मार्च 24, 2020

मौत से डर के जीना छोड़ दोगे ( व्यंग्य कथा ) डॉ लोक सेतिया

   मौत से डर के जीना छोड़ दोगे ( व्यंग्य कथा ) डॉ लोक सेतिया 

     शीर्षक से समझ सकते हैं " करो- ना " का उल्टा है ना करो। कुछ भी नहीं करना घर बैठ चिंतन करना है। इसी को कहते हैं जब किसी का वक़्त आता है तो हर तरफ उसकी धूम मची होती है। अब लग रहा है दिल के रोग कैंसर का रोग किडनी का डॉयबिटीज़ का जिगर का शरीर के हज़ारों रोगों का नाम निशान बाकी नहीं है। कोई किसी और रोग से मरने से नहीं घबराता बस इक रोग की दहशत है हर कोई उस से बचना चाहता है। गब्बर सिंह का रुतबा पचास कोस तक था लादेन का कुछ देशों तक मगर इन का भय उन देशों तक को है जिन्होंने दुनिया को अपनी ताकत से डराने और अपने आधीन करने के मनसूबे पाल रखे थे। हर सेर को सवा सेर मिलता है ये शाश्वत सत्य है। 

      कहीं बैठा कोई किसी को अपनी वास्तविकता बता रहा है। आज मेरा समय है मगर मुझे भी खबर है मेरा भी अंत इक दिन होना है अहंकार करने वालों का अंजाम यही होता है। लोग गीता रामायण बाईबल कुरान गुरुग्रंथ साहिब को भूलकर जाने किस किस को सुबह शाम रटने लगे थे। भगवान से मंदिर मस्जिद बड़े लगने लगे थे और हर किसी ने कितने लोगों को इन सभी से बढ़कर समझ लिया था। किसी को कोई साधु किसी को कोई अभिनेता किसी को कोई खिलाड़ी किसी को कोई राजनेता किसी को कोई योगी किसी को कोई झूठ का कारोबारी किसी को दुनिया का सबसे अमीर उद्योगपति अपना आदर्श लगता था। अब इन सभी से किसी को कोई उम्मीद नहीं रही कि हमको बचा लेगा क्योंकि ये सभी तथाकथित ऊंचे रुतबे वाले खुद ही बहुत बौने साबित हो गए हैं। हम हैं ना अब इनसे कोई भी आपको ये दिलासा नहीं देने वाला। हर किसी को अपनी जान की पड़ी है भाई जान है तो जहान है। 

     कल इक दोस्त ने चार शब्द लिखे थे अपनी फेसबुक पोस्ट पर। " प्यास लगी है , चलो कुंआं खोदें ''। बात नई नहीं है हमने यही ही नहीं किया बल्कि हम तो उल्टा करते रहे हैं। ये मेरा पानी ये मेरी नदी ये धरती मेरी है सब अपने खातिर मानवता को दरकिनार कर अब खामोश हैं सभी आपसी मतभेद भूलकर अपनी अपनी जान को लेकर चिंतित हैं। उधर जितने भी बाकी रोग हैं खिलखिला रहे हैं जैसे राजनेताओं को किसी अदालत ने बेगुनाह करार दे दिया हो। अब सारे इल्ज़ाम उसी एक के सर जाने हैं अभी तक जितने लोग उन रोगों से मरे उनकी मौत स्वाभाविक समझी जानी चाहिए क्योंकि इक इस रोग को छोड़ कोई और रोग कभी था ही नहीं तभी हर देश और सरकारी स्वास्थ्य विभाग से विश्व स्वास्थ्य संगठन तक इक इसी को लेकर चिंतित हैं। कितने झगड़े कितनी नफ़रतें जो नहीं कर सके इक बिमारी ने कर दिखाया है।

               आप क्या हैं कोई दानव हैं राक्षस हैं या कोई अवतार देवी देवता क्या हैं। जवाब मिला देखो आपकी यही गलती है हर बात को किसी अंधविश्वास से मिलाने लगते हैं। अब भले कोई मुझे गाली दे या मेरी बढ़ाई करने की बात मूर्खता होगी। कोई अब भी मुझे अपना कारोबार बना सकता है मगर ऐसा कर मुझसे बच नहीं सकता है। मुझे किसी ईश्वर ने नहीं भेजा बनाया ये यहीं के दुनिया वालों की देन है। कितने नासमझ इंसान हैं विनाश के हथियार बनाने पर अपनी ताकत दिखलाने पर धन समय ऊर्जा संसाधन बर्बाद करते रहे और चांद से लेकर मंगल तक की बात की मगर वास्तविक मानवता का मंगल और उजाले की चिंता ही नहीं की अन्यथा कुदरत ने इतना सब दिया था जिस से दुनिया में सभी की सब ज़रूरत पूरी की जा सकती थी। अभी भी जाने कितने देश और लोग विचार कर रहे हैं कि हम बच गए तो मेरा उपयोग धंधा बढ़ाने में करना है। ये आपकी दुनिया खुद ही मौत की सौदागर है मौत को इतना बड़ा कारोबार बना दिया है। आदमी की ज़िंदगी की कीमत समझते कहां हैं , ये जिन्होंने देश दुनिया को इंसान के लिए सुरक्षित बनाने का काम करना था उन्हीं लोगों ने इंसानियत और कुदरत से खिलवाड़ किया है और नतीजा सामने है।

        मैं इनको क्या सिखला सकता हूं जब गांधी नानक कबीर और तमाम महान आत्माओं को इन्होने दिखावे और आडंबर का माध्यम बना लिया है उनकी विचारधारा की धज्जियां उड़ाई हैं। गांधी जी की सादगी और नानक कबीर जैसे संतों की क्या गीता रामायण तक को समझने नहीं अपने अपने हित साधने स्वार्थ पूरे करने को दुरूपयोग किया जाता रहा है। पाप अधर्म का फल कड़वा ही होना था मगर लोग भूल गए हैं कि ऊपर वाले की लाठी आवाज़ नहीं करती। अपने बबूल बोये हैं तो कांटें भी मिलने हैं आम कैसे मिलते। अभी भी सही मार्ग पर चलकर अपने इंसानों की स्वास्थ्य शिक्षा और सभी की बुनियादी ज़रूरतों को ध्यान रखते हुए धन संसाधनों का सदुपयोग करें। अस्पताल स्कूल शिक्षा के मंदिर विद्यालय निर्मित करें सच्चा धर्म और ईश्वर की अर्चना दीन दुखियों के दर्द दूर करने को कहते हैं। समाज को अपनी मानसिकता को स्वस्थ बना लेंगे तो किसी भी अनहोनी से घबराने की ज़रूरत नहीं होगी। रोग पाप अन्याय से लड़ने को सत्य और ईमानदारी के मार्ग पर निस्वार्थ कर्म करने की ज़रूरत होती है। खाली बातों से कुछ भी हासिल नहीं होता है। जब तक ज़िंदगी है ज़िंदादिली से जीना सीखो मरना होगा तो मर ही जाना है। कुछ गीत कुछ बोल जीवन के आखिर में दोहराता हूं।

      जीने का अगर अंदाज़ आए तो बड़ी हंसी है ये ज़िंदगी , मरने के लिए जीना है अगर तो कुछ भी नहीं है ये ज़िंदगी। अभी तो जीने का हौंसला कर लें जब आएगी मौत तो उसका भी स्वागत करेंगे। घबराने की कोई बात नहीं है इस दुनिया में कोई बचकर नहीं रहा। सब चले गए हमको भी जाना ही है। मौत से डर डर कर जीये तो जीये क्या ख़ाक। अब जीने सीख लें हम सभी मौत से सामना करने से पहले। मौत है इक लफ्ज़ ए बेमानी , जिसको मारा हयात ने मारा।  शायर कहता है गलत तो नहीं है। हमने जीना सीखा ही नहीं। सोचो कितने उपदेश देते रहे हर किसी को अनमोल वचन संदेश भेजते रहे। बस फिर से उनको याद करें और समझें तो बात आसान हो जाएगी।

                  अपने लिए जिए तो क्या जिए तू जी ऐ दिल ज़माने के लिए।
                   बुझते दिए जलाने के लिए तू जी ऐ दिल ज़माने के लिए।

    अब छोड़ो ये लफड़ा कब कौन कैसे उठेगा। सफर फिल्म का डायलॉग है हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं जिनकी डोर ऊपर वाले के हाथ है कब कौन कैसे उठेगा कोई नहीं जानता। जीना सार्थक है अगर कुछ भी अच्छा कर जाओ। बीती जो बेकार थी जितनी बाक़ी है उसको कुछ अच्छा करने में लगाएं तो ज़िंदगी का मकसद होगा। सौ साल जीना ज़रूरी नहीं है जितना भी है उसको भरपूर जीना है तो अपने नहीं औरों के लिए जिओ।

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