खुश्क हैं आंखें जुबां खामोश है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
खुश्क हैं आंखें जुबां खामोश हैइश्क़ की हर दास्तां खामोश है।
बस तुम्हीं करते रहे रौशन जहां
तुम नहीं , सारा जहां खामोश है।
क्या बताएं क्या हुआ सबको यहां
चुप ज़मीं है आस्मां खामोश है।
झूमता आता नज़र था रात दिन
आज पूरा कारवां खामोश है।
तू हमारे वक़्त की आवाज़ है
किसलिए तूं जाने-जां खामोश है।
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