जुलाई 31, 2025

POST : 1990 अभी तलक उसी जगह ( दोस्ती प्यार अपनापन ) डॉ लोक सेतिया

  अभी तलक उसी जगह ( दोस्ती प्यार अपनापन ) डॉ लोक सेतिया 

करीब करीब एक महीने बाद पोस्ट लिखने लगा हूं , सोचता बहुत रहा , लिखना चाहा मगर लिख नहीं पाया । आज फिर सुबह सुबह जागा तो चाहत जागी और सोचा शुरुआत से सालों बाद तक जितना लिखता रहा उस पर नज़र डालनी चाहिए । अजीब एहसास है किसी दोस्त की दोस्ती किसी अपने का अपनत्व किसी का प्यार जिस की आरज़ू में लिखना शुरू किया अठरह साल से उम्र में चौहत्तर साल का होने पर भी खड़ा हूं उसी जगह जिस जगह से चलना शुरू किया था अजनबी भीड़ में अकेला । 30 जुलाई को अंतराष्ट्रीय मित्रता दिवस मनाया जाता है संयुक्त राष्ट्र ने 2011 में घोषणा की थी दुनिया में शांति प्यार विश्वास की भावना स्थापित करने को , शायद उस के बाद भूल गए ये समझने को कि हासिल क्या हुआ । कुछ मेरा भी हाल ऐसा ही है , आज की पोस्ट ऐसे ही विषय पर है 1990 वीं पोस्ट ब्लॉग पर पांच लाख व्यूज हुए हैं लेकिन कितने समझ सकते हैं मुझे और मेरी भावनाओं को मालूम नहीं है । कहना कठिन है कि दिल ख़ुश है न ही उदास है कोई दूर है न कोई पास है , अभी तक बाक़ी अधूरी प्यास है आशा का दामन थामा है बुझती आस है । सारा आलम  ढूंढ़ता है कहीं तो कोई जगह मिले सुकून से चैन से रहने को पल दो पल ही ठहरने को किसी को हासिल नहीं हुआ , दौड़ते रहते तलाश में । उम्र भर हमने मुहब्बत ही बांटी है सभी को बदले में मिलती है कभी तिजारत कभी सियासत कभी नफरत भी क्यों आखिर । लोग मिलते हैं आमने सामने तब भी बातें करते हैं जिनका कोई अर्थ नहीं होता बस औपचरिकता निभानी होती है । अक़्सर होता है बताते हैं खुद की बात सुनकर भी सुनते नहीं दूसरों की बात । संबंधों में कोई गर्मी नहीं है कोई बर्फ जैसे जमी हुई है मतलब की स्वार्थ की दुनियादारी निभाने की । सभी से शहर भर से जान पहचान चेहरे भर की असली पहचान से कोई मतलब नहीं है अजीब लगता है सामने बैठा व्यक्ति कितनी दूर महसूस होता है । मन तक कोई नहीं पहुंचता है । हंसते मुस्कुराते लोग भीतर से ग़मग़ीन उदास रहते हैं गहरी नदियों की प्यास रहते हैं । किसी शायर की बहुत पुरानी ग़ज़ल दोहराता हूं ।     
 
रंग जब आस - पास होते हैं , रूह तक कैनवास होते हैं । 
 
अहले - दानिश सभी किसी न किसी , उम्र तक देवदास होते हैं । 
 
खून दे दे के भरना पड़ता है , दर्द खाली ग्लॉस होते हैं । 
 
सैंकड़ों में बस एक दो शायर , गहरी नदियों की प्यास होते हैं । 
 
हमने यूं ही मिज़ाज़ पूछे थे  , आप नाहक उदास होते हैं ।  
 
 मनमोहक सूर्यास्त के रंग: एक दृश्य आनंद