अक्टूबर 22, 2019

POST : 1216 शराफ़त की नकाब ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

       शराफ़त की नकाब ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

   कल चुनाव में चर्चा थी फलां व्यक्ति शरीफ है इसलिए लोग उसको वोट देंगे। मुझे ये वास्तविकता अनुभव से कई साल पहले समझ आ गई थी कि राजनीति में आने वाले नेताओं की शराफ़त नई नवेली बहु की तरह होती है लाज का घूंघट दो दिन में उतर जाये या कुछ महीने लग जाएं हालात पर निर्भर होता है। ससुराल में बहुरानी और राजनीति में आदमी आता है मन में छुपाकर सबको उनकी औकात दिखाने की भावना को। साफ शब्दों में शराफत की नकाब नेता लोग सत्ता मिलते ही उतार फैंकते हैं और असली रंग दिखाने लगते हैं। ये राजनीति का बाज़ार वैश्या का कोठा है जिस पर आकर अस्मत का सौदा होते ही शर्म का पर्दा उतारना ही पड़ता है। विधायक संसद बनते ही लोग किसी बड़े राजनेता के हाथ की कठपुतली बन जाते हैं। कठपुतली करे भी क्या नाचना तो पड़ेगा डोर किसी और के हाथ है उसकी मर्ज़ी है जिस तरह मर्ज़ी नचवा सकता है। आनंद का नायक नाम बदलता रहता है हंसी मज़ाक में दोस्त बनाने को समझाता है जॉनी वाकर जैसा कलाकार कि दुनिया के रंगमच पर हम सभी कठपुलियां हैं जिनकी डोर ऊपर वाले के हाथ में है कौन कब कैसे उठेगा कोई नहीं जानता। डॉयलॉग सुपर हिट है फ़िल्म का अंत भी टेप रिकॉर्डर की आवाज़ से होता है। नायक अंतिम सांस लेता है और टेप रिकार्डर चालू होता है , दोस्त आता है और आवाज़ सुनाई देती है। 
 
" बाबूमोशाय हम सब तो रंगमंच की कठपुलियां हैं जिनकी डोर ऊपर वाले के हाथ है , कब कौन कैसे उठेगा कोई नहीं जानता   .................... ( थोड़ी ख़मोशी )  हाहाहाहा। 

            अंतर है फ़िल्मी कहानी में सच्चाई विचलित करती है दिल दर्द से भर जाता है। राजनीति में सत्ता का रावण अट्हास करता है तो आपकी रूह कांप जाती है। कल की बहु आपको नाकों चने चबाबे का सुना हुआ मुहावरा समझा देती है। मुल्तानी भाषा की कहावत है उहो अच्छा जेड़ा कोयनी डिट्ठा। आज़ादी के बाद देश की राजनीति ने शराफ़त का चोला उतार दिया था बीस साल बाद तो बिलकुल नंगी हो गई थी। अपने फ़ैशन बदलते देखा महिलाओं को कपड़े तन ढकने को नहीं दिखाने को पहनते हैं की सोच बदलते देखा। आपको भीतर राजनीति कैसे बदलती रही पता ही नहीं चला आपको जो लगता है जश्न है पार्टी चल रही है वास्तव में कोई किसी को नंगा करने को आतुर है तो कोई खुद अपने को परोस रही होती है बेहूदगी का नाच दिखला कर। कला के नाम पर फ़ैशन की आड़ में वासनाओं का खेल जारी है अब फ़टे हुए कपड़े चीथड़े उधड़े हुए अमीर और आधुनिक होने की निशानी है। सत्ता की राजनीति इन सबसे बढ़कर है ज़मीर बेचने को तैयार हैं सब के सब कीमत लगवाने की होड़ लगी है। देश सेवा जनता की भलाई की अच्छी बातें चुनाव तक ठीक विवाह से पहले लड़की की ससुराल को ही अपना घर सास ससुर माता पिता अदि जैसी बातें मगर सत्ता मिलते नेता और शादी होते ही पड़की असली रंग दिखलाते हैं। दामाद भी तब पता चलता है जो कहता था कितना सच झूठ था , चांद तारे के सपने चुनावी वादे साबित होते हैं और खींचातानी होती है पति पत्नी में कौन भला कौन चालाक का खेल जारी रहता है अनंत काल तक।

       अच्छे दामाद अच्छी बहुरानी किस्मत वालों को नसीब से मिलती है और ख़ुशनसीन थोड़े लोग होते हैं। बदनसीबी अधिकांश के हिस्से में आती है। अच्छे सच्चे ईमानदार राजनेता विरले ही दिखाई देते हैं बेशक मां के पेट से कोई खराब नहीं पैदा होता की तरह राजनीति में आने से पहले कभी सभी शरीफ लोग हुआ करते थे मगर फिर शरीफों ने ही बदमाश लोगों को साथ मिलाने का काम शुरू किया और बदमाश लोगों ने शरीफ लोगों को अपने जैसा बना लिया। शराफत आजकल चेहरे को ढकने को नकाब की तरह है अपने अंदर सभी गुंडागर्दी करने का इरादा छिपाए रहते हैं। सोने में धतूरे से हज़ार गुणा नशा होता है सबने दोहा सुना है सत्ता धन दौलत का नशा उस से लाख करोड़ गुणा अधिक होता है। पैसा ताकत शोहरत और सत्ता का अहंकार वो ताकत हैं जो विवेक को रहने नहीं देते हैं। भले बुरे की परख रहती नहीं है राजनीति के दरबार की रौशनी की चकाचौंध अंधा कर देती है। भाषण ऐसी कला है जिस में मीठा झूठ जनता को बेचकर नेता लोग सत्ता की सीढ़ी चढ़ते हैं और अच्छे भाषण की विशेषता यही है कि नेता जो कहता है हम देखते हैं उसके विपरीत आचरण करता है फिर भी ऐतबार करते हैं झूठी बातों पर जब तक कोई बड़ा कारनामा सामने नहीं आता जिस में उसकी असलियत पता चलती है तो हैरान होते हैं कि जिस ने महिला सुरक्षा की बात से मोहित किया था उसी के हरम में महिलाओं से वासना का गंदा खेल खेला जाता रहा बंदी बनाकर। सच्चे आशिक़ और सच्चे देशभक्त नेता इतिहास की कथा कहानियों की बात रह गई है। अब हम्माम में सभी नंगे हैं।      

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