मार्च 24, 2016

POST : 496 आज मनाई होली इस तरह ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

आज मनाई होली इस तरह  ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

सुबह से शाम हो गई है
सोच रहा हूं मैं होली के दिन
क्या ऐसे ही होती है होली
जैसे आज मनाई है मैंने ।

कभी वो भी बचपन की होली थी
जब बक्से से निकाल के देती थी
मां हमें चमचमाती हुई पुरानी
स्टील और पीतल की सुंदर पिचकारी ।

और घोलते थे रंग कितने ही मिला पानी में
भरने को दिन भर जाने कितनी बार
खेलते थे बड़ों छोटों के साथ मस्ती में
मन में भरी रहती थी जाने कैसी उमंग ।

फिर होते गये हम बड़े और समझदार
बदलता गया ढंग हर त्यौहार मनाने का
सोच समझ कर जब लगे खेलने होली
नहीं रही मन की उमंग और होता गया
हर बरस पहले से फीका कुछ हर त्यौहार ।

आज चुप चाप बंद कमरे में अकेले ही
खेली दिन भर हमने भी ऐसे कुछ होली
जैसे किसी अनजान इक घर में हो खामोश
पिया बिना नई नवेली दुल्हन की डोली ।

फेसबुक पर कितनी रंग की तस्वीरें
कितने सन्देश कितने लाईक कमेंट्स
मगर दिल नहीं बहला लाख बहलाने से
किसी को नहीं भिगोया न हम ही भीगे
ये कैसे दोस्त सच्चे और झूठे जाने कैसे
नहीं आई घर बुलाने कोई भी टोली हमजोली ।

की बातें फोन पर सभी से कितनी दिन भर
ली और दी हर किसी को होली की बधाई
बने पकवान भी कुछ मंगवाये बाज़ार से
लगी फिर भी फीकी हर तरह की मिठाई ।

लेकिन हम सभी को यही बतायेंगे कल
बहुत अच्छी हमने ये होली है मनाई
नहीं जानते कैसे क्या क्यों बदला है
मगर खुशियां होली की हो गई हैं पराई । 
 

 

2 टिप्‍पणियां:

Acharya Shilak Ram The Writer ने कहा…

हमारी होली उनकी हो ली...

Sanjaytanha ने कहा…

होली के बदलाव को व्यक्त करती कविता👌👍