दिसंबर 16, 2016

काला शाह काला ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

    काला शाह काला   (  हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

चलो शुरू करते हैं बात , सबसे पहले यही बताना चाहता हूं कि मामला काले धन का हर्गिज़ नहीं है , बात काले रंग की ही है। इक पंजाबी लोकगीत है , काला शाह काला , नी मेरा काला ऐ सरदार , गोरियां नू दफा करो।
गायिका कहती है मेरा सरदार ( मेरा पति ) काला है बहुत ही काले रंग वाला है , मुझे यही पसंद है , जिनका गोरा रंग है उनको परे करो मुझे नहीं पसंद गोरा रंग। स्कूल में इक सहपाठी जो बहुत ही गोरे रंग का था , आज भी है बेहद गोरा और सुंदर , उसका नाम माता पिता ने काला रख दिया था घर का प्यार का नाम। कहते हैं इस से नज़र नहीं लगती , बच्चों को काले रंग का टीका भी तभी लगाया जाता है। गोरी महिलाएं काजल यही समझ लगती हैं कि कजरारी काली काली आंखें उनके गोरे रंग को और निखार देती हैं। काला रंग कुछ लोगों को बेहद पसंद होता है , मेरी श्रीमती जी के भाई को भी पसंद है और विवाह के समय उसने इक साड़ी काले रंग की भी खरीद ली थी। मगर मेरी ताई जी को पता चला तो उन्होंने साफ बोल दिया था काले रंग का कोई कपड़ा नहीं देना हमारी बहु को। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा था उस बात से , मगर ताई जी को पता नहीं था कि मैंने अपनी बहन जी के साथ इक बेहद कीमती कपड़ा मैक्सी बनवाने को लिया था जिस का रंग भी काला था मगर उस पर कई रंग के गोल गोल रंग बिरंगे डॉट्स थे जो सभी को अच्छे लगे थे।

                   काले रंग में जाने क्या बात है जो नेता लोग इस से डरते हैं। मुख्यमंत्री जी की जनसभा थी और अगले दिन खबरों में इक महत्वपूर्ण खबर इस को लेकर थी कि सुरक्षा कर्मियों ने उनको भीतर ही जाने दिया जो काले रंग के कपड़े पहने थे। जिनको जैकेट काली थी या जुराबें काली वो उतरवा कर रख ली थी। क्या काला रंग सुरक्षा के लिये खतरा है , जी नहीं उस से भी अधिक बड़ी बात है। प्रशासन नहीं चाहता था कोई मुख्यमंत्री जी को विरोध दिखाने को काले कपड़े का उपयोग करे। मुझे तो ये मालूम नहीं काली पट्टी या काले झंडे दिखाने की विरोध की परंपरा किस ने कब और क्यों शुरू की , मगर मुझे इस शांतिप्रिय विरोध में कोई खतरे की बात नहीं लगती है। एक तरफ आप जनता को भाषण देते हैं सरकार के किसी अंग से घूस की शिकायत हो तो निसंकोच बताने की बात और दूसरी तरफ कोई आपकी नापसंद की बात कहने वाला सभा ने दाखिल तक नहीं हो पाये ऐसी व्यवस्था करते हैं। जब दावा है लोग बेहद खुश हैं आपसे तो फिर डर किस बात का।  कोई बता रहा था मुख्यमंत्री जी भगवान हैं बिना मांगपत्र समझते हैं क्या देना है। भाई वाह आपने तो चाटुकारिता को और ऊंचे आकाश पर पहुंचा दिया , ईनाम का हक तो बनता है।

                                   चलो काले रंग और कालिख के डर की बात को किनारे कर पहले यही चरचा करते हैं , कौन दाता है कौन भिक्षुक। क्या जनता का निर्वाचित प्रतिनिधि जनता का धन जनता पर ही खर्च करता है तो दानवीर है दाता है भगवान है। ज़रा गहराई से समझते हैं इतिहास में मिसाल मिलती हैं कुछ तो। इक दोहा इक कवि का सवाल करता है और इक दूसरा दोहा उस सवाल का जवाब देता है। पहला दोहा गंगभाट नाम के कवि का जो रहीम जी जो इक नवाब थे और हर आने वाले ज़रूरतमंद की मदद किया करते थे से उन्होंने पूछा था :
                                                  सीखियो कहां नवाब जू ऐसी देनी दैन
                                                  ज्यों ज्यों कर ऊंचों करें त्यों त्यों नीचो नैन।

अर्थात नवाब जी ऐसा क्यों है आपने ये तरीका कहां से सीखा है कि जब जब आप किसी को कुछ सहायता देने को हाथ ऊपर करते हैं आपकी आंखें झुकी हुई रहती हैं। रहीम जी ने जवाब दिया था अपने दोहे में :

                                              देनहार कोउ और है देत रहत दिन रैन
                                              लोग भरम मो पे करें या ते नीचे नैन।

अर्थात देने वाला तो कोई और है ईश्वर है जिसने मुझे समर्थ बनाया इक माध्यम की तरह , दाता तो वही है पर लोग समझते कि मैं दे रहा तभी मेरे नयन झुके रहते हैं। आज तक किसी नेता ने देश या जनता को दिया कुछ भी नहीं सत्ता मिलते ही शाही अंदाज़ से रहते हैं और गरीबी का उपहास करते हैं।

              अब वापस विषय की बात , क्या लोकतंत्र इसी का नाम है। आप किसी को काले रिब्बन या काली पट्टी लगाने पर परिबंध लगा सकते हैं , ऐसा तो आपात्काल में भी नहीं देखा था। आप एक तरफ इतने साल बाद उनको सुविधा देने की बात करते हैं जो इमरजेंसी में जेल में बन्द रहे दूसरी तरफ विरोध करने की आज़ादी बिना घोषणा किये छीन रहे हैं। किधर जा रहे हैं जनाब। मुझे इक पुरानी बात याद आई इक नेता जी की , उनको जब काले झंडे दिखाने की बात हुई तो बोले थे मेरी मां का घाघरा इतने गज़ काले कपड़े से बना होता था , मुझे ये छोटा सा काले रंग का कपड़ा क्या रोक सकता है। जी नहीं मैं न इनकी न उनकी बात का पक्ष लेना चाहता हूं , मुझे खेद होता है इस देश के प्रशासन के रंग ढंग देख कर  , जो हर सत्ताधारी को ऐसे ही ठगता है असलियत से दूर रख कर। अगर लोग किसी मंत्री की सभा में विरोध करेंगे तो किस बात का , यही कि आपका प्रशासन सही काम करता नहीं है। अर्थात जो काले कपड़े वालों को भीतर नहीं जाने दे रहे थे उनको किसी बात का डर था , तभी उन्होंने ऐसा अनुचित काम किया लोगों की पोशाक पहनने की आज़ादी का हनन , संविधान क्या कहता है उनको पता है।

           क्या काला रंग अशुभ है , क्या तभी नेता श्वेत वस्त्र पहनते हैं कालिख के काम करते समय भी ,
हां इक बात है काले रंग पे लगा धब्बा अधिक चमकता भी है और उसको मिटाना भी कठिन होता है। बाकी किसी रंग वाले कपड़े पर दाग़ लगे तो उसको काले रंग में रंगने से वो नहीं रहता। ये ज्ञान मुझे इक पुरानी फिल्म से मिला था जिस में नायक इक काल गर्ल से प्रेम करता है और चिंतित होता है क्या करुं। तभी उसकी इक कमीज़ पर लगा काला दाग़ नहीं मिटने पर धोबी सलाह देता है साहब इसको इसी रंग में रंगवा लो। अभी शनि देव जी की चर्चा है कि वो खराब नहीं हैं न्यायकारी हैं भाग्यफ़लदाता हैं। अब शनिदेव से या काले रंग से डरने की ज़रूरत नहीं हैं। शनि की पूजा किया करें काला धन या काला कपड़ा आपका कुछ नहीं बिगड़ सकता। ऐसा मुझे अज्ञानी पंडित जी का अभिमत है।

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