अब यही ज़िंदगी अब यही बंदगी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
अब यही ज़िंदगी , अब यही बंदगीप्यार की जब हमें भा गई बेखुदी।
आपके वास्ते ग़ज़ल कहने लगे
थी हमारी मगर हो गई आपकी।
इश्क़ करना नहीं जानते हम अभी
खुद सिखा दो तुम्हीं कुछ हमें आशिक़ी।
पास आओ करें बात भी प्यार की
छांव कर दो ज़रा खोल दो ज़ुल्फ़ भी।
वक़्त मिलने का तुम भूल जाना नहीं
रोज़ मिलते वही याद रखना घड़ी।
किस तरह हम कहें बात दिल की तुम्हें
आप सुनते कहां बात पूरी कभी।
जब से "तनहा" दिवाना हुआ आपका
भूल जाती उसे बात बाकी सभी।
1 टिप्पणी:
Bahut khoob
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