पी लिया जाम इक बेखुदी मिल गई ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
पी लिया जाम इक बेखुदी मिल गई
मिल गए आप तो ज़िंदगी मिल गई।
इश्क़ ऐसे हुआ जिस तरह से से कहीं
खुद समंदर से आकर नदी मिल गई।
जल रहा धूप में था हमारा बदन
पर तभी प्यार की चांदनी मिल गई।
उम्र भर हम अकेले ही चलते रहे
ढूंढते थे उसे शायरी मिल गई।
ख्वाब हर रात "तनहा" वही देखता
मोड़ पर ज़िंदगी थी खड़ी मिल गई।
जल रहा धूप में था हमारा बदन
पर तभी प्यार की चांदनी मिल गई।
उम्र भर हम अकेले ही चलते रहे
ढूंढते थे उसे शायरी मिल गई।
ख्वाब हर रात "तनहा" वही देखता
मोड़ पर ज़िंदगी थी खड़ी मिल गई।
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