जून 15, 2017

शुद्धिकरण की ज़रूरत ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

      शुद्धिकरण की ज़रूरत ( तरकश )  डॉ लोक सेतिया

    मुझे इक कवि की वो कविता आई याद , जो उन्होंने लिखी थी जयप्रकाश नारायण जी के आंदोलन को लेकर सत्ता पर कटाक्ष करते हुए। सब दरवाज़े बंद कर लो खिड़कियों के पर्दे गिरा दो क्योंकि एक सत्तर साल का बूढ़ा आदमी निकल पड़ा है बिना कोई हथियार लिए सच बोलता हुआ। कल वही देखा बहुत लोगों की बड़े बड़े पदों पर बैठे तथाकथित पढ़े लिखे सभ्य भाषा में अच्छी अच्छी बातें बोलने वालों की सारी सभ्यता सब शराफत तमाम शिष्टापूर्ण आचरण नग्न हो गया जान 6 6 साल का इक आदमी मैं जा पहुंचा उनसे सवाल करने। ऐसा क्या तूफ़ान खड़ा हो जाता अगर मैं उनको दिखला देता आपकी सजावट झूठी है , गंदगी वहीं है जिस जगह आपने कार्पेट बिछाया हुआ है। इस तरह मैंने अपने सामने खूबसूरत लिबास पहनी सभ्यता को नंगा देखा , ऐसा कोई पहली बार तो नहीं हुआ मगर जिस तरह हुआ वो पहली बार था। आप इतने लोग इतनी व्यवस्था ताम झाम साथ लेकर साबित करने आये थे हम स्वच्छता की बात करने आये हैं और आपके आचरण की गंदगी सामने आ गई। अभी उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री बनते किसी भगवा वेषधारी ने पहले वाले शासक के खाली किये घर को गौ मूत्र से धुलवा पूजा पाठ से शुद्ध कर ग्रहप्रवेश किया। काश कोई उपाय इस सड़े गले लोकतंत्र की शुद्धि का भी होता और पहले विधायक संविधानानुसार अपना दायित्व निभाते नेता चुनते न कि आलाकमान किसी का मनोनयन कर देश की राजधानी से तय करता किसको आपने अपना नेता चुनना है जो मुख्यमंत्री कहलायेगा। चार दिन तक फिर नए मंत्री मीडिया को साथ लेकर दफ्तरों से पान की पीक साफ कराते मिले , किसी को व्यवस्था और कार्यप्रणाली पर लगे निरंकुशता के अन्याय और मनमानी से सत्ता शासन के दुरूपयोग के दाग़ धब्बे नज़र नहीं आये। पिछले सप्ताह मैं अपने शहर के सचिवालय गया किसी सरकारी काम से तो देखा अगले दिन मुख्यमंत्री को आना इसलिए बहुत स्वच्छता का प्रबंध किया गया है मगर जहां सब अधिकारी बैठे काम कर रहे थे उनके पीछे रखी मेज़ों जिन पर तमाम फाइलें रखी थी जाने कितनी धूल जमी हुई थी जो भीतर जाकर देखी मैंने बाहर से किसको नज़र आती। सफाई करना नहीं की हुई दिखाना था। 
 
                                     ये कैसी विडंबना है सत्ता मिलते हर नया शासक खुद को पाक साफ दूध का धुला बतलाता है और जो जो पहले थे सब अपराधी पापी थे कहने लगता है। जबकि तमाम लोग जो तब उधर थे आज आपकी सरकार में शामिल हैं। आपका दल क्या गंगाजल है जिसमें आकर नहाये अपराधी भी पुण्यात्मा बन जाते हैं जब उनसे आपकी सरकार बहुमत साबित करती है। बड़े बड़े वादे किये हुआ कुछ नहीं , उल्टा जो जो कहते थे पहली सरकार गलत करती है उसको ही करते रहे और अधिक मगर अब अच्छा बताकर। व्यवस्था तो बदली नहीं आपकी सोच बदल गई हर बात पर , अपनी कही बाद के उल्ट करना सत्ता पाकर बिना लाज शर्म क्या बात है। जनता को बदलाव नज़र नहीं आता , केवल बदले विज्ञापन दिखाई देते हैं , महानता के खुशहाली के। मगर ख़ुदकुशी करते किसान और बेरोज़गार होती युवा पीढ़ी को विज्ञापन नहीं अधिकार चाहिएं। देश विदेश की यात्रा और हर जगह जाकर धार्मिक होने का दिखावा नहीं आपको अपना राजधर्म निभाना था। आपको गरीबों की सुध लेनी थी मगर आप केवल अपने दल को सत्ता दिलवाने तक की सोच लिए रहे और अभी भी आपको वादे निभाने की चिंता नहीं है , चिंता अगला चुनाव जीतना है की है। इस पर भाषण देते देश की खातिर सब त्याग दिया है। अगर सत्ता पाकर सादगी से रहते और जो अभी तक होता आया जनसेवक बन शाही जीवन जीना तो कोई बात भी थी।  मगर आपने तो सब पहले से और अधिक हासिल किया और अपने गुणगान पर देश का खज़ाना लुटवाया मीडिया वालों के मुंह बंद रखने को। महलों में राजा महाराजा की तरह रहते गरीबों के मसीहा होने का दम भरना कितना भद्दा मज़ाक है। हर शासक अपना खज़ाना भरता है गरीबों की कमाई छीन कर , सत्ता से बड़ा कोई भिखारी नहीं है। सरकारों की तिजोरी भरती ही नहीं कभी भी किसी भूखे राक्षस के पेट की तरह। 
 
                           आज़ादी का ऐसा ढंग ऐसा रूप होगा शायद उन्होंने इसकी कल्पना भी नहीं की थी जो देश की आज़ादी की खातिर कुर्बान हुए। कलयुग इसी को कहते हैं , चोर डाकू लुटेरे सब गरीब जनता से छीनी कमाई से आलिशान महलों में रहते हैं और देवताओं का भेस धारण किया हुआ है। सबने पहले साधु संतों के आत्मिक शुद्धि के लिए सन्यास लेने की कथाएं पढ़ी सुनी हैं। कभी किसी ने किसी कुटिया की मकान की शुद्धिकरण की बात कही हो नहीं पढ़ा सुना। ये कोई नए तरह का धर्म है। आप किस शुद्धिकरण और स्वच्छता की बात करते हैं जब तमाम अपराधी आपके दल में शामिल हैं , तमाम बाहुबलियों से आपका भाईचारा है। सब से ज़्यादा गंदगी उसी राजनीति में है जिस कीचड़ में आप खुद भी हैं। आप किसी और नेता पर कटाक्ष करते हैं नहाते समय रैनकोट पहनते हैं तभी कोई दाग़ उन पर नहीं लगा। अपने सुंदर वस्त्र के नीचे कभी तो देखा होगा भीतर कितनी मैल है। मन का मैल गंगा स्नान से भी नहीं मिटता आप जानते हैं। अदालत बेगुनाह बताती है का मतलब कभी ये नहीं होता कि कत्ल हुआ नहीं , कातिल पर इल्ज़ाम साबित नहीं होना निर्दोष होना नहीं है। काश कोई डिटरजेंट बना होता ऐसा जो राजनीति के मैल को साफ कर सकता। अगर कोई संत महात्मा पंडित मुल्ला पादरी ज्ञानी उपाय जानता हो इंसान के मन की सोच को साफ करने का तो देश की जनता अपना सब कुछ देकर भी सब दल के नेताओं को मन आत्मा से शुद्ध करवा लेती और सब समस्याओं से निजात मिल जाती। सब से अधिक गंदगी वहीं हैं जहां पर सत्ता के लुभावने शानदार कारपेट बिछे हैं।

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