जुलाई 06, 2019

जल कैसे बचाया जा सकता है ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

   जल कैसे बचाया जा सकता है ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

   पानी बचाओ पानी व्यर्थ नहीं करो विज्ञापन देने से भाषण देने से कोई मैराथन दौड़ का तमाशा करने से कुछ भी नहीं होगा। पानी भारत में अभी भी कम नहीं है लेकिन जितना ज़रूरत है उस से अधिक खर्च नहीं फज़ूल बर्बाद किया जाता है। सबसे पहली बात देश की राज्यों की सरकारें इस को लेकर हद दर्जे की उदासीन हैं लापरवाही है समाज हित की आपराधिक अनदेखी तक। चांद पर जाने और जाने कितने ऐसे अनावश्यक कार्यों आडंबर करने पर धन खर्च करने से पहले अगर देश भर में साफ़ पीने का पानी उपलब्ध करवाने को महत्व देते तो शायद ये विकराल समस्या नहीं सामने आती। आपको क्या लगा मेरी बात में कोई विरोधाभास है जब पानी ही नहीं तो सबको साफ पानी मिले कैसे। चलो इक कल्पना करते हैं क्या कैसे संभव है। 

चौबीस घंटे साफ पानी की सप्लाई :-

अगर हर किसी को साफ पीने का पानी चौबीस घंटे देने का कार्य सरकारी विभाग करते तो किसी को भी घर दफ्तर बाज़ार में पानी जमा करने को टैंक नहीं बनवाने होते। विकसित देशों में पहला काम यही किया गया है जबकि कई देशों में पानी की उपलब्धता हमसे बहुत कम थी या कठिनाई से मिलता है पानी। यकीन करें अगर जलघर से पानी बिना बाधा लगातार सप्लाई किया जाये तो केवल उतना ही जल खर्च होगा जितना चाहिए। हर किसी को बिजली की मोटर नहीं लगवानी पड़ती और बिजली की भी बचत होती। कितनी बिमारियां स्वच्छ जल नहीं मिलने से होती हैं उन की भी समस्या हल हो सकती थी। कभी विचार करना आपको नल से ताज़ा पानी मिलता लगातार तो कोई ज़रूरत नहीं होती जमा करने की सीधे ज़रूरत होने पर नल से जितना चाहते उतना ही लेते। 

तालाब नदियों झरनों की सुरक्षा :-

बारिश में कितना पानी व्यर्थ जाता है कभी हर जगह गांव शहर जलभराव को तालाब हुआ करते थे। घर नहीं डूबते थे जितना अधिक पानी बरसात का होता तालाब से खाली ज़मीन पर जाता कुछ रहता बचा हुआ कुछ धरती के नीचे चला जाता। अब खाली जगह छोड़ी नहीं कहीं भी कच्ची जिस से पानी धरती के भीतर जाकर नीचे का जलस्तर ऊंचा करता उल्टा हमने धरती के नीचे से पानी का सीमा से बढ़कर दोहन कर इतना नीचे कर दिया है कि निकालने को फिर बिजली और उपाय करते हैं जो और कठिनाई पैदा करते हैं। 

अनुचित अनावश्यक निर्माण :-

सब से अधिक ये अपराध हर सरकार ने किया है और करती जा रही हैं। सरकारी विभाग के पास कर्मचारी के आवास और दफ्तर को बहुत जगह हुआ करती थी जिस का काफी हिस्सा खुला भी रखते थे। आपने देखा होगा सरकारी भवन और नगरपरिषद या नगरपालिका के दफ्तर कितने खुले हुआ करते थे। आमदनी बढ़ाने को या आधुनिक बनाने को खाली जगह को निर्माण कर लिया गया। आप के लिए नियम हैं सरकारी विभाग को अपने ही नियम तोड़ने से कोई नहीं रोक सकता है। कहने को भारत गरीब देश है और अभी भी करोड़ों लोगों के पास घर नहीं हैं जबकि सरकार के पास हर गांव हर शहर में इतने भवन और इमारतें बनी हुई हैं जिनका उपयोग भी शायद कभी ही किया जाता है। कई देशों में सरकारी इमारतों को बेघर लोगों को रात को ठहरने को उपलब्ध करवाने का चलन है। लेकिन हमारे देश में कोई सरकारी किसी भवन या इमारत को उपयोग करना चाहे तो अधिकारी आसानी से अनुमति नहीं देते मगर खुद उनको कोई आयोजन करना होता है तो जनता के पार्क से लेकर सड़क तक उनके आधीन होते हैं। सरकारी अधिकारियों को बड़े बड़े बंगले और तमाम सुविधाओं के साथ उनकी कॉलोनी की हरियाली को पानी की सप्लाई पहल के आधार पर होती है। संविधान का सबको समानता का अधिकार अधिकारी नेता सत्ताधारी अपने बड़े बड़े बंगलों में रहने से उपहास बनाते हैं।

नदियों पहाड़ों की सुरक्षा :-

पानी मिलता है पहाड़ों से बर्फ पिघलने से और नदियों से कितनी तरह से , झरने बरसाती नदी नाले कुदरत ने हमेशा से उनकी स्वछता को बरकरार रखने का उपाय किया हुआ है। हमने कभी घूमने फिरने की कारोबारी तरीके से आर्थिक फायदे की खातिर उनकी सुरक्षा को दांव पर लगाया है। कहीं पहाड़ को काटकर निर्माण करने को कहीं धार्मिकता को लेकर नदियों को नुकसान पहुंचाया तो कभी नदी की राह पर बहाव को अपनी सुविधा से बदलने का काम छेड़ छाड़ की तो जगह जगह अपनी गंदगी नदी में डालकर उसको गंदा नाला बना दिया है। तथाकथित आधुनिक विकास करते हुए हमने विनाश ही किया है। समाज और सरकार की उपेक्षा और सीमा से अधिक मनमानी व लापरवाही का नतीजा है कि आज हम उस दशा को पहुंचे हैं जहां हमें अपने तौर तरीके बदलने की ज़रूरत है मगर हमने आदत बना ली है मर्ज़ी से उपयोग करने की कुदरत की हर चीज़ को जिसे छोड़ना मुश्किल है और नहीं छोड़ेंगे तो प्यास सामने साफ दिख रही है।

पानी पर सभी का हक :-

सरकार अपने पर जिस तरह बेतहाशा धन साधन सुख सुविधा पाने और ऐशो आराम पर खर्च करने को अनुचित नहीं समझती जबकि जिस देश में भूख गरीबी हो एक एक नेता को इतना सब मिलना गुनाह समझा जाना चाहिए क्योंकि ये देश के राजा या शासक मालिक नहीं जनसेवक हैं। पानी भी उनको हिस्से से बढ़कर मिलना अमानवीय आपराधिक कार्य है। राजनेताओं को किसी भी बात पर वोटों की राजनीति करने में कोई संकोच नहीं होता है। पानी कुदरत का उपहार है अपने उसको भी बांटने का काम किया है और सब जानते हैं कैसे राजनेता अपनी ज़मीन पर खेती की सिंचाई या औद्योगिक उपयोग को मनमाने तरीके से पानी लेते नहीं छीनते हैं।

 शबाब ललित की ग़ज़ल है :-


अन-गिनत शादाब जिस्मों की जवानी पी गया

वो समुंदर कितने दरियाओं का पानी पी गया 

नर्म सुब्हें पी गया शामें सुहानी पी गया

हिज्र का मौसम दिलों की शादमानी पी गया 

मेरे अरमानों की फ़सलें इस लिए प्यासी रहीं

एक ज़ालिम था जो कुल बस्ती का पानी पी गया 

ले गए तुम छीन कर अल्फ़ाज़ का अमृत-कलस

मैं वो शिवशंकर था जो ज़हर-ए-मआ'नी पी गया 

दुष्यंत कुमार कहते हैं :-

यहाँ तक आते आते सूख जाती हैं कई नदियां 

मुझे मालूम है पानी कहां ठहरा हुआ होगा।




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