अक्तूबर 01, 2014

POST : 455 अब यही ज़िंदगी अब यही बंदगी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

अब यही ज़िंदगी अब यही बंदगी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

अब यही ज़िंदगी , अब यही बंदगी
प्यार की जब हमें भा गई बेखुदी ।

आपके वास्ते ग़ज़ल कहने लगे
थी हमारी मगर हो गई आपकी ।

इश्क़ करना नहीं जानते हम अभी
खुद सिखा दो तुम्हीं कुछ हमें आशिक़ी ।

पास आओ करें बात भी प्यार की
छांव कर दो ज़रा खोल दो ज़ुल्फ़ भी ।

वक़्त मिलने का तुम भूल जाना नहीं
रोज़ मिलते वही याद रखना घड़ी ।

किस तरह हम कहें बात दिल की तुम्हें
आप सुनते कहां बात पूरी कभी ।

जब से "तनहा" दिवाना हुआ आपका
भूल जाती उसे बात बाकी सभी ।