दिसंबर 22, 2016

POST : 579 पसीना गुलाब था ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

           पसीना गुलाब था ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

       अब इत्र भी लगाते हैं तो खुशबू नहीं आती , इक वक़्त था जब अपना पसीना गुलाब था । 

शायर से माफ़ी चाहता हूं उनका नाम भूल गया और दूसरी बार माफ़ी मांगता हूं अगर शेर ठीक नहीं लिखा हो कोई शब्द इधर उधर हो गया हो । मैं खुद शायर हूं इसलिए इस बात का महत्व जानता हूं नहीं तो आजकल  लोग शब्द को ही इधर उधर नहीं करते , खुद भी इधर उधर हो जाते हैं और शायरी का ऐसा बुरा हाल करते हैं कि पूछो मत । लोग ऐसी बेहूदा शायरी पर तालियां बजाते हैं वाह वाह करते हैं । किसी का दर्द उपहास बन जाता है कॉमेडी शो में और कोई उसी से अपना धंधा चला धन कमाता है । इक वर्ग है इलीट शालीन सभ्य  इंडिया वालों का जिन को देश की हर बात की समझ है और जिनका ध्येय है ज़िंदगी का मज़ा लूटना । ऐसे बड़े बड़े लोग नीरो से कम नहीं होते देश जलता रहे वो चैन की बंसी बजाते रहते हैं । मुझे क्या कौन कब कैसे किधर से किधर जाता किधर से भटकता हुआ कहां जा पहुंचा । अपने हंसाने वाले जुमलों से हर समस्या का हल बताने वाले अपनी मंज़िल ढूंढ लिया करते हैं । पंजाबी में कहावत भी है जिथे मिलण चोपड़ियां उथे लाईयां धरोकड़ियां । जहां से चुपड़ी मिले वहीं चले जाते हैं , मगर इक विरोधभास लगता है , आप जिधर से निकले थे अपनी ख़ुशी से वहां तो चुपड़ी भी मिलती थी मक्खन भी साथ मिलता था । आपको हज़म नहीं हुआ या आपकी भूख ही ज़्यादा है ।

                 अभी तक आप जो समझे वो बात नहीं है , यहां किसी व्यक्ति विशेष की बात थी ही नहीं । वो तो शायरी की बात चली तो उनका ज़िक्र भी करना पड़ा जो शायरी नहीं जानते समझते फिर भी मशहूर हैं शायरी के कारण । अब बात सीधे उनकी करते हैं जिन पर रचना का शीर्षक है पसीना गुलाब था । आप फिर भटक जाते हैं सोचने लगे किसी हसीना की बात होगी , किसी हसीना को देखा है पसीना बहाते । पसीना मेहनतकश लोग मज़दूर गरीब बेघर लोग बहाते हैं धूप में , जिनका कभी शान से ज़िक्र किया जाता था । गुरु नानक को उसी की रोटी में दूध मिला था बाकी सभी अमीर लोगों की रोटी से खून की धारा बही थी । आज बातें होती हैं काले सफेद धन की हक की हलाल की मेहनत की कमाई की कोई नहीं करता । सोचा था इक गरीब बड़े ओहदे पर पहुंचा तो बात होगी गरीबी की रेखा की भूख की बेबसी की लाचारी की । कितने साल तक उन्हीं की बात की बदौलत सरकार बनती रही है , क्या अब इक चाय वाले को सब कुछ मिलने से सारे गरीब खुशहाल हो गये हैं । क्यों चाय वाले ने गरीबी की बात छोड़ अमीरी की चर्चा शुरू करवा दी , इस सवाल का जवाब भी है । हमें उतनी ख़ुशी अपने फायदे से नहीं होती जितनी दूसरे का नुकसान देखने से होती है । तभी सत्ता पाते जब आधा समय बीत गया और गरीबों को अच्छे दिन नहीं दिखा सके तो सोचा अमीरों को ही बुरे दिन दिखा देते हैं । अमीरों की खराब हालत देख गरीब खुश हो जायेंगे कि भगवान का शुक्र है हम पैसे वाले नहीं हैं । तभी फैसला करते ही भाषण देने लगे देखो करोड़पति लोगों को कतार में खड़ा करवा दिया मैंने । मगर करोड़पति घर बैठे उनका भाषण सुन हंसते रहे , वाह हमारी बिल्ली हमें ही मियाउं । चुनाव क्या मेहनत की कमाई से लड़ा था , चलो अगर ठान ही लिया था तो शुरुआत अपने घर से करते । सभी राजनीतिक दलों का धन काला धन नहीं है , आपकी सभाओं पर , अकेले इक नेता की नहीं सभी नेताओं की , कितना धन खर्च होता है सब पवित्र है । सब से अपवित्र कौन सा दल है जिस में सब से अधिक अपराधी सांसद हैं , अपने घर की सारी गंदगी कालीन के नीचे छुपा आप स्वच्छता अभियान चलाते हैं । देश के साठ प्रतिशत गांव में साफ पानी नहीं और आप शौचालय की बात ही नहीं करते ,  गरीबों को गुनहगार साबित कर अपमानित करते हैं । कहते हैं सभी दल एकमत हों तभी चंदे  की बात पर भी फैसला हो सकता है , सभी  गुनाहगार तौबा करें तभी हम भी छोड़ देंगे चंदा नकद लेना । लो जी कितने लोकतांत्रिक हैं प्रधानमंत्री जी बिना सभी दलों की सहमति कुछ नहीं करना चाहते । इसी को चोर चोर का भाईचारा कहते हैं । 

                 हिसाब तो आपको देना था , आपने सत्ता मिलते ही हर महीने हिसाब देने की बात की थी । अपने जिस लोकतंत्र के मंदिर की चौखट पर माथा टेका था आज उसी में जाना आपको गवारा नहीं । कोई लोकतांत्रिक प्रक्रिया से निर्वाचित प्रधानमंत्री भाषण देता है मुझे सदन में बात नहीं रखने देते इसलिये मैंने जनसभा में अपनी बात कहने का विकल्प चुना है । इतना बहुमत इतनी ताकत इतना चौड़ा सीना और ऐसी कायरता की बात , मुझे जान से मरवा सकते हैं , कहते हैं । आप को इतनी सुरक्षा में अपनी जान की चिंता तो हम आम नागरिक किस पर भरोसा करें । मगर आपको जनता को भटकाना था , गरीबी की भूख की , शिक्षा की बदहाली और स्वास्थ्य सेवाओं की रोगग्रस्त होने की समस्याओं की बातों से पीछा छुड़ाना था । इक टकराव अमीर गरीब का करवा उस पर अपनी राजनीति करनी थी । क्या सफल हुई आपकी योजना , नहीं ।
 
 आपने इक नया इतिहास रचा है , इक प्रधानमंत्री का बार बार यू टर्न लेने का ।  शुरुआत की इक घोषणा से की कि अब कभी काले धन वालों को दोबारा अवसर नहीं दिया जायेगा और बीस दिन , केवल बीस दिन बाद इक नई स्कीम पचास प्रतिशत की । आपकी दोनों बातें इक दूसरे से उल्ट फिर भी सच , आपको अभी भी उपाधि मिल रही खुद अपने दल से ठीक उसी तरह जैसे पूर्व प्रधानमंत्री को मिली ईमानदार हैं की उपाधि । आपको शायद समझ नहीं आ रहा क्या किया और हुआ क्या , चलो आपकी दुविधा मिटाते हैं ।

      बिल्ली शेर की नानी है , आपने भी सुना होगा । कहते हैं बिल्ली ने ही शेर को शिकार करना सिखाया था , जब सीख गया तो जानते हैं क्या हुआ । इक कहावत ये भी है :-

                     बिल्ली ने शेर पढ़ाया , शेर बिल्ली नूं खावण आया ।

यही हुआ आपको जिन्होंने चुनाव जिताया आप उन्हीं को बर्बाद करने चले , स्विस बैंक पर बस नहीं चला तो देश में काला धन खोजने चले । बिल्ली को जब शेर खाने को झपटा था तो वो कूद कर पेड़ पर जा चढ़ी थी , शेर बोला मौसी आपने मुझे ये सबक तो सिखाया ही नहीं । बिल्ली बोली इसी लिये कि किसी दिन मुझे ही नहीं खा जाओ । काले धन वाले आपकी पकड़ से बच गये और पेड़ पर बैठ कह रहे तू डाल - डाल  मैं पात-पात । देखा फिर वही हुआ जिनकी बात की जानी थी , गरीबों की उनकी छूट गई और बड़े चोर छोटे चोर की बात पर अटक गये हम । उधर टीवी पर वही बहस जारी है , तू तू मैं मैं । क्या राजनीति है कैसी पत्रकारिता है । कभी खबर हुआ करती थी गरीबी और बदहाली की आजकल लाखों करोड़ों की बातें सुन लगता है सब जैसा भी है बढ़िया है , भूख गरीबी और देश की गंदगी , आवारा बचपन , भटकी जवानी की बात तो बंद हुई । मुबारिक हो , आप कौन सा डिओ लगाते हैं , किस ब्रांड के कपड़े डालते हैं । देश की असली समस्या आजकल यही है । 
 
 rebel 🇮🇳 (@Sumitchaurasiaa) / X

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

Bahut achcha lekh...Shuru m sab khte hn fir koi hisab nhi deta malaai khate rhte hn fir