अक्तूबर 04, 2019

ज़िंदगी न शिकवा न चाहत ही है ( खुद से बात ) डॉ लोक सेतिया

 ज़िंदगी न शिकवा न चाहत ही है ( खुद से बात ) डॉ लोक सेतिया

        चैन है सुकून है कोई आरज़ू नहीं फिर भी आज भी इक प्यास है अनबुझी सी काश कोई अपना दोस्त अपना हमदम हमराज़ हमख्याल मिल जाता। मुझे दौलत राजनीति और दुनियादारी की फ़िज़ूल बातों से खीझ सी होती है और कोई नहीं जो बाकी सब बातों को छोड़ कर अपनी मेरी ज़िंदगी की बात करे। घंटों साथ बैठ कर भी समय का गुज़रने का एहसास नहीं हो , हो कोई जो दिल के पास भी हो और दूर होने का कोई एहसास भी न हो। जो सब लोग चाहते हैं मुझे उस सब की ख्वाहिश कभी नहीं रही जो मुझे ज़रूरत है बस वही कहीं कभी नहीं दिखाई दिया। निराशा नहीं है कोई उम्मीद भी नहीं है शायद दिल भरा भी नहीं जीने से और जीने की कोई आस भी नहीं है बची हुई। मौत से कोई डर नहीं है ज़िंदगी से कोई घबराहट नहीं है मांगना नहीं कुछ भी ज़िंदगी से भी न ही मौत से भी। थक गया हूं चलते चलते थोड़ा आराम करना चाहता हूं फिर सफर पर आगे बढ़ने से पहले। चलते चलते उस जगह पहुंच गया हूं जहां रास्ता बंद है किसी बंद गली की तरह मगर उस गली में मेरा कोई घर तो नहीं है वापस मुड़ने का साहस बचा नहीं और आगे कोई राह दिखती नहीं है। कोहरा छाया है घना अंधेरा सा है मुमकिन है भौर होने पर नज़र आये कि बंद गली वास्तव में कोई फैला हुआ मैदान है और जिधर जाना हो जा सकते हैं। सफर पर कोई साथी नहीं है किस से बात करूं अपने आप से दिल से दिल की बात करने लगा हूं। 

        मैंने यही किया जाने क्यों मुझे और कुछ भी समझ नहीं आया। सब ऊपर जा रहे थे शोहरत दौलत की बुलंदी को छूने को और मैंने नीचे जाने को उचित समझा। विपरीत दिशा को जाते लोग हैरान होते होंगे शायद मुझे पहाड़ से उतरते देख निचली तरफ जाते देख कर जिस तरफ कुछ भी नज़र नहीं आता था। हर तरफ पहाड़ियों के बीच थोड़ी से जगह खड़े होने को धरती पत्थरीली सी मुझे शायद आकर्षित कर रही थी। वहां कोई बसेरा नहीं बन सकता था जैसे हर तरफ कोई दीवार खड़ी थी लिपटने को आंख बंद कर खड़े खड़े कुछ नींद लेने को। मगर बहुत ख़ामोशी और सुकून मिल रहा है फिर भी लगता है थकान मिट जाएगी आराम करने से मगर उसके बाद किधर जाना है क्या कोई राह मिलेगी किसी जगह कोई दरार और गहराई को जाने को। ऊंचाई से डरता हूं चढ़ाई से घबराहट होती है सांस फूलती लगती है। थोड़ी झपकी लगी तो लगा जैसे कोई था जो हाथ में हाथ थाम मुझे साथ चलने को कह रहा था अभी अभी तो था बस वही जिसकी तलाश थी। लगता है पल भर में फिर वापस आएगा यहीं उसी का इंतज़ार करना है।

      सोचता हूं कोई सफर हो जिस में इक साथी हाथ में हाथ थामे चल रहा हो तो कठिन डगर भी आसानी से कट जाये। शायद ये सपनों की बातें हैं दुनिया में वास्तव में कब कोई हमेशा साथ चलता है। सैर पर मुझे अकेले चलने की आदत है फिर भी कभी लगता है कोई दोस्त होता कुछ पल दिल की दुनिया की बात करते खो जाते बचपन की यादों में। मुझ में कुछ कमी है जो जीवन भर कोशिश की फिर भी इक दोस्त नहीं बना सका जो समझता मुझे और चाहता मेरा साथ। फिर कभी लगता है शायद अच्छा है मैं अकेला हूं वर्ना खुद से भी अलग हो जाता मुमकिन है। कितने दोस्त बनाये भी और अपने सभी रिश्ते भी मिले हैं मगर न जाने क्यों इक खालीपन या सूनापन बाकी है किस बात की कमी है जो दिल को हंसने खुश रहने को ज़रूरी होती है। मुझे नहीं गिला शिकवा किसी से हर किसी को मुझी से शिकायत है कोई न कोई। कैसे कोई सबको खुश रख सकता है सब जानते हैं ये बात मगर इतना तो हो कि ऐसा नहीं लगे कि हर किसी को परेशानी है मेरे कारण। अजीब सी कश-म-कश है ज़िंदगी की। उलझन नहीं कोई और उलझ गया हूं अपने ही ख्यालों में। इंतज़ार है किस बात का नहीं जानता मगर है इंतज़ार बस वही कुछ वक़्त खुलकर जीने की आरज़ू है। 




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