अप्रैल 25, 2019

कलयुग की कथाएं ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

          कलयुग की कथाएं ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

                              देशभक्ति की कथा ( अध्याय पहला )

     भारत देश सारे जहां से अच्छा बन चुका है 2020 अभी आना बाकी है पहले ही घोषित योजना और कुछ कर दिखने सब ठीक करने की शपथ निभाई जा चुकी है। कोई गरीब नहीं रहा कोई अशिक्षित नहीं रहा सबको शिक्षित होने का कार्ड मिल गया है। आधुनिक काल है कोई जब मर्ज़ी जो शिक्षा पाने की बात लिख सकता है ज़रूरत अनुसार बदल भी सकता है और इसमें कोई अचरज की बात नहीं है। स्नातक बनने के पांच साल बाद कोई अपनी बारहवीं की शिक्षा पास की हुई है की शपथ खा सकता है गंगा को उल्टी बहा सकता है। अच्छी बात ये है कि छोटे बड़े एक समान हो गये हैं कोई वीआईपी नहीं कहलाता है सबका एक बैंक है और हर बैंक का एक बही खाता है काला धन भी नज़र नहीं आता है कालू राम रामदेव की बनाई क्रीम लगाता है गोरा बनकर इठलाता है। जो काले को काला बुलाता है झूठा खुद कहलाता है। इक मसीहा है जो सबकी कालिख मिटवाता है बस कुछ लोगों को बदरंग बतलाता है जिनका उस से तीन छह वाला नाता है। हर उद्योगपति हर मालदार हस्ती खिलाड़ी अभिनेता कारोबारी दानी बन कर अपना सब जनता को बांट देश सेवा करते हैं। महल उनके जनता की भलाई के लिए स्कूल अस्पताल बन उपयोग होने लगे हैं। संसद सब छोड़ सादगी से बसर करने लगे हैं उनके करोड़ों रूपये जमा किये हुए आकाश से बारिश करने लगे हैं भूखों के पेट भरने लगे हैं। जो अभी तक रईस थे खुद मेहनत करने लगे हैं नेक कमाई से जीने मरने लगे हैं। कोई रिश्वत लेता नहीं देता नहीं कोई भूल कर भी भूल करता नहीं। इंसान नहीं देवता बन गए हैं लोग , कौन जाने किधर गए है खराब पापी गंदे लोग। धर्म वालों ने संचित धन वापस बांट कर गरीब थे जो उनको अमीरों से अमीर बना दिया है भगवान सब की सुनता है दिखला दिया है। किसी तिजोरी पर कोई ताला नहीं है कोई चोर ही नहीं है तो रखवाला भी नहीं। सब अपने हैं कोई रिश्तेदार नहीं भाई बहन बेटा बेटी दामाद जीजा साला नहीं कोई पत्नी नहीं कोई घरवला नहीं। 

                  धोखा प्यार और पैसा और नाम बदनाम ( अध्याय दूसरा )

        ऋषि विश्वामित्र और मेनका की कहानी जारी है। तपस्या करने की सब की बारी है मीटू की कथाओं का युग है नारी पुरुष पर भारी है। आज किसी और की तो कल आपकी भी बारी है। हर महिला बेबस है बेचारी है हर पुरुष अत्याचारी है। बात पुरानी समझ अब आई है उसने मुझे छेड़ा था अब पता चला दुहाई है दुहाई है। साधु संत भी जेल की शोभा बढ़ाते हैं राम जी हनी सिंह के गीत गाते हैं। पहले खुद फायदा उठाती है साथ मिलकर मिलन गीत गाती है वक़्त बदलता है तो हालात देख आरोप लगाती है। इक कथा पुरानी पढ़ी थी हमने , इक बदनाम औरत ने इक सन्यासी को घर बुलाया था। वैश्या है मत जाओ सब से उसको समझाया था। सन्यासी ने इक सवाल उठाया था उसको कौन इस राह पर लाया था , गांव के कितने लोग उसके साथ रंगरलियां मनाते हैं खुद को बहुत पाक साफ बतलाते हैं ताली दो हाथ मिलकर बजाते हैं। माना महिला के साथ ज़ोर ज़बरदस्ती करना पाप और अपराध है मगर ये भी तो नहीं इंसाफ है किसी की खता की सज़ा सूली और किसी की माफ़ है। जब तक मर्ज़ी खामोश रहना और अवसर देख कर विलाप करना नारी इसी बात पर बदनाम है आधा सच बोलकर आधा झूठ मिलाती है तभी विश्वसनीयता खो जाती है। पहले जिस्म की नुमाईश लगाती है खुद इक सुंदरता का नकली जाल बुनवाती है पंछी फंसता है कुछ दिन निभाती है इक दिन चाहत मर जाती है ठीकरा उस के सर फोड़ कर चिल्लाती है। अच्छे भी खराब भी दोनों हो सकते हैं नारी भी पुरुष भी मगर औरत कुलटा है खराब है पुरुष की अय्याशी माफ़ है। नाम बदनाम किसका होता है ज़ुल्म है या कोई समझौता है। दोष किसी का भी हो सकता है मगर घायल ज़ख्म भरने तक छुपकर नहीं रखता है कोई किसी को तो बतलाता है खामोश रहा तो शक इस का भी जाता है , पहले खाकर फिर कड़वा बतलाता है। इक गीत याद आता है , वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बर्बाद किया है इल्ज़ाम किसी और के सर जाये तो अच्छा। अंत में राज़ की बात नहीं सच बताता हूं कितनी कहनियां बनी बिगड़ी बताता हूं। बड़ी चोट खाई ज़िंदगानी पे रोये , मुहब्बत की झूठी कहानी पे रोये। इक नामी शायर हैं कभी किसी के घर जाया करते थे अपनी ग़ज़ल ठीक करवाया करते थे उनकी बेटी को बहन बुलाया करते थे। उनको क्या खबर थी उनके अनुपस्थित होने पर क्या गुल खिलाया करते थे शादीशुदा होकर लड़की पटाया करते थे। कहानीकार बड़े कहलाया करते थे खूब दौलत कमाया करते थे। जब मियां बीवी राज़ी तो क्या करेगा काज़ी। समझ आई बात ज़रा सी , उनको मुहब्बत लगती है पिता को धोखा फरेब ही नहीं विश्वास घात लगता है। जंग और मुहब्बत में सब जायज़ नहीं होता है , इक पंजाबी नज़्म है उंहूं हेरा फेरी नहीं। नेता अभिनेता हेराफेरी को फिर हेराफेरी दोहराते हैं फिल्म कितनी बनाते हैं। महफ़िल में सबके राज़ खुलने लगे तो कितनों की हालत खराब होगी कोई नहीं जानता है। पर्दे में रहने दो पर्दा न उठाओ खुद भी आपकी बात आएगी किसी एक से निकली तो कितनों के साथ। अगर दिलबर की रुसवाई हमें मंज़ूर हो जाये , सनम तू बेवफ़ा के नाम से मशहूर हो जाये।

                              झूठ के देवता का घर ( अध्याय तीसरा )

   झूठ के देवता की महिमा फैलती जा रही है। दर्शन करने बड़े बड़े नेता आने लगे हैं। फेसबुक पर भी उनकी चर्चा होने लगी है। मुझे आदेश मिला है सोशल मीडिया पर झूठ की उपासना करने वालों की लिस्ट बनानी है। ऊपर वाला भी सभी की मनोकामना पूरी करने में पूरी तरह सफल नहीं हो सका क्योंकि सही जानकारी का अभाव था और लोग कभी कुछ कभी कुछ और चाहने लगते थे। अब हर कोई एक ही मनोकामना रखता है चौकीदार बनने की खुद को घोषणा करने लगे हैं मैं भी चौकीदार। भगवान उन सभी के घर में हर सदस्य को चौकीदारी का काम ठीक से सिखला दे। जिस देश में लोग चौकीदार होने की कामना करते हैं उस देश को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता है। अंग्रेजी भाषा की कविता दि वॉचमैन सबको पढ़नी होगी यही पढ़ाई क्या नहीं बना सकती है। हिंदी में उसका सार इतना सा है कि चौकीदार हर घर के सामने जाता है और रौबीली आवाज़ में सवाल करता है , सब ठीक है। पहले घर में इक महिला अपना सब कुछ लुटवाए बैठी होती है अकेली , चौकीदार ने उसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी ली थी , जवाब देती है जी हज़ूर सब ठीक है। अगले घर में किसी की मौत हादसे में छोटी आयु में हुई थी , उस घर के सामने भी चौकीदार सवाल करता है सब ठीक है और जवाब भी जी सब ठीक है मिलता है। और इक घर में लाचार बूढ़ा भूखा सर्दी में ठिठुरता कंपता बिना किसी कपड़े नंगे बदन बैठा हुआ होता है , चौकीदार का सवाल सब ठीक है का धीमी आवाज़ में जवाब देना होता है सब ठीक है। ये किसी थ्री इडियट्स फिल्म का आल इस वेल गीत चुराया हुआ नहीं है। पहले भी हिंदी फिल्म में गाना बना हुआ है , हाल चाल ठीक ठाक है और सब ठीक ठाक है। कुछ भी ठीक नहीं मगर फिर भी मस्त मौला लोग गाते फिरते हैं सब ठीक ठाक है। झूठ की पहचान आसान नहीं है और लोग जान कर भी अनजान बने रहते हैं। झूठ बोलने वाला जनता है झूठा हूं मैं और समझने वाले भी जानते हैं फिर भी झूठे को झूठा कहने का साहस कोई नहीं करता है। झूठे ने किसी का भला नहीं किया तब भी जाने क्यों लोग कहते हैं जीत अभी भी झूठ की होगी।  
 
          विषय पार आते हैं सबको रोज़गार दिलवाते हैं अपने बच्चों को चौकीदार जी की जैसी पढ़ाई करवाते हैं और उनका भविष्य रौशन बनाते हैं। चौकीदारी का खेल मज़ेदार है खुद भी खेलते हैं सबको खिलवाते हैं। जिस मोड़ से चले वापस उसी जगह आते हैं यही तो अच्छे दिन हैं समझते हैं समझाते हैं। लिस्ट पर अपना अपना नाम लिखवाना है देखो यही आया नया ज़माना है। हेमामालिनी को बुलवाते हैं वही गीत दोहराते हैं यादें यादें याद दिलवाते हैं। इक अड़चन आई है दुहाई है दुहाई है फेसबुक पर लड़के ने लड़की की आईडी बनाई है उसकी अगले जन्म में यही होने में भलाई है जिसकी रही भावना जैसी मनोकामना होगी पूरी क्या ऐसी। आपकी हर पोस्ट को समझा जा रहा है उसी से आपका भविष्य का तकदीर का निर्णय लिखा जा रहा है। सूचना सही देना अन्यथा बाद में नहीं पछताना , चैकीदार बनने की चाहत रखते हो तो बन कर फिर मत पछताना। 
 

                              हार में भी अच्छाई है ( अध्याय चौथा )

         ऊपर आसमान पर भाग्यविधाता लिखने लगे हैं। उनकी विनती सुनाई दी कि भगवान सब कुछ मिल चुका है जो भी चाहा तुमसे मांगा कभी बिना मांगे उम्मीद से बढ़कर भी दे दिया तुमने। तुम से कुछ छुपा नहीं है। पिछली बार जैकपॉट लगा था अब ऐसा क्या मुमकिन है जो नहीं मिला मांगा जाये। खुद आप ही सोच कर जो अभी तलक नहीं मिला वो अनुभव दे देना। तथास्तु। भगवान ने कह दिया।  
 
           अब भगवान की कही बात झूठ साबित नहीं हो सकती है। पांच साल तक कोई जगह नहीं छोड़ी आरती पूजा बंदगी इबादत अर्चना सब तरीके से बड़े शानदार ढंग से। भाग्य लिखने वाली कलम अटक गई ये सोचना था क्या है जो अभी नहीं मिला भक्त को , यहां तक कि उसको भक्त बनाने की इच्छा मन की दबी हुई भी हासिल हो चुकी है। 
 
     सलाहकार बुलाये गए और विचार विमर्श किया गया। बहुत वरदान देने की बात उचित नहीं लगी क्योंकि जो पहले कभी नहीं मिला उसकी विनती का ध्यान रखना था। तभी इक व्यंग्यकार का सुझाव भगवान और पूरे दरबार को लाजवाब लगा। भगवान की कही बात भी पूरी हो जाएगी और जो वरदान चाहते हैं उस पर भी खरा उतरता है। सुझाव ये था कि उनको जीत का अनुभव बहुत बार हो चुका है मगर अभी तक हारने का कोई अनुभव नहीं हुआ उनको। इस बार हारने का वरदान देना सही होगा क्यंकि हारने के बाद जीतने की कीमत भी अच्छी तरह से समझ आ जाएगी।

        बात ठीक लगी इस बहाने उनकी कितनी बार दोहराई बात की भी सच्चाई की परख हो जाएगी कि मुझे सत्ता का कोई लालच मोह नहीं है और जब देश की जनता आदेश देगी झोला उठाकर चल देंगे जिधर मर्ज़ी मन की बात की। सबसे बड़ी बात दोस्त दुश्मन की पहचान भी तभी होती है जब आपके पास धन दौलत ताकत शोहरत कुछ भी पास नहीं रहता है। उनके तथाकथित भक्तों की भी संख्या बढ़ने घटने का इम्तिहान इस तरह हो जाएगा। भगवान की मर्ज़ी है कोई क्या कर सकता है। 
 
 

                          भगवान भक्ति और गुलामी ( आखिरी अध्याय )

   भगवान के होने नहीं होने पर इक वैज्ञानिक की बात कही जाती है। भगवान है मान लेने से सब कुछ मिल सकता है अगर वास्तव में कोई भगवान है और अगर नहीं भी है कुछ भी खोना नहीं है। लेकिन ये बात आधी है क्योंकि लोग जब भगवान को मानते हैं तो सब भगवान भरोसे छोड़ देते हैं ये नहीं समझते भगवान उन्हीं की सहायता करते हैं जो अपनी सहायता खुद करते हैं। हमारी मूर्खता तब चरम पर होती है जब हम किसी आदमी को देवता समझने लगते हैं क्योंकि हम किसी की असलियत नहीं जानते हैं। जैसे जिनको अमिताभ बच्चन या सचिन महान लगते हैं उनको खबर नहीं होती कि अमिताभ बच्चन ने कभी देश का कानून तोड़ कर लोनावला में ज़मीन लेने को जालसाज़ी की थी उत्तरप्रदेश सरकार से मिलीभगत कर किसी गांव की ज़मीन हथियाने और किसान होने का प्रमाण बनवाने का। सचिन विदेश से करोड़ों की कार लाते हैं मगर कर नहीं देना चाहते। इन सभी की बात छोड़ आज की बात करते हैं। 
 
         जो लोग आज देश और समाज से बढ़कर किसी नेता की चाटुकारिता करते हैं और खुद को उनका भक्त बताते हैं उनको शायद मालूम नहीं उन जैसे लोग सत्ता के शिखर पर बैठे व्यक्ति के सामने नतमस्तक हो कर देश का कोई भला  नहीं करते बल्कि आज़ादी से पहले ऐसे लोग अंग्रेज़ों का गुणगान किया करते थे। सवाल किसी और दल या सरकार का नहीं है सवाल आज की सरकार की कथनी और करनी का है। कोई बता सकता है मोदी जी ने पांच साल में जो वादे करने की बात की थी उस पर खरे उतरे हैं। उनका शोर नहीं अपने आस पास की वास्तविकता देखो तब समझोगे। सबसे पहली बात कोई नेता किसी को अपने पास से कुछ नहीं देता तो देश समाज की सेवा की बात झूठी है सत्ता पाकर अपना अपने दल का भला करना आपको नज़र नहीं आता। वो आपका धन है जिसको बर्बाद किया गया शानो शौकत और अपने शौक पूरे करने पर जबकि बात गरीबों की होनी चाहिए थी। कितने अपराधी उनके दल में शामिल किये जानोगे तो पता चेलगा हर दल से अधिक दाग़ी उन्हीं के साथ हैं। करोड़ों की लागत से 75 शहरों में दफ्तर कभी पहले किसी दल के नहीं बन सके भाजपा के बन गए तो कैसे। उन के घरों पर धन की बरसात कैसे हुई और कैसे देश की सबसे रईस पार्टी बन गई। देश तो अमीर नहीं बन सका और गरीबों की संख्या घटी नहीं। आप लोग सुविधा संम्पन जीवन जीते हैं देशभक्त बनते तो समझ आता देश व्यक्ति नेता सरकार नहीं लोग होते हैं।

       केवल पहले की सरकारों की बुराई करने से देश का भला नहीं होता है और जब भी किसी नेता को लोगों ने देश से बड़ा समझने की गलती की है इतिहास गवाह है देश की आज़ादी खतरे में पड़ी है इंदिरा गांधी ने गद्दी नहीं छोड़ने की खातिर आपत्काल घोषित किया है। हालात आज उसी तरह के हैं सत्ता छूटनी नहीं चाहिए भले कुछ भी करना पड़े। आखिरी सवाल क्या मोदी जी या उनके दल के नेता संविधान चुनाव आयोग कानून का पालन कर तय सीमा में खर्च कर चुनाव लड़ सकते हैं। अगर नहीं तो कोई भी दल हो नेता हो देशभक्त कहलाने का हकदार नहीं है। देश की व्यवस्था नियम का पालन नहीं करना अपराध हो सकता है महानता नहीं। काश हम सभी किसी भी नेता को खुदा नहीं बनाएं और जैसे हमने देखे हैं साधु संत बनकर तमाम अपराध करते लोग धर्म की आड़ में आज जेल में हैं , ये वही नेता हैं जो उनको बचाते रहे हैं। आज भी गंभीर अपराध का आरोप लगा होने के बाद भी कौन किसी को साधु समझ टिकट देकर अपना उम्मीदवार बनाता है। ये घोर कलयुग है जिसमें भगवा धारण कर नफरत और भेदभाव की बात को भी करते हुए कोई संकोच कोई आत्मग्लानि नहीं होती बल्कि सीना तान कर अहंकार की भाषा में बात करते हैं।  

 

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