अक्तूबर 03, 2014

कब होंगे सब लोग समान , मोदी जी ? ( आलेख ) डा लोक सेतिया

 कब होंगे सब लोग समान , मोदी जी ? ( आलेख ) डा लोक सेतिया

              आज बहुत दिन बाद कुछ कहने लगा हूं जो शायद कितनी बार दोहरा चुका हूं। ठीक वैसे जैसे कल गांधी जी के जन्म दिवस पर जो हुआ वो जाने कितनी बार पहले भी हुआ है , होता रहेगा। ये इक तमाशा सा लगता है , बहुत सारे साफ सुथरे लोग , शानदार झाड़ू , बैनर , मीडिया का जमावड़ा , लाइव टेलीकास्ट , भाषण। कितना पैसा बर्बाद किया गया आडंबर पर इस गरीब देश का। बहुत पहले किसी विदेशी अर्थशास्त्री ने लिखा था इंडियन एक्सप्रेस में कि भारत देश तब तक गरीबी से मुक्त नहीं हो सकता जब तक दिखावे पर झूठी शानो शौकत पर धन खर्च करना बंद नहीं किया जाता। यकीनन सफाई ऐसे नहीं की जा सकती , कितनी हैरानी की बात है कि मुझे इन सब बातों पर लिखते उम्र बीत गई है और वही लोग कल हाथ में झाड़ू पकड़ फोटो करवा रहे थे जो कहते हैं मुझे कोई दूसरा काम नहीं जो रोज़ आस पास सफाई के बारे पत्र लिखता रहता हूं। अगर मुझ सा आम आदमी कहे तो पागलपन और कोई ओहदे पर बैठा व्यक्ति वही कहे तो बहुत महान बात। मोबाईल पर संदेश मिला सफाई अभियान का भी उसी तरह जैसे मोदी जी की आवाज़ में वोट की अपील का। सत्ताशास्त्र व्यंग्य याद आ गया , इक तरफा संवाद करते हैं शासक। इन राजनैतिक दल वालों को कभी समझ नहीं आया कि मैं किस तरफ हूं। पत्रकार मित्र भी पूछते हैं , मैंने इक बार इक सांध्य दैनिक के ऑफिस के महूर्त पर यही कहा था , आप या तो जनता की तरफ हो सकते हैं या नेता अफसर और शासन की तरफ। ये सच कोई माने या नहीं माने मगर वास्तविकता यही है कि देश में चालीस सालों में पत्रकारिता का पतन हद से अधिक हुआ है , और ये पथ से भटके ही नहीं ये तो विपरीत दिशा को भाग रहे हैं। विज्ञापन प्रसार संख्या की दौड़ में अंधे हो चुके हैं। जनता हूं आज देश विदेश में प्रधान मंत्री मोदी जी की धूम है , और मेरी आदत है मैं किसी की इबादत नहीं करता चाहे कोई आदमी कितना ही बड़ा क्यों नहीं हो। इक बार महेश भट्ट जी का साक्षात्कार देखा था टीवी पर , उन्होंने इक बात कही थी कि हम गुलामी की मानसिकता वाले लोग हैं , हमें चाहिये कोई न कोई परस्तिश को। कभी अमिताभ कभी सचिन कभी कोई और। मगर बार बार ये भरम टूटता है , किसी शायर का इक शेर है :-

       "तो इस तलाश का अंजाम भी वही निकला , मैं देवता जिसे समझा था आदमी निकला"।

                          इसलिये कहना चाहता हूँ कि चाहे कोई भी हो अंध भक्ति नहीं करना  , खुद भगवान से भी सवाल पूछना कभी मिल सके कहीं गर। भारतीय जनता पार्टी क्या कहती है , मोदी जी क्या कहते हैं , इतना काफी नहीं है। वो क्या करते हैं ये देखना ज़रूरी है। आज जिनको टिकट देकर खड़ा किया है भाजपा ने कौन हैं वो , कल तक उसी दल में तो नहीं थे जिनको गुंडा राज का दोष दे रहे या जिन पर घोटालों पर घोटालों के आरोप हैं जब सत्ता में था उनका दल। दलबदलू नैया पर नहीं किया करते बीच मझधार डुबोते हैं। गटर का पानी मिलता रहेगा तो गंगा को गटर ही बना लोगे। बहुत वादे किये हैं , मुश्किल काम है देश से भूख गरीबी और छोटे बड़े का अंतर मिटाना जो कैसे होगा शायद मोदी जी भी नहीं जानते। चलो आखिर में अपनी पहली कविता सुनाता हूं , जो कल भी सच थी , आज भी सच है।

पढ़ कर रोज़ खबर कोई ,

मन फिर हो जाता है उदास।

कब अन्याय का होगा अंत ,

न्याय की होगी पूरी आस।

कब ये थामेंगी गर्म हवायें ,

आयेगा जाने कब मधुमास।

कब होंगे सब लोग समान ,

आम हैं कुछ तो कुछ हैं ख़ास।

जिन को चुनकर ऊपर भेजा ,

फिर वो न आये हमारे पास।

सरकारों को बदल देखा ,

हमको न कोई आई रास।

बन गये चोरों और ठगों के ,

सत्ता के गलियारे दास।

कैसी आई ये आज़ादी ,

जनता काट रही बनवास।


 

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