जुलाई 21, 2019

रंगीन से बेरंग फिर बदरंग ( यहां-वहां-कहां-कहां ) डॉ लोक सेतिया

  रंगीन से बेरंग फिर बदरंग ( यहां-वहां-कहां-कहां ) डॉ लोक सेतिया  

     उनको नाम शोहरत और पहचान की ज़रूरत है। राजनीति उनको रास्ता लगती है दल कोई भी हो उनको अपने मतलब से मतलब है। जब जब जिस समस्या की खबर की गूंज होती है उसको लेकर शोर मचाने लगते हैं तो लगता है उनसे बढ़कर किसी को चिंता नहीं। बाल मज़दूरी बंधुआ मज़दूरी महिलाओं के साथ होने वाले अपराध सरकारी विभाग में वेतन की कमी से शोषण तक कभी पानी की समस्या कभी पेड़ पौधों की हवा की कभी गंदगी की बात। चार दिन चर्चा और मोर्चा रैली निकालने की औपचारिकता निभाते हैं। उस के बाद ख़ामोशी छा जाती है। समझ नहीं आता किस तरह से राजनीति में हाशिये से फिर से धुरी पर आ सकते हैं। तीर निशाने पर लगते नहीं चूक जाते हैं , कभी कभी होता है राजनीति नहीं करने की कसम खाने वाले सत्ता पाने को गिरगिट से बढ़कर रंग बदलते हैं। ये सत्ता का लहू मुंह को लगने के बाद इक नशा चढ़ता है जो जीते जी उतरता नहीं कभी। नशा कोई भी हो खराब होता है इस को लेकर भी राजनीति की जा सकती है नेता अधिकारी सब भाषण देते हैं घर जाकर थककर दो घूंट लेने में हर्ज़ नहीं है। नशाबंदी करने वालों को मिलकर जाम छलकाने में संकोच नहीं होता है। बड़ी मुश्किल है गरीबी भूख शिक्षा को लेकर सामाजिक संस्थाएं धरातल पर काम नहीं करते केवल सरकार को कठोर कदम उठाने को लिखने का काम करते हैं। सरकार है जो सड़क पर चलने का कीर्तिमान बनाती है आरटीआई से जानकारी मिलती है सभी बड़े नेता दिन में 14 घंटे सरकारी वाहन पर सफर करते रहे करीब सात सौ किलोमीटर रोज़ाना सैर की। जाने कब काम किया कब आराम किया और खाना पीना कैसे हुआ होगा। मामला समझ से बाहर का है। 

        ऊपर मिल बैठ देश की आज़ादी की जंग में शहीद हुए सभी महान आत्मा लोग ये बात समझ नहीं पा रहे उनको कैसे कोई अपनी जाति बिरादरी धर्म से जोड़कर अपनी अपनी राजनीति कर सकते हैं। जिस महान शहीद की याद की बात है उस की जाति के लोग बैनर उठाए नारे लगाते हैं मगर उन पर शहीद का नाम लिखा दिखाई नहीं देता। अमुक वर्ग का समाज आपका स्वागत करता है हर किसी को अपने नाम बिरादरी का नाम लिखवाना याद रहा। कोई जाकर उनसे पूछे जिनकी बात है क्या जानते हैं उनको लेकर , यकीन करें उनको बस यही मालूम है अपनी जाति बिरादरी के थे बाकी कुछ भी नहीं। शहीद क्या उनके आगे बढ़ने की सीढ़ी हैं ये सोचकर उन शहीदों को हैरानी हो रही है। बात एकता अखंडता की की जानी चाहिए थी मगर हर कोई बांटने की हिस्सा मांगने की करता है। देश समाज को क्या अपनी जाति बिरादरी को भी देना कुछ नहीं उसके नाम की राजनीति कर ऊपर जाना चाहते हैं। आये दिन किसी वर्ग जाति धर्म की सभा आयोजित की जाती है। किसी को संकुचित विचारधारा पर ऐतराज़ नहीं है हर कोई अपने दायरे में कोल्हू का बैल बनकर इक गोल दायरे में घूमता रहता है। शहीदों की शहादत का आदर उनकी राह चलकर किया जा सकता है मगर ये कठिन राह कौन जाना चाहता है। गर्व गौरव करना अच्छा है मगर कुछ सबक भी सीखते तो बेहतर होता। 

     गुलाब गुलाबी नहीं सफ़ेद काला पीला लाल कितने रंग का उगाने लगे हैं। हरी मिर्च लाल होते होते अपना स्वाद खोती गई और फायदे की जगह नुकसान करने लगी। फल सब्ज़ी सब को किसने वास्तविक रंग स्वाद को छोड़ कुछ और बना दिया है। कुदरत की बनाई चीज़ को जैसी है रहने नहीं दिया और इस खेल में खिलवाड़ अपने स्वस्थ्य से होने लगा है। आदमी को कुदरत ने जैसा बनाया क्या ठीक नहीं था जो हर कोई चाहता है रंग काला नहीं गोरा हो सांवला नहीं चमकता हुआ हो नकली मेकअप के पीछे असली चेहरा छुप जाए। मिट्टी को गर्म किया ईंट बनाकर और पत्थर को पीस कर फिर से पत्थर बनाने का काम किया तो पता नहीं चला कि आदमी खुद भी खुशबू कोमलता खोकर कठोर बनता गया। इंसान को इंसान का दर्द नहीं महसूस होता बस खुद अपने दर्द का पता चलता है। कितना ज्ञान हासिल किया मगर ज्ञान की परिभाषा भी नहीं याद रही जितना पढ़ा लिखा भूल गया और याद रहे स्वार्थ मतलबपरस्ती दो शब्द जिनको भुलाना था पहले। मैं का अहंकार सबसे बुरी बात है तुम कौन हर कोई कहता है , नासमझी को समझदारी कहने लगे हैं लोग। माना दुनिया रंगीन है रंगबिरंगी दुनिया है मगर आदमी ने रंगीन को बेरंग किया और फिर बदरंग किया है। ये खुद किया है हमने और अब परेशान हैं ये खूबसूरत दुनिया हुआ करती थी इतनी खराब कैसे बन गई जो देखते हुए भी घबराते हैं। आईने में अपनी शक्ल नहीं पहचानते हैं ये लोग जो औरों को दिखाने का काम करते हैं समाज की तस्वीर क्या है। साहित्य की बात करने वालों को सामाजिक विषयों से सरोकार से अधिक चिंता अपने को स्थापित करवाने की होती है। सच की बात कहने वाले कितने हैं और कितने हैं जिनको साहित्य की साधना करनी है। बाकी लोगों की तरह लिखने वालों ने भी झूठ से दोस्ती कर ली है और उन राहों से समझौता कर लिया है जो उधर जाती हैं जिधर हर कोई इक अंधी दौड़ में भाग रहा है पैसे और नाम ताकत और शोहरत की खातिर।

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