ज़िंदगी तू बेवफ़ा क्यों है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
ज़िंदगी तू बेवफ़ा क्यों है 
मौत भी रहती खफ़ा क्यों है । 
बेगुनाहों को सज़ा देना 
इस जहां का फ़लसफ़ा क्यों है । 
क्यों इनायत है रकीबों पर 
और हम से ही जफ़ा क्यों है । 
तू ही क़ातिल भी मसीहा भी 
बेवफ़ा तुझसे वफ़ा क्यों है ।  
ऐतबार सबके मिटा  देना  
ये ही "तनहा" हर दफ़ा क्यों है ।  

2 टिप्पणियां:
बहुत सुकून मिला आपका ब्लॉग देख कर| पुराने दिनों की याद आ गई जब चिटठाजगत नाम का वेबसाइट भी हुवा करता था|
दिल को छू देने वाला लेख|
Wahh 👌👍
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