जून 06, 2017

आपके बिना साजन ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

           आपके बिना साजन ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

       मैं ऐसा सोचती थी या समझती थी कह नहीं सकती , मगर मानती ज़रूर थी साजन तुम बिन नहीं जी सकूंगी। जब भी कोई बात होती और मुझे या साजन को अलग होना होता तब यही कहते दोनों क्या करें मज़बूरी है दूर जाना है। दिल नहीं चाहता तब भी जाना ही होगा। अपने अपने मतलब की खातिर समझते थे यही प्यार है इक दूजे का साथ होना। उम्र बिता दी और सच कहूं इक बेगुनाह मुजरिम की तरह रही किसी ज़ालिम की कैद में। हर दिन एहसास करवाया जाता मुझ पर रोज़ उपकार किया जाता है , जबकि वास्तव में किसी की गुलामी खुद कबूल की थी जाने किस डर से। चार दिन पहले इक महिला ने लिखा अपनी फेसबुक पर कि महिला और परिंदे पिंजरे में रहते खुद को सुरक्षित समझते। मुझे हैरानी हुई पढ़कर भला कोई पंछी पिंजरे में खुश रह सकता है। कोई महिला दिल से किसी की गुलाम बन खुश हो जी सकती है। शायद उस को अपने पति के नहीं रहने का दुःख होगा , मगर मैंने कई महिलाओं को देखा उनको जीना आया ही तब जब किसी कारण उनके जीवन साथी नहीं रहे या अलग हो गए। घुट घुट कर जीने से अच्छा है आज़ाद हो खुद ज़िंदगी से लड़ना। अभी तक आप इसे किसी दुखियारी की व्यथा समझे तो आप नहीं समझे , ये किसी अबला नारी की बात नहीं है। आज देश भर में डॉक्टर्स हड़ताल पर हैं , आज मुझे समझना मैं रोगी होती तो मुझे इस से क्या होता , क्या मैं इलाज नहीं मिलने से मरती या इलाज ही से मौत आती। क्योंकि मौत आनी है आएगी इक दिन जान जानी है जाएगी इक दिन , ऐसी बातों से क्या घबराना।
 
         टीवी पर देखना आपको हाहाकार होने की खबरें देखने को मिलेंगी दिन भर। शाम तक अख़बार वाले बता देंगे कितने लोग मर गए आज बिना इलाज मिले। क्या इलाज होता तो नहीं मरते किसे खबर , अभी तक तो कोई ज़िंदा बचा नहीं दुनिया भर में। धनवान लोग कभी नहीं मरते अगर पैसे और इलाज की सुविधा से मौत से बचा जा सकता। आपको बता देना ज़रूरी है ये बात मैंने गांव के इक बनिये से सुनी थी जो किसी क़र्ज़ मांगने वाले को समझा रहा था अगर तुम सोचते हो पैसे मिल गए तो किसी अपने को बचा लोगे तो बताओ ये जो चौधरी हैं गांव के अपने दादा जी को मरने देते। लाख टके की बात थी मैंने गांठ बांध ली , जीना मरना किसी के बस में नहीं है। अब अगर किस्मत में लिखा है डॉक्टर के हाथ से मरना तो इलाज को पैसे भी मिल ही जायेंगे अन्यथा मौत तो कीमत मांगती नहीं। लेकिन आज इक बात का अध्यन किया जा सकता है , वो इसका कि आंकड़े देख तय किया जाये आज कितने लोग मौत की गोद में समाए और कितने पिछले दिन जब डॉक्टर्स काम पर थे। सोचो कहीं ये सच सामने आया कि आज पहले से कम की मौत हुई तब क्या होगा , डॉक्टर तक हैरान हो सकते हैं। जिनको बचना है ऊपर वाला बचा ही लेता है और जिनकी मौत का इल्ज़ाम  किसी रोग को देना उनको भेज देता हॉस्पिटल।

       साजन आपने बिना किसी का कुछ नहीं होगा मगर अगर आपके पास रोगी नहीं आएं उनकी भी हड़ताल हो जाये तब आपका जीना कठिन नहीं असंभव हो जायेगा। ये भला क्या बात हुई , इक कहावत है गिरी थी गधे के ऊपर से और लड़ पड़ी थी कुम्हार के साथ। आपको शिकायत सरकार से कि आपको किसी नियम कानून में अपना कारोबार करने को कानून बनाना चाहती है और आप सरकार का कुछ नहीं कर सकते तो रोगियों की जान आफत को लाना चाहते। आगे कुछ कहना  नहीं उचित आप खुद समझ लो , अपने पांव को काहे कुल्हाड़ी पे मारते हैं। रोगी नहीं अपने जीने की सोचो ज़रा। अंत में सभी को इक काम की बात कहनी है। मौत से डरने की ज़रूरत नहीं है , मौत बड़ी खूबसूरत होती है , ज़िंदगी कभी खूबसूरत नहीं होती। जीना है तो मौत का डर दिल से निकाल फिर देखो क्या है जीना।
 

                            मौत तो दरअसल एक सौगात है

                          हर किसी ने उसे हादिसा कह दिया।


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