉक्टर वैद हकीम सरकारी विभाग संस्थाएं नियम कानून सभी कहने को बहुत करते हैं मगर सच समझते नहीं बड़ी बड़ी बातों का दम भरते हैं। दुनिया चांद पर पहुंचने की बात करती है धरती पर इंसान को कैसे जीना है उसकी चिंता नहीं इंसानियत शासकों से डरती है। आपने महल अपने बनाये हैं दुनिया भर को नाप आये हैं देशवासी भूखे नंगे बदहाल हैं आपको नहीं लगते अपने लोग जो अपने हैं बने पराये हैं। कानून कितने बनाये हैं स्वास्थ्य सेवा की बात पर कोई नियम नहीं है धोखे देते हैं धोखे खाये हैं। जैसे अस्पताल नर्सिंग होम क्लिनिक डॉक्टर स्वस्थ्य सुविधाएं होनी चाहिएं सभी को हासिल उसकी वास्तविकता बड़ी निराशाजनक खराब है। लापरवाही बेहिसाब है कोई नहीं देता सवाल का जवाब है। मर्ज़ बढ़ते गए ईलाज करने से ये क्या आशिक़ी निभाई है। ये चिकिस्या है कि राम नाम की लूट है मनमर्ज़ी की छूट है।
पुलिस वालों को समझ नहीं आया इतना बड़ा गुनहगार उनके हाथ नहीं क्यों आया है। जाल बिछाया नाका लगाया है हिरासत में नहीं आया है नहीं तो उनसे बच नहीं पाता ज़मानत मिलती खिलाने पिलाने से भागता किस तरह पुलिस थाने से मुठभेड़ में मारा जा सकता था। अपनी असलियत छुपा सकता था झूठ को सच साबित करने को झूठी हवाही सबूत दिखला सकता था। कोई वकील अदालत को यकीन दिला सकता था बेवजह फंसाया है जुर्म कर नहीं सकता है। मासूम है बेचारा है कोरोना हालात का मारा है रहम की भीख मांगता है सब उसको ख़त्म करना चाहते हैं पनाह मांगता है। पुलिस को मिलता कोई सुराग नहीं सीबीआई का भी जवाब नहीं। लिखने वालों ने किया क्या है कोरोना की कहानी नहीं लिखी ये बताते कि कथा क्या है। धर्म वाले भी नहीं पहचान पाये दैत्य है कि कोई अवतार है उसका सारा संसार है क्या कलयुग का भगवान है उसका मंदिर कोई बनाया है ये शाम का लंबा होता साया है। न्यायपालिका हैरान है अदालत में अनचाहा महमान है अदालत का रखता नहीं सम्मान है नासमझ नहीं नादान है खो चुका पहचान इंसान है।
टीवी अख़बार वाले ढूंढते आतंकवादी गुनहगार से साक्षात्कार करते हैं कोरोना को स्टूडियो में बुलाया नहीं अपनी हैसियत को बढ़ाया नहीं। चर्चा बहस बेकार झूठी बेमतलब बिना मकसद करते रहे विज्ञापन से तिजोरी भरते रहे कोरोना से यारी की न दुश्मनी की है भूल की है बहुत बड़ी की है। दर्शकों को क्या समझाया है खुद उनको कुछ भी नहीं समझ आया है। कोरोना को भगाना है हराना है बस यही इक तराना है दिन रात फोन पर बजाना है आपको सुनाना है समझाना नहीं डराना है। डर के आगे जीत नहीं होती है जग की ऐसी रीत नहीं होती है बॉलीवुड महात्मा गब्बर सिंह जी समझाते थे जो डर गया समझो मर गया। अपनी हालत यही हो गई है तेरा क्या होगा कालिया सरकार मैंने आपका नमक खाया है अब गोली खा। कितने आदमी थे सांभा खामोश है बसंती नाचेगी जब तक सांस चलती है कोरोना की बड़ी गलती है खुद सामने नहीं आता है जबकि उसके पास जाने किस किस का बही खाता है। जिनको जीना नहीं आया न मरना ही आया हम ऐसे लोग हैं जिनको कुछ करना नहीं आया। सोशल मीडिया पर बकवास लिखते हैं सच पढ़ना नहीं आया समझाते सभी को हर विषय खुद समझना नहीं आया। कोरोना को शिकायत है कि हम कुछ नहीं करते , अपनी तो ये आदत है कि हम कुछ नहीं करते।
1 टिप्पणी:
प्रश्न पूछता लेख👌
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