अक्तूबर 11, 2016

रावण बहुत हैं पर श्रीराम कहां हैं ( कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया

      रावण बहुत हैं पर श्रीराम कहां हैं ( कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया

                   श्रीराम कहां गये , रावण को जलाना है , राम कहीं नज़र ही नहीं आ रहे। युद्ध जारी है दोनों तरफ ही रावण हैं आमने सामने लड़ते हुए। जीत रावण की ही होगी , रावण मरेगा फिर भी ज़िंदा रहेगा , लंका में हो चाहे अयोध्या में राजतिलक रावण का ही होगा। कोई भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम की तलाश नहीं करना चाहता , सब ने मान लिया है इस युग में वो मिल ही नहीं सकते , सभी अपने अपने रावण को राम घोषित कर रहे हैं। नया इतिहास लिखा जाना है फिर से इक नई रामायण लिखनी है , कलयुगी तुलसीदास खोज लिये गये हैं। इन्होंने कितने ही नामों पर चालीसे लिख डाले हैं साहित्य में नाम कमाने को। रावण हर शहर में है और पिछले साल से अधिक ऊंचे कद का है , हर रावण को जलाने को और भी रावण हैं जो खुद को राम कहलाना चाहते हैं। उन सभी के पास अपना अपना तुलसी है जो उनको मर्यादा पुरुषोत्तम बता सकता है। बड़ी समस्या खड़ी हो गई है जनता को समझ ही नहीं आ रहा इतने रावणों में से किसको अपना राम समझे और उसकी वंदना करे। जनता की मज़बूरी है उसको आरती उतारनी ही है चाहे कोई भी मिल जाये बिना किसी को भगवान बनाये उसका गुज़ारा नहीं होता। जनता भेस देखती है , चरित्र को नहीं पहचानती , राम का भेस धरे खड़े हैं हर तरफ रावण , जनता है कि बंट गई है। हर रावण की जय-जयकार करने वाले लोग हैं , सभी का अपना अपना स्वार्थ जुड़ा हुआ है , किसी न किसी के साथ। इक बात सभी  की एक समान है , हर राम अकेला है , किसी के साथ लक्ष्मण नहीं है , न सीता ही है , हनुमान कौन है कोई नहीं जानता । जंग भी सीता को लेकर नहीं है , कुर्सी नाम की वस्तु को लेकर लड़ रहे हैं सब। सभी का दावा है वही कुर्सी का सही हकदार है , हक साबित करने की अपनी अपनी परिभाषा भी सब की है , देश और जनता की भलाई को छोड़ बाकी सब उनको याद है।

                      कलयुग में किसी को किसी का भरोसा नहीं है , भाई हो या पत्नी , चाहे कोई मित्र , कुर्सी की खातिर सभी बदल सकते हैं , इसलिये उनका त्याग भी किया जा सकता है। कुछ नये अवतार सामने आये हैं जो सब को निर्देश देते हैं कि जैसा हम बतायें वैसा ही विश्वास करें , जो भी हमारी बात से सहमत नहीं होगा उसको रावण साबित कर दिया जायेगा और उसी को आग के हवाले कर देंगे। खुद को राम घोषित करवाने को सभी उनकी बात का समर्थन कर रहे हैं। इन अवतारों का कहना है कि जो भी ये कहते हैं वही जनता का अभिमत है , उनका अपना सर्वेक्षण है अपनी बात को सच साबित करने को। कोई इनके अवतार होने पर शक नहीं कर सकता , जो ऐसा प्रयास करे वो पापी है झूठा है , नासमझ और नादान भी जो उनकी ताकत को नहीं पहचानता उनकी महिमा को समझना नहीं चाहता। वाकयुद्ध इनका ब्रह्मास्त्र है और उसका उपयोग करने में ये पारंगत हैं , इनका मानना है अब यही सब से बड़ा हथियार है। इनको एक ब्यान से कितने लोगों पर निशाना लगाना आता है , कोई इनका सामना करना नहीं चाहता। इनका झूठ ही आजकल सच कहलाता है। इनकी भी सेना है जो लड़ती रहती है छदम युद्ध सभी से , ये सभी सेनापति हैं , इनका सैनिक कोई भी नहीं है। मगर इनको इक मंत्र आता है जिसको जपकर ये जनता को अपना समर्थक बना लेते हैं , ये कहकर कि हम आपकी लड़ाई लड़ रहे हैं। इनको हर हाल में जीतना है , जीतने को सब कुछ करने को तत्पर हैं। ये हार भी जायें तब भी अपनी हार नहीं स्वीकार करते , हार को जीत साबित कर देते हैं।

                       आज युद्ध अच्छाई की बुराई पर जीत की खातिर नहीं है। सवाल किसी बुरे को भला साबित करना है , ताकि किसी रावण को राम घोषित किया जा सके जो खुद अपने को जलाने का चमत्कार दिखा कर भी कभी मरे नहीं ज़िंदा ही रहे। सभी अपने भीतर के रावण को बचाये रखना चाहते हैं , अहंकार रुपी रावण खत्म होता ही नहीं है। ये नया कुरुक्षेत्र है , किसी को धर्म की रक्षा नहीं करनी है , सब को राज्य पाकर जनता रुपी द्रोपती का चीरहरण करना है। सब व्याकुल हैं राजतिलक करवाने को , जीत की वरमाला पहनने का सपना हर किसी का है। बेबस जनता छली जाती है बार बार , फिर उसका चयन गलत साबित होता है , योग्य वर होता ही नहीं उसके पास कभी। मगर उसको जयमाला पहनानी ही पड़ती है , इनकार करने का अधिकार उसको नहीं है। काश अब के वो साफ कह दे साहस करके कि तुम सभी एक जैसे हो , मुझे तुम में किसी को वरमाला नहीं डालनी है। तुम में राम कोई भी नहीं है। अब मुझे न कोई अग्निपरीक्षा देनी है न ही धरती में समाना है। मैं इस युग की नारी निडर हो कर कहती हूं  , तुम सभी ही रावण हो राम नहीं हो। आज सीता कहीं भी सुरक्षित नहीं है न वन में न ही महलों ही में। नई रामायण लिखने वालो पहले जाओ कहीं से तलाश कर ढूंढ लाओ राम को। किस ने हरण कर लिया है श्री राम जी का , जनता रुपी सीता पूछती है कहां हैं श्री राम।

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