दिसंबर 28, 2016

एक अवैध प्रेम पर प्रहार { तरकश } डॉ लोक सेतिया

      एक अवैध प्रेम पर प्रहार { तरकश } डॉ लोक सेतिया

       भ्र्ष्टाचार हंस रहा है , प्रहसन चल रहा है , उसकी पहचान तक नहीं अभी उनको जिनको इसका अंत करना है। चलो घुमा फिरा कर नहीं सीधे बात करते हैं , संविधान को तो मानते ही होंगे सभी दल के सब नेता। मज़बूरी है उसको मानने से इनकार करें तो चुनाव ही नहीं लड़ सकते। तो उसी संविधान में तय किया हुआ है किसका क्या कर्तव्य है क्या अधिकार। विधायिका , संसद - विधानसभा , का काम है नियम कानून बनाना और निगरानी रखना उनका पालन किया जा रहा है। बजट बनाना आपका काम है अधिकार भी , मगर इक और अंग है सरकार का जिसको कार्यपालिका कहते हैं , बजट के अनुसार पैसे को खर्च करना विधायक या सांसद के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता संविधान में। तीसरा भाग सरकार का है न्यायपालिका जिसका कर्तव्य है न्याय करना , और न्याय सभी को मिले , हर विभाग को हर राज्य को , हर आम को हर ख़ास को। आपने देखा ही होगा जब भी किसी को लगता उसके साथ अन्याय हुआ वो अदालत का दरवाज़ा खटखटाता है। इक रिवायत सी है कहने की मुझे न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है। जब कि सब चाहते हैं न्याय उसी के पक्ष में हो , मगर न्याय भी मुफ्त नहीं मिलता है। बहुत ही महंगा है अपने देश में न्याय भी , जैसे स्वास्थ्य सेवा में मुंह मांगी फीस लेते हैं डॉक्टर उसी तरह वकील ही नहीं न्याय व्यवस्था में जुड़े सभी अंग। इस से उस अदालत तक पीड़ित भटकता है अपराधी को अपराधी साबित करने में। क्या क्या ज़िक्र करें छोड़ो विषय की बात करते हैं।

           सभी जानते हैं श्री नरसिंहराव जी ने सांसद निधि की शुरुआत की थी जब उनको अल्पमत की सरकार चलानी थी , अंधे की रेवड़ियां बंटनी शुरू क्या हुई सभी कतार में खड़े हो गये। हर नेता को रास्ता मिल गया खुद अपने हाथ से खाने का , फिर हर राज्य में विधायकों को भी कल्याण राशि मिलने लगी। उसी कल्याण राशि से सभी दलों के चुने विधायक-सांसद अपना अपना कल्याण करते आये हैं। ये तथाकथित कल्याण राशि अपनों को ही बांटी जाती है अग्रिम कमीशन लेकर , इस राज़ से कौन वाकिफ नहीं है। संसद को भी संविधान की भावना के विरुद्ध कानून बनाने का अधिकार नहीं , मगर ऐसा किया गया बार बार , संसद में विधानसभाओं में। जाने क्यों जनहित याचिका दायर करने वालों को ये ज़रूरी नहीं लगा कि अदालत जाते और सवाल उठाते क्या सांसद विधायक खुद देश जनता का धन खर्च कर सकते हैं। नहीं जा सके क्योंकि इन भृष्ट नेताओं ने पहले ही बीच का रास्ता निकाल लिया था , दिखाया जाता है कि राशि सरकारी विभाग खर्च करता है , मगर करता कैसे जैसे विधायक या सांसद आदेश देता है। चलो आपको उद्दाहरण से समझाते हैं , मेरे शहर में पिछले विधायक जी ने शहर की गलियों में टाइलें लगवाईं। जो सड़क ठीक थी उसे भी तोड़कर फिर बनाया गया , बनवाई भी हरियाणा शहरी विकास परारधिकरण ने। मगर टाइलें खुद विधायक जी की फैक्टरी से ऊंचे दाम खरीद कर। लो बिठा लो जांच कोई साबित नहीं कर सकता भ्र्ष्टाचार हुआ। मुझे लगता है ये शाकाहारी तरीका है किसी को कष्ट नहीं होता और उनको खाने को सब मिल भी जाता है। क्या काला धन और भ्र्ष्टाचार बंद करने वाली सरकार में साहस है इसको बंद करने का।

               अभी बात शुरू हुई है , देश में आज तक का सब से बड़ा घोटाला सामने आना बाकी है , क्या है वो। सरकारी विज्ञापन जिन पर रोज़ करोड़ों रूपये बर्बाद होते हैं इन नेताओं के सरकारों के झूठे प्रचार के। मीडिया वाले कभी इसकी चर्चा नहीं करते क्यों ? क्योंकि जिस जनता के पैसे की बर्बादी से आपको हिस्सा मिलता हो उसको बुरा कैसे बतायें। सच वही अच्छा जो मुनाफा देता है , घाटे वाला सच झूठ है। इक झूठ और भी , गांव को गोद लेने पर ज़ोर देते हैं। सब से पहले गोद लेते हुए लगता है गांव अनाथ है उसको माई बाप मिल गये। कल टीवी चैनेल कितने बड़े बड़े नाम वालों की गोद ली औलाद की बदहाली दिखा रहे थे। वास्तव में हमारे सभी नेता पाषाण हृदय और संवेदनारहित हैं जिनको अपने सिवा कुछ दिखाई नहीं देता। जनता की भलाई का आडंबर करते हैं छल कपट और वोटों की खातिर। कोई अंत नहीं इनकी अधर्मकथा का।  बस दुष्यंत जी की ग़ज़ल के कुछ शेर कहता हूं।

                    अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार

                    घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार।

                    इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके-जुर्म हैं

                    आदमी या तो ज़मानत पर रिहा है या फरार।

                      रोज़ अख़बारों में पढ़कर ये ख्याल आया हमें

                     इस तरफ आती तो हम भी देखते फसले बहार।

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