सितंबर 16, 2024

सरकती जाये है नक़ाब ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

        सरकती जाये है नक़ाब ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

वो जिनकी वफ़ा की कसम खाते थे ज़माने वाले बेवफ़ा सनम निकले , कहते हैं इंसान की असलियत जब तक पर्दे में ढकी रहती है सभी भले लगते हैं राज़ खुलने लगे तो सब एक जैसे हैं । बार बार देखा है जो किसी की बेईमानी की बड़ी बुराई किया करते थे वक़्त बदला तो उनकी ईमानदारी की छवि बिगड़ी तो ऐसे कि लोग अपनी सोच पर शर्मिंदा थे । सत्ता की सियासत के हम्माम में सभी नंगे होते हैं चाहे जितना छुपाते रहें कभी न कभी शराफ़त की नक़ाब उतरती ज़रूर है । उस के बाद लाख सफ़ाई देते रहें यकीन नहीं करता कोई भी ये अजीब बात है जिस जिस को लेकर धारणा बनाई जाती है कि अमुक नेता कभी झूठ नहीं बोलेगा छल कपट धोखा हेराफ़ेरी नहीं कर सकता उसी की वास्तविकता सामने आती है तो हैरान होते हैं जब प्रमाण सामने आने पर भी उसे शर्म नहीं आती बल्कि ऊंची आवाज़ में आरोप क्या प्रमाण तक को झूठा बताता है । शराफ़त के पुतले समझे जाते लोग बदमाशी भी करते हैं तो दावे के साथ ये उनका कमाल है दाल में काला नहीं अब काली पूरी दाल है ऐसे शरीफ़ बदमाशों के हाथ सच्चाई की मशाल है । सत्ता की टकसाल का यही हाल है हर इक शासक बन गया ऐसा दलाल है जिस को सरकारी धन लगता ससुराल का माल है बुनता ऐसा जाल है कि जनता हुई बेहाल है । 
 
जो वास्तव में शरीफ़ होते हैं शराफ़त का बोझ जीवन भर ढोते हैं शरीफ़ कहलाना अच्छा है शराफ़त से रहना खराब है । शराफ़त अली को शराफ़त ने मारा अपने सुना होगा , इक नवाज़ शरीफ़ थे क्या बताएं कैसे और कितने शरीफ़ थे दोस्त थे मगर रक़ीब थे जितना फ़ासला था लगते उतने करीब थे आदमी अजीब थे । छोड़ो उनकी नहीं अपने देश समाज की बात करते हैं शराफ़त का चोला पहन कर क्या क्या करते हैं पकड़े जाएं तो सच से मुकरते हैं । अपने ही घर में खुद अपने ही दल की महिला की पिटाई करवाते हैं झूठ को सच और सच को झूठ बनाते हैं दुनिया को क्या समझाते हैं । हमारे देश में राजनेताओं की शराफ़त का डंका बजता है हर घोटालेबाज़ निर्दोष साबित होता है हर क़ातिल मासूम दिखाई देता है मगरमच्छ के आंसू बहाकर इंसाफ़ को डुबोता है । सबसे अधिक अपराधी जिस दल के सांसद हैं वही न्याय धर्म और सुरक्षा देने का जनता को भरोसा दिलवाता है कौन तेरी गली से ज़िंदा बचकर कभी आता है जो भी इंसाफ़ की गुहार लगाता है बेमौत मर जाता है । उनकी इंसानियत का अलग बही खाता है जो देता है बस वही पाता है अपनों को बचाना उनको आता है । देश की राजनीति में आजकल चला नया दौर है हम सभी एक जैसे हैं लेकिन सवाल यही है कि कौन कितना बड़ा चोर है । 
 
अमेरिका की शराफ़त कमाल की चीज़ है जिस देश की सहायता करते हैं उसे अपने जाल में ऐसा उलझाते हैं कि उन पर विश्वास करने वाले हमेशा पछताते हैं । विश्व बैंक आईएमएफ़ सभी को उंगलियों पर नचाते हैं लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर अपना कारोबार चलाते हैं । हमारी शराफ़त की पुरानी कहानी है काने राजा की अंधी महारानी है अंधी पीसे कुत्ता खाये दुनिया जानी पहचानी है । सरकार की खूबसूरत इक तस्वीर है जनता के पांव में बंधी हुई कितनी जंज़ीर है नेताओं अधिकारियों उद्योगपतियों की खुली तकदीर है जो जितना ज़ालिम है उतना कहलाता शूरवीर है । हमारे देश में भिखारी मालामाल हैं मेहनतकश लोग भूखे और बेहाल हैं सरकार जनता की सुविधाओं की ख़ातिर धन नहीं है समझाती है बाहर किसी देश की सहायता कर अपना गौरव बढ़ाती है । देशवासियों को बांटते हैं लड़वाते हैं चुनाव जीतने की खातिर दंगे फ़साद करवाते हैं मगर किसी अन्य देश में जाकर दो देशों में समझौता करवाने को चर्चा करवा शांतिदूत कहलाते हैं । अब हमारे देश में शराफ़त और ईमानदारी की कोई राजनीति संभव ही नहीं है सब एक थाली के चट्टे बट्टे हैं शरीफ़ नाम है इसलिए बड़े अच्छे हैं झूठे हैं लगते सच्चे है अभी आम कच्चे हैं । शराफ़त की नक़ाब धीरे धीरे सरकती जाती है उतरने नहीं दी जाती लोकतंत्र की लाज बचाने को थोड़ा घूंघट रखते हैं दिखाई भी देता है कुछ थोड़ा छुपा भी रहता है । कैसा पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं साफ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं ।   

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कुर्सी के अजब खेल ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

               कुर्सी के अजब खेल ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

सब कुछ बदलता है बदलना प्रकृति का नियम है मौसम तो बदलते रहते हैं कुछ लोग मौसम को देख बदलते हैं । राजनीति इतनी बदल चुकी है कि उस में नीति विलुप्त हो गई है राजनेता हवा का रुख देख जिधर की हवा चलती है उधर चल पड़ते हैं । देश की राज्य की राजनीति में कुछ लोग इस का आंकलन करने में माहिर होते हैं किस गठबंधन से सत्ता में भागीदारी मिल सकती है और हर बार शासक दल के संग साथी बने दिखाई देते हैं । नौकरी कारोबार में अथवा राजनीति के बाज़ार में उनको सफ़लता हमेशा मिलती है समाज में जिनको लोग निठल्ले समझते हैं चाटुकारिता उनको वरदान दिलवाती है । एकरूपता से लोग बोर होने लगते हैं अभी कुछ दिन पहले कॉमेडी पसंद थी अब उबाऊ लगती है कितनी बार वही सब देख सुनकर हंसी आएगी आखिर तो उकताहट होने लगती है । सिनेमा जगत इतना बदला है कि उसकी जगमगाहट आजकल घोर अंधकार को बढ़ावा देने लगी है । धार्मिक फ़िल्में टीवी सीरियल कितना शानदार लगते थे आजकल उनका बंटाधार कर समाज को गुमराह किया जाने लगा है मगर लोग दर्शक समझने लगे हैं चैनल वाले सिर्फ भावनाओं को अपने आर्थिक फायदे को इस्तेमाल करना चाहते हैं उनको आस्था धर्म से कोई सरोकार नहीं है । 
 
देश आज़ाद हुआ राजनीति भी श्वेत श्याम फिल्मों की तरह रंगीन होती गई राजनैतिक दलों का चलन बदलता गया और धीरे धीरे पर्दे खुलते खुलते लोकलाज से किनारा कर लिया सभी ने सत्ता की चाहत ने सभी को अंधा कर दिया । लोकतंत्र को अपनी सुविधा से मनचाहे परिधान पहनाये गए समाजवाद पूंजीवाद से शुरू कर गरीबी हटाओ से परिवारवाद तक का सफर जारी है । बस एक बार जिसे सत्ता मिली जनता जिसके झूठे वादों पर भरोसा करती रही वो सभी मनमानी करते रहे और खुद को मसीहा समझते रहे । शासक बनकर किसी ने देश की जनता की समस्याओं का समाधान करने का कोई प्रयास नहीं किया और केवल अपना घर भरने और लूट करने पर ध्यान केंद्रित रहा । लोग बदहाल बर्बाद होते गए और राजनेता शाहंशाह और अमीर बनते गए जिस से सरकारी धन तथाकथित विकास की आड़ में उनकी तिजोरियां भरता रहा । चुनाव आयोग से सुप्रीम कोर्ट तक जानते हुए भी अनजान बन कर चुनावी राजनीति में धन और बाहुबल का दुरूपयोग होते देख खामोश रहे । लोकतंत्र किसी काल कोठरी में कैद होकर अंतिम सांसे गिन रहा है जैसे रोगी आईसीयू में वेंटीलेटर पर ज़िंदा हो । 
 
आजकल राजनीति आशिक़ों का कभी रूठने कभी मान जाने का खेल बन गया है । किसी को किसी पर भरोसा नहीं हर कोई इस हाथ दे उस हाथ ले की बात करता है । अपना बेगाना बनते देर नहीं लगती और अजनबी अनजान से मधुर संबंध बना लेते हैं आवश्यकता पड़ने पर बहुमत साबित करने को । मर्यादा की बात और आदर्शों की बात नैतकता की बात आधुनिक राजनीति के शब्दकोश में ये सभी उपयोगी नहीं हैं । अब राजनीति में सभी दोस्ती करते हैं दुश्मनी से बढ़कर ख़ंजर पीठ में घोप सकते हैं गले लगाकर । राजनीति किसी गंदगी कीचड़ से भरी नदिया जैसी बदबूदार है सभी कहते हैं लेकिन सभी अवसर मिलते ही डुबकी लगाने को तैयार हैं ।  किसी वैश्या की तरह बदनाम होकर भी जब करीब आती है तो आलिंगन करने में साधु सन्यासी से धनवान और शासकीय पद पर रहा अधिकारी न्यायधीश चला आता है संबंध बनाने गंदी राजनीति से दिल बचाना आसान नहीं है । नर्तकी के कोठे की रौनक चमक दमक ने सभी को पागल बना रखा है । 
 
  Hate Speech Case; Supreme Court On Atal Bihari Vajpayee Jawaharlal Nehru |  सुप्रीम कोर्ट बोला-धर्म के साथ राजनीति लोकतंत्र के लिए खतरा: कहा- जब नेता  दोनों को अलग कर देंगे ...

सितंबर 15, 2024

जो तुमको हो पसंद ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

                 जो तुमको हो पसंद ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

मायके जाने से ठीक पहले श्रीमती जी ने घोषणा कर दी कि भविष्य में घर का गृहमंत्रालय का पद ही नहीं प्रधानमंत्री का पद भी उनके पास रहेगा । उनको प्रशासन चलाने में राष्ट्रपति की कोई आवश्यकता कभी स्वीकार नहीं थी इसलिए उस व्यवस्था को पहले ही अस्वीकृत कर दिया था । मुमकिन है ये योजना उन्होंने पहले से विचारधीन रखी हो और जैसे ही हमने उनको शादी के बाद जो तुमको हो पसंद गीत सुनाया था वो इरादा पक्का बन गया हो । लेकिन उनको कोई जल्दी नहीं थी कुछ समय मुझे अपने पति को निर्णय लेने देना इक रणनीति थी । धीरे धीरे उनके फैसले प्रभावी होने लगे थे बाद में मुझे जानकारी दी जाने लगी जिसे मैंने समझा की मुझे बोझ से राहत देने का प्रयास किया जा रहा है । ठीक उसी समय जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने सत्ता अपने हाथ ले कर संविधान को दरकिनार कर तानाशाही घोषित की थी । लेकिन श्रीमती जी ने कभी भी अपनी प्रणाली को तानाशाही नहीं माना , उनका मत है कि वो सही हैं उनका हर फैसला उचित होता है कोई तानशाही नहीं उनको सत्ता का कोई मोह नहीं है । पत्नियां कभी गलत नहीं होती हैं पति हमेशा नासमझ और नादान होते हैं महिला संगठन हमेशा इस पर पूर्णतया सहमत होते हैं । हमारे घर में अघोषित तानशाही का मुखौटा अब उतर गया है पति परमेश्वर का भ्रम पहले ही टूट चुका था । हमने कभी किसी पड़ोसी को अपने घरेलू लोकतंत्र में दख़ल देने की अनुमति नहीं दी है जैसे अमेरिका जैसे देश मानवाधिकार की बात के बहाने आपस में देशों में लड़ाई और शांतिवार्ता साथ साथ चलवाने की कोशिश करते हैं । 
 
महिला मुक्ति मोर्चा को इस की सूचना जाने कैसे मिल गई जबकि हमने निर्धारित किया था कि पत्नी के मायके और ससुराल अर्थात मेरे परिवार को इसकी जानकारी नहीं होने देंगें दोनों ही । महिला संगठन आगामी बैठक हमारे निवास पर आयोजित करने वाले हैं श्रीमती जी बता रही थी फोन पर ।  इतना तो हम भी जानते थे कि ये इक दिन होना ही है मगर इतनी जल्दी अचानक होना हैरान कर रहा था । आखिर मायके से लौटते ही हम महिला संघठन की बैठक के आयोजक और प्रयोजक बन चुके थे । सभी महिलाओं ने सर्वसम्मति से श्रीमती जी का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित किया और थोड़ा नानुकर नखरे कर आग्रह स्वीकार कर लिया गया । संसद में महिला आरक्षण की संभावना बढ़ गई लगती है , हमको अपना भविष्य साफ दिखाई देने लगा है । हमारा सवभाव समझौतावादी रहा है कोई भी उपाय हमको खोये हुए अधिकार दिलवा नहीं सकता है । कुछ और समझते हों या नहीं इतना जानते हैं कि घर को संसद या विधानसभा जैसा नहीं बनने देना है क्योंकि तब सत्ता की खींचातानी में देश की तरह घर तहस नहस होना परिणीति होगा । जिस बात को यूं ही उनको खुश करने को कह दिया था ' जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे , तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे ' श्रीमती जी ने उसे दिल की आरज़ू बनाकर सच साबित कर दिया है । अब यही करना हमारी नियति बन गया है । 
 
 
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सितंबर 14, 2024

बात करने का सलीका ( संवाद - विवाद ) डॉ लोक सेतिया

  बात करने का सलीका  ( संवाद - विवाद ) डॉ लोक सेतिया

भाषा कोई भी हो उस की शुद्धता आवश्यक है , जिस तरह से आजकल वार्तालाप से लेकर तमाम अन्य स्थानों पर मिलावटी भाषा का इस्तेमाल किया जाने लगा है हमारी दरिद्रता को दर्शाता है । लेकिन उस से भी अधिक चिंता की बात तब लगती है जब अनुचित शब्दों अथवा बोलने में अनावश्यक रूप से अपशब्दों का उपयोग किया जाता है । सार्वजनिक मंच पर सभाओं में एवं टेलीविज़न सिनेमा में जिस भाषा का उपयोग करने लगे हैं सुन कर लगता है जैसे समाज को गंदगी और झूठ परोसा जाता है । क्या हम अच्छे शब्दों का उपयोग कर सही ढंग से अपनी बात अपने विचार व्यक्त नहीं कर सकते हैं , तार्किक ढंग से बात समझाई जा सकती है फिर क्यों बात करते हुए अपनी वाणी पर संयम नहीं रख पाते और ऊंची आवाज़ में या कड़वे शब्दों का उपयोग कर किसी को मानसिक रूप से आहत करने का कार्य करते हैं । विचित्र बात है वही व्यक्ति जिस को पसंद करता खुश करना चाहता उस से प्यार से मधुर स्वर और शालीन शब्दों में संवाद करता है लेकिन जिस को पसंद नहीं करता उस से अलग और गलत तरीके से बात कर दर्शाता है कि मन में उस के लिए पहले से कोई धारणा बनाई हुई है । किसी की खराब बात को भी अनदेखा करते हैं तो किसी की भली बात भी हमको भाती नहीं है । उच्च शिक्षा ही नहीं उम्र का अनुभव भी हमको हमेशा उचित तौर तरीके से अपनी भावनाओं को व्यक्त करना नहीं सिखला सका तो सोचना चाहिए कारण क्या है । किसी और में बुराइयां देखना आसान है खुद अपने आचरण को समझना परखना कठिन है , आप कितने अच्छे हैं सही हैं तब भी अगर आप का बात करने का तरीका और शब्दों का सभ्यतापूवक उपयोग नहीं है तो उसे बदलना आवश्यक है । अपशब्दों के तीर जब किसी को घायल करते हैं तो उनसे हुए ज़ख़्म कभी आसानी से भरते नहीं हैं । 
 
आजकल समाज में बीमार मानसिकता बढ़ती जा रही है , स्वार्थ की खातिर चाटुकारिता और अपनी नापसंद की बात पर बिना समझे क्रोधित होना दर्शाता है कि आप कितने खोखले किरदार वाले हैं । दोस्ती चाहे कोई संबंध कितना भी करीबी हो भाषा संयमित रखना ज़रूरी है , कुछ लोग आदी होते हैं हर बात में गाली गलौच की भाषा उपयोग करने के बेशक कितने शिक्षित और उच्च पद पर कार्यरत हों । आपसी वाद विवाद में भी शब्दों का प्रयोग सोच समझ कर करना चाहिए इधर इसी कारण आपसी संबंध और मतभेद ख़त्म नहीं होते बल्कि वार्तालाप से और कटुता पैदा होती है । बड़े छोटे होने से आपको अधिकार नहीं मिलता मनचाहे ढंग से किसी को अपमानित करने का । संसद विधानसभाओं में भाषा और शिष्टाचार की मर्यादा का उलंघन बहुत अधिक होने लगा है शायद आपराधिक छवि के लोगों के संसद विधानसभाओं में चुने जाने से भी ऐसा होता है लेकिन बहुत बार समाज में सभ्य और शरीफ़ समझे जाते लोग भी आवेश में विरोध करते हुए आपा खो बैठते हैं ।  हिंदी दिवस मनाते समय भाषा को बढ़ावा देने तक ही चर्चा नहीं की जानी चाहिए अपितु संवाद चाहे वाद विवाद हो इक सीमा निर्धारित की जानी चाहिए शब्दों को सोच समझ कर सावधानी से उपयोग करना चाहिए । मैं अधिकांश असहज महसूस करता हूं जब कोई बातचीत में शाब्दिक सभ्यता की मर्यादा को लांघता है , कुछ ऐसा ही इक काफी पुरानी ग़ज़ल में कहना चाहा है जो अभी तक डायरी में लिखी हुई थी संशोधित करना शेष था आज सुधारा है नीचे पढ़ सकते हैं ।
 

बे-अदब लोगों से मुझको डर लगता है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया 

हर गली हर बस्ती अपना घर लगता है  
बे-अदब लोगों से मुझको डर लगता है । 

सारे आलम में पसरा हुआ है सन्नाटा
सहमा -सहमा सा हर इक बशर लगता है । 
 
थरथर्राहट सी होने लगी धरती में 
गिर गया आंधी में वो शजर लगता है । 
 
ओट लेकर छिपता फिर रहा है परिंदा 
ले गया है कोई काट पर लगता है । 
 
आजकल हमसे कोई बहुत रूठा है 
हम मना लेंगे इक दिन मगर लगता है । 
 
कब तलक दुनिया करती इबादत आखिर 
लग गया उठने हर एक सर लगता है ।
 
रात दिन जो रहता था खुला ' तनहा ' अब 
हो गया उस घर का बंद दर लगता है ।   
 
 हर एक बात पे कहते हो तुम के 'तू क्या है - Poetry Hub

बे-अदब लोगों से मुझको डर लगता है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया

  बे-अदब लोगों से मुझको डर लगता है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया 

हर गली हर बस्ती अपना घर लगता है  
बे-अदब लोगों से मुझको डर लगता है । 

सारे आलम में पसरा हुआ है सन्नाटा
सहमा -सहमा सा हर इक बशर लगता है । 
 
थरथर्राहट सी होने लगी धरती में 
गिर गया आंधी में वो शजर लगता है । 
 
ओट लेकर छिपता फिर रहा है परिंदा 
ले गया है कोई काट पर लगता है । 
 
आजकल हमसे कोई बहुत रूठा है 
हम मना लेंगे इक दिन मगर लगता है । 
 
कब तलक दुनिया करती इबादत आखिर 
लग गया उठने हर एक सर लगता है ।
 
रात दिन जो रहता था खुला ' तनहा ' अब 
हो गया उस घर का बंद दर लगता है ।   



सितंबर 13, 2024

उनकी प्यास उनका रोज़गार ( राजनीतिक कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया

उनकी प्यास उनका रोज़गार ( राजनीतिक कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया  

हमारा भारत देश महान है ये हमेशा से प्रमाणिक है आपको यकीन करना चाहिए शंका नहीं इस देश के तमाम राजनेता और सरकारी कर्मचारी अधिकारी ईमानदार हैं जनता के सेवक हैं । किसी ने भी अपने कर्तव्य को अनदेखा नहीं किया है कोई रिश्वत कोई घोटाला कोई जालसाज़ी किसी ने कभी की नहीं है झूठे साबित हुए हैं उन पर लगाए तमाम आरोप । उनकी निस्वार्थ सेवा से देश आगे बढ़ रहा है लोकतंत्र मज़बूत होता गया है गरीबी शिक्षा सुविधाएं स्वास्थ्य सेवाएं हर किसी को उपलब्ध करवाई जा चुकी हैं । आपको किसी भी अख़बार किसी भी टीवी चैनल पर ऐसी खबरें सुनाई दिखाई नहीं देती हैं । राजनेताओं ने अपना सभी कुछ समाज को अर्पित कर दिया है खुद या परिवार के सदस्यों के लिए किसी को कुछ भी नहीं चाहिए लाभ का कोई पद नहीं बस सिर्फ जनसेवा देशसेवा का अवसर पाने की चाहत है । इन सभी ने मिलकर देश में सभी को समान अधिकार न्याय और सुरक्षा उपलब्ध करवा दी है , सत्ता पाने को बिना जल की मछली की तरह ये नहीं तड़पते हैं । लोकतांत्रिक मूल्यों का आदर कर इन्होने परिवारवाद जातिवाद भाईचारा निभाने को कोई भी पक्षपात नहीं किया है । अपने बेटे बेटी दामाद पत्नी भाई भतीजे को सांसद विधायक मंत्री बनवाने की कोई कोशिश नहीं है क्योंकि ऐसा लोकतंत्र को खोखला करना है जानते हैं । अमरबेल की तरह सत्ता को जकड़ कर देश समाज को मिटाने का अपराध नहीं करते हैं । जाने कौन लोग हैं जिन्होंने सागर की तरह सभी नदियों का जल पी लिया है तब भी उनकी प्यास बढ़ती जा रही है । 
 
जब सभी कुछ मिलावटी है हवा प्रदूषित है जल स्वच्छ नहीं रहा ऐसे में किसी राज्य की साहित्य अकादमी ने सरकार से साहित्य को बढ़ावा और जागृति को करोड़ों रूपये स्वीकृति लेकर जल चेतना यात्रा निकाली है । पानी पर लिखी रचनाओं की बाढ़ सी आई इक विशेषांक निकाला गया जिस में शामिल रचनाओं को पुरुस्कार ईनाम इतियादी वितरित करने को सभाएं आयोजित कर पानी तक की प्यास बुझाई गई । कुछ पीने वालों ने शराब बिना कुछ मिलाये बोतल से पीने की शुरुआत कर कीर्तिमान स्थापित किया है । राज्यों में पानी के बटवारे को लेकर सियासी जंग का खेल कभी खत्म नहीं होने वाला ।  पानी का कोई रंग नहीं होता लेकिन रंग में भंग डालने वाले किसी को छोड़ते नहीं हैं । फ़िल्मी कलाकार पानी का महत्व समझा रहे हैं एयरकंडीशनर लगवा पानी बचा रहे हैं , दो बूंद पानी नहीं तो ज़िंदगानी नहीं गीत सुना रहे हैं । तारिकाओं को झरने तले नहलाते दिखला कोई और प्यास बढ़ा आग लगा रहे हैं । महानगर वाले स्विमिंग पूल में तैराकी सीख पानी का तापमान घटा बढ़ा स्नान का लुत्फ़ उठा रहे हैं । 
 
  शासक आधुनिक तौर तरीके आज़मा रहे हैं जनता को स्मार्ट फोन से जो चाहो मिलता है बता कर उलझा रहे हैं । रोज़ कितनी योजनाएं घोषित कर रहम खा रहे करम फरमा रहे हैं सब चमकती रेत से प्यास अपनी बुझा रहे हैं । लोग मुफ्त में सभी कुछ सरकारी ऐप्पस से पाकर घबरा रहे हैं आसमान छूने की चाहत में ज़मीन अपनी गंवाकर पछता रहे हैं । राजनीति सभी को समझा रही है शर्म इस बात की आती है चुनाव लड़ने की चाह करोड़ों की अधूरी रह जाती है । राजनीति अजब कारोबार है गली गली गांव गांव शहर शहर इसका विस्तार है दस को अवसर मिलता नब्बे बेरोज़गार है । साधारण जनता को अभी चाहिए लंबा सदियों तक  इंतिज़ार ही इंतिज़ार है चीखना चिल्लाना बेकार है नेताओं का खाली रहना रहना दो धारी तलवार है । देखा है हर राजनैतिक दल का खुला शोरूम है , बंद दरवाज़े में खैरात मिलती है कली दिल की खिलती है ज़िंदगी को इस जगह मोहलत नहीं मिलती है । इक सौ चालीस करोड़ जनता लुटने को तैयार है उसका नहीं कोई हिसाब नहीं लेकिन लूटने का अधिकार बहुत थोड़े नेताओं अधिकारियों को हासिल है । जनता को भीख मिलना बड़ी तकदीर की बात है सूखा मचाती बरसात है , नेताओं में दूल्हा है संग संग बारात है ।
 
राजनीति जैसे झुलसता हुआ रेगिस्तान है तिनके तिनके में छुपा हुआ तूफ़ान है । हर राजनेता की किसी तोते में रहती जान है जब तलक जान है जहान है अधूरा सभी का रहता अरमान है । सत्ता की हवेली दुनिया का सबसे शानदार श्मशान है ज़िंदा रहता खुद मरता है कितना नादान इंसान है । राजनीति की अजीब इक कहानी है मातम भी मनाना है बस्ती भी जलानी है पानी को आग लगाकर तस्वीर सजानी है ।
 
 
 
 Panaghat in 3 bighas and Agore in 1200 bighas, glass-like water appears on  the floor on the border of two villages. | धोरों के बीच बसे गांवाें से  तस्वीर: दो गांवों की
 

सितंबर 12, 2024

अजनबी बन जाएं हम दोनों ( व्यंग्य- कथा ) डॉ लोक सेतिया

   अजनबी बन जाएं हम दोनों ( व्यंग्य- कथा ) डॉ लोक सेतिया  

सदियां पुराने दो पेड़ हैं इस वन में , इक परंपरा है नाकाम आशिक़ अपने प्यार को पाने में असफल होकर यहां आते हैं अपनी व्यथा सुनाते हैं । मान्यता है कि ऐसा करने से अगर दोनों का प्यार सच्चा है तो उनका मिलन अवश्य हो जाता है । जिस पेड़ पर लाल रंग के फूल खिले हैं प्रेमिकाओं की बात सुनता है और पीले फूल जिस पर खिले हैं वो प्रेमियों की बात सुनता समझता है । दोनों पेड़ अपने पास आये प्रेमी प्रेमिका की बात को सुनते हैं और अपना आशीर्वाद देने को उन पर इक फूल गिराते हैं जिसे प्यार की सच्चाई स्वीकार करने का प्रमाण समझा जाता है । अकेले में दोनों पेड़ अपनी शाखाओं से आपस में लिपटते हैं और लगता है कुछ वार्तालाप करते हैं शायद जो दिन भर कोई आकर उनको बता गया है उस की बात करते हैं । दूर दूर तक इन पेड़ों को लेकर कहानियां प्रचलित हैं उन सभी ने इक बात समान बताई जाती है कि ये कभी दो प्रेमी थे जिनका मिलन नहीं हुआ किसी पिछले जन्म में और पुनर्जन्म लेकर ये पेड़ बनकर इस वन में साथ साथ रहने लगे कुछ फ़ासला रख कर । कहते हैं ये भी इक सबक है कि प्यार हमेशा बना रहे इस के लिए इन की तरह थोड़ा फ़ासला रखना चाहिए , आपस में बात कर सकें देख सकें मगर इक दायरा रहे जकड़ना नहीं चाहिए इक दूजे को कभी भी । प्यार ऐसा एहसास है जिसे महसूस किया जाता है परखने की ज़रूरत नहीं होती है । प्यार को कभी किसी भी तराज़ू पर तोला नहीं जा सकता कि कौन किसी से कितना प्यार करता है । 
 
आज इक लड़की आई है पेड़ से लिपट कर अपना दर्द बताने लगी है , तुझसे लिपट कर लगता है अपनी सब से प्यारी सखी से मिल रही हूं , जैसे वो मुझे उदास देख कितने सवाल पूछ रही हो । तुम्हारी आवाज़ नहीं सुनाई देती मगर मेरे मन में अपने आप सवाल आने लगे हैं शायद उसकी तरह तुम भी मेरा दुःख दर्द समझ रहे हो मैं कुछ भी छिपाना नहीं चाहती सब बताउंगी । मेरा नाम अंजलि है कॉलेज में पढ़ती हूं हम लड़कियां महिलाएं सजती संवरती हैं बनाव श्रृंगार करती हैं सुंदर वस्त्र पहनती हैं और इक सपना देखती हैं  कि कोई दिल की गहराई से चाहने वाला कभी मिले और अपना बना कर सब उसी पर न्यौछावर कर दें । माना नारी को सभी को खूबसूरत बनाया है मगर शारीरिक नहीं भीतरी सुंदरता किसी किसी में होती है , हर लड़की शायद लड़का भी ढूंढता है उसको जो उसके सुंदर मन को देख सके और प्यार करे । इसलिए जब कोई हमको वह बात कहता है जिसे सुनने को हम व्याकुल हैं तब हमारा दिल उड़ने लगता है ऊंचाइयों को छूने को क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है वही दुनिया में इक है जो हमारे लिए और हम उसी के लिए हैं । प्यार करने वालों के पास वही कुछ तौर तरीके होते हैं चांद तारे तोड़ लाना बिना आपके नहीं जीना जैसी बातें कहना जो काल्पनिक हैं जानते हुए भी अंतर्मन को छू जाती हैं । 
 
मुझे भी साहिल ने कहा था और मुझे उस पर विश्वास हो गया था , मैंने जैसे अपनी ज़िंदगी अपनी दुनिया सिर्फ साहिल तक सिमित कर ली थी , उसे पाकर कुछ भी और पाना बाकी नहीं रह गया था । हम सुनहरे सपनों की अपनी दुनिया में सातवें आसमान पर खुश थे । आपस में एक दूसरे को इक साधारण चांदी का छल्ला देते तो लगता ज़माने की सबसे कीमती चीज़ है । अचानक दो साल बाद साहिल बदला बदला लगने लगा है , वो विवाहित जीवन की ज़रूरतों परेशानियों पर संवाद करता है और घर बजट की चिंता पर विचार करने लगा है ।मेरा मन शादी करने से घबराने लगा है । खुले गगन में आज़ाद पंछी सी चिड़िया को पिंजरे का मंज़र सताने लगा है । साहिल कहता है विवाह ठीक से सोच समझकर करना चाहिए केवल प्यार से ज़िंदगी नहीं चलती है ।लगता है उस के प्यार में वो  पहले जैसी कशिश नहीं रही , इक ख़्वाब टूटता महसूस होने लगा है । उसकी प्रेमिका होना चाहती हूं जैसी पत्नी उसकी ज़रूरत है मेरे लिए बन पाना कठिन क्या नामुमकिन लगता है । मैंने सोचा है तो लगता है हमारा रिश्ता यहीं तक शानदार है विवाहित संबंध बनाने से प्यार बचेगा नहीं उसे जैसी संगिनी चाहिए कोई और हो सकती है । तभी इक फूल अंजलि की झोली में गिरा था और उसका अर्थ यही समझ आया था कि अंजलि का विचार सही है । अंजलि मन में कितनी उलझनें लिए आई थी मगर लौट रही थी शांत हो कर उचित निर्णय या निष्कर्ष पर पहुंच कर । 

लड़की के चले जाने के बाद दोनों पेड़ उसी की चर्चा करने लगे थे , लाल फूल वाला पेड़ कह रहा था कि आजकल की युवती युवक को सालों लगते हैं समझने में प्रेमी प्रेमिका में जो अच्छा लगता है पति पत्नी में नहीं स्वीकार कर पाते हैं । उनको पति चाहिए जिस के पास ऐशो आराम सुख सुविधा और खूबसूरत आमदनी का साधन उपलब्ध हो कोई आर्थिक भौतिक कमी नहीं होनी चाहिए , बेशक प्यार की करने की फुर्सत तक नहीं मिले । शायद इस लड़की के माता पिता ने कोई ऐसा लड़का ढूंढ लिया है जिस से शादी करने को ये हामी भर देगी और प्रेमी से किसी अगले जन्म में मिलने की बात कह भूलने भुलाने का वादा करेगी , उस लड़के की सोच क्या है कौन जाने । 

अगले दिन सुबह ही उस लड़की अंजलि का प्रेमी साहिल पीले फूलों  वाले पेड़ के पास आया था । बेहद उदास था असमंजस में लग रहा था दिल कुछ चाहता था दिमाग़ कुछ अलग समझाना चाहता था । दुविधा में कोई निर्णय लेना कठिन होता है पेड़ से मुखतिब हो बोला था दोस्त तुम ही बताओ मुझसे कहां भूल चूक हुई जो मेरी प्रेमिका ने कल मुझे प्रेम संबंध को तोड़ने की बात कही है । उसको खुश रखने को क्या क्या नहीं किया अभी तक लेकिन पढ़ाई खत्म कर नौकरी मिली तो अलग शहर में रहने पर तजुर्बा हुआ कि वेतन में गुज़ारा करना है तो खर्चों में कटौती करना ज़रूरी होगा । माता पिता दोस्त कब तक सहयोग कर सकते हैं प्रेमिका को जिस शानदार आरामदायक ज़िंदगी की चाहत है उसे पूरा करने में खुद को भुलाना होगा जीना दुश्वार हो सकता है । ज़रूरतें बढ़ती जाती हैं महीने के आखिर में क्रेडिट कार्ड की सीमा समाप्त हो जाती है , प्रेमिका को समझाना कठिन है और शादी के बाद पत्नी से नहीं कहा जा सकता कि कोई चिराग़ नहीं होता जो मांगने पर असंभव को भी संभव करे । अंजलि प्यार भरे सपनों की बात सुनना चाहती है समझना नहीं चाहती कि जीवन सपना नहीं कठोर वास्तविकता है । 

          आप से दोस्त की तरह सच बता रहा हूं कि मुझे नहीं मालूम ज़िंदगी में प्यार महत्वपूर्ण है या फिर व्यावहारिकता से निर्णय लेना चाहिए । मुझे बड़ा भाई समझाता है कि अपने साथ दफ़्तर में नौकरी करने लड़की से संबंध बना लेना चाहिए उसे लगता है वो भी ऐसा चाहती है तभी मुझ से अपनी ज़िंदगी की बातें करती है । दोस्ती प्यार की  शुरुआत हो सकती है शायद वो दफ़्तर की साथी यही चाहती है मैंने महसूस किया है लेकिन अंजलि को लेकर जैसा होता है वो भावना नहीं लगती मुझे । लेकिन मेरा यकीन है कि वो जीवन की वास्तविकता को समझती है और अच्छी पत्नी साबित होगी । क्या मैं अंजलि से संबंध तोड़ कर उस कार्यालय सहयोगी से गंभीरतापूर्वक विवाह करने को संबंध बनाने की पहल कर सही करूंगा जब खुद अंजलि भी यही सोचती है । शायद हम दोनों का प्यार अपनी परिणीति तक नहीं पहुंच सकता है । अपने चाहने वाले की इच्छा पूरी करना , ये भी प्यार ही तो है ।  अब लगता है तुम दोनों लाल फूल और पीले फूल अलग अलग क्यों हुए होंगे । मुझे भी हालात को समझ यही निर्णय स्वीकार कर दूर से ही प्यार को देखना  उसकी महक को ज़िंदा रखना होगा । जैसे ही साहिल ने ये बात कही पेड़ से इक फूल उसकी झोली में आ गिरा था । उसकी चिंता दूर हो गई थी ज़िंदगी को इक मोड़ देना था खूबसूरत छोड़ने से नई शुरुआत करने के लिए ।
 
 Sahir Ludhianvi Nazm Chalo Ek Baar Phir Se Ajnabi Ban Jayein - Amar Ujala  Kavya - टूटे हुए दिलों को ख़ूबसूरत मोड़ देती है साहिर की यह नज़्म
 
     

सितंबर 11, 2024

दिलदार से तौबा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

                  दिलदार से तौबा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

शादी - विवाह जन्म जन्म का बंधन होता है अक़्सर सात जन्मों की भी चर्चा होती है लेकिन ये पहला है कि आख़िरी भगवान भी नहीं बता सकता हां उम्र भर साथ निभा सकें तो उतना भी काफी है लेकिन खुश रह कर । कुछ प्रेम विवाह करते हैं कुछ दो परिवार मिलकर आपसी तालमेल से व्यवस्थित ढंग से कुंडली इत्यादि मिलाकर विवाह करवाते हैं लड़के लड़की को आपस में मिलवा कर समझ कर उनसे पूछ कर निर्धारित करते हैं । विवाह जैसा भी हो नतीजा वही होता है समझ विवाह होने के बाद आती है ये वास्तविकता कि शादी के बाद हर लड़की केवल पत्नी और हर लड़का केवल पति बन कर रह जाते हैं । पति - पत्नी दोनों शब्द एक समान प्रतीत होते हैं जबकि दोनों का भाग्यफल कभी एक जैसा नहीं हो सकता है । घर परिवार गृहस्थी की गाड़ी इन दो पहियों पर चलती है संतुलन कायम रखना पड़ता है । पत्नी को इक विशेष अधिकार हासिल होता है कि वो अपने पति को हर दिन बताती रहे कि उस में क्या क्या खामियां हैं शायद उसको पहले से मालूम होता है कि अपने जैसा काबिल समझदार जीवनसाथी इस जन्म में मिलना संभव नहीं । जैसा भी उपलब्ध है उसे ही सुधारना है उम्र भर अगले जन्म सही पति मिल सके इस कामना से । अपने पति की अच्छाई को भी नासमझी और मूर्खता साबित करना पत्नी का दायित्व होता है ऐसा उसको कोई समझाता नहीं बल्कि खुद ब खुद उसे ऐसा परमज्ञान प्राप्त हो जाता है । दार्शनिक जैसे लोगों ने बताया हुआ है कि विवाहित जीवन में सही तालमेल बिठाने को इस बात को स्वीकार करना आवश्यक होता है कि सभी अच्छे गुण पत्नी में हैं और हर पति अवगुणों की खान है । समझदार पति हमेशा विनती करता रहता है ' मेरे अवगुण चित न धरो ' । 
 
भगवान की तरह पत्नियां अपने पति की इस विनती को कभी सुनती नहीं हैं । अपने पति परमेश्वर की गलतियां ढूंढ कर उसे प्रताड़ित कर पत्नी मानती है कि उसे पति से अथाह प्रेम है जान से बढ़कर चाहती है उसको । वास्तव में इस गूढ़ रहस्य को कभी कोई नहीं समझ पाया है कि जो व्यक्ति किसी काम का नहीं लगता उसी से सभी काम बढ़िया ढंग से करवाने की आकांक्षा रखते हैं । विवाह कोई गलती नहीं भूल नहीं कोई गुनाह भी नहीं तब भी ऐसा करने की सज़ा दोनों को मिलती अवश्य है । बड़े बज़ुर्ग कहते हैं कि पति पत्नी का रिश्ता प्यार का कम तकरार का अधिक होता है प्यार घट भी सकता मगर तकरार कभी कम नहीं होती ख़त्म हो नहीं सकती बढ़ती ही जाती है । विवाहित युगल में झगड़े होना हैरानी की बात नहीं होती चिंता तब होती है जब दोनों तंग आकर चुपचाप रहने लगते हैं । ये खतरा है आने वाले तूफ़ान का संकेत है जिसे अनदेखा करने पर नौबत अलग अलग रहने की चाहत में तलाक तक पहुंच सकती है जिस से संतान और परिवार का ढांचा बिगड़ सकता है । समझौता दोनों को करना पड़ता है सामाजिक पारिवारिक संबंधों को कायम रखने के लिए । 
 
संबंध मधुर होना अच्छा है कभी थोड़ा नमकीन भी चलता है , खट्टा - मीठा ठंडा गर्म अपनी अपनी जगह उचित होते हैं मगर जब बात कड़वाहट या तीखा असहनीय हो जाये तब वातावरण बोझिल होने लगता है । ऐसे में किसी एक को गलती नहीं करने पर भी क्षमा याचना करनी पड़ती है और जो झुकता है वही सच में समझदार होता है । तोड़ना आसान जोड़ना कठिन होता है , शादी विवाह इक ऐसी पहेली की तरह है जो लगती आसान है लेकिन कोई भी हल नहीं कर सकता बस इस बात की कठिनाई है । मान्यता है कि जो समझदार होते हैं पति पत्नी उन से अच्छा कोई दोस्त नहीं हो सकता लेकिन जो नासमझ होते हैं वो किसी खतरनाक दुश्मन से भी खराब होते हैं । दाम्पत्य जीवन में खबर नहीं होती कि कब कौन दोस्त नहीं दुश्मन की तरह आचरण करने लगता है जो सही शिष्टाचार को नहीं समझे उस दिलदार से तौबा करना उपाय होता है । 
 
 अब तक की सबसे छोटी शादी? शादी के 3 मिनट बाद ही कपल का तलाक - PUNE PULSE
 

तौबा प्यार से तौबा ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

         तौबा प्यार से तौबा ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

कोई झूठ नहीं कल्पना की नहीं सच और असलियत की बात करते हैं लोग हर बात पर मुझे तुझसे है प्यार कहते हैं । किसी के इनकार को भी छुपा हुआ इकरार कहते हैं जाने किस तरह जिया तेरे बिन बेकरार होता है इक उम्र में यही इंतिज़ार होता है । कोशिश करते हैं जो जाने क्या नसीब होता है जो ख़्वाब देखते हैं मिलन होगा कभी किसी से हाल उनका अजीब होता है । हमने कई बार अपने जज़्बात को संभाला है ऐसा कोई रोग जानकर नहीं पाला है दोस्तों को देखा है सिगरेट पीते नशे में हाल ए दिल बताते सुराही खाली टूटा प्याला है । आख़िर सभी ने समझाया है जब भी इश्क़ किया धोखा खाया है ये स्वर्ग नर्क संग संग हैं खोया है खुद को नहीं बदले में कुछ हाथ आया है । प्यार मृगतृष्णा है चमकती हुई रेत लगती प्यासे को पानी है प्यास बुझती कभी नहीं जान इक फरेब को सच समझते जानी है । 
 
क्या बला है ये प्यार हमने तो कभी नहीं देखा किसी से प्यार मिला नहीं किसी से प्यार किया भी तो बर्बाद हुआ खुद अपना जहां जाएं तो जाएं कहां । आपने भी देखा तो नहीं कभी सच बताओ फिर क्यों अपने को ही दिलासा देते हो वो समझेगा दिल की बात इक दिन । क्यों समझते हैं लोग प्यार बिना ज़िंदगी बेकार है क्या प्यार कोई मीठा मिष्ठान है या लज़ीज़ अचार है समझोगे तो ये भी कोई इश्तिहार है जिस में कितनी शर्त हैं बंदिशें हैं घाटा निश्चित है अजब कारोबार है । दुनिया भर में लोग ज़िंदा हैं जिनको कभी किसी से प्यार मिला ही नहीं सबको मिलता तो इस जहां में सिर्फ और सिर्फ प्यार होता , ग़ालिब कहते हैं कि ख़ुशी से मर न जाते अगर एतिबार होता । प्यार मिलता तो ज़रूर है लेकिन किताबों कहानियों किस्सों में अथवा आधुनिक बदले ढंग वाले स्वरूप में टीवी सीरियल फ़िल्मी अंदाज़ में । कमाल है जिस से नफरत तकरार होती है उसी से बाद में जान से भी बढ़कर प्यार हो जाता है । प्यार अंधा ही नहीं पागल भी है जो खलनायक अपशब्द अनुचित आचरण करने वाले पर कुर्बान होने को ख़ुशी से तैयार हो जाते हैं । सुना था प्यार ख़ामोशी का नाम है त्याग का नाम है जिससे प्यार करते हैं उसके लिए हद से गुज़रने की बात है , चुप चाप आंसू बहाने खुद ही इक आग में जलते हैं , लेकिन आजकल डर छल कपट झूठ किसी भी तरीके से किसी को अपना बनाने को प्यार समझते हैं और अगर नहीं मिले तो क़त्ल तक करने को प्यार का पागलपन बताते हैं । सोचना कितना खुदगर्ज़ कितना भयानक नफरत से भरा दिल दिमाग़ ऐसा वहशीपन करता है जिसे प्यार नाम देना अपराध है ।    
 
आप कहते कि रोटी हवा पानी बिना ज़िंदा नहीं रहा जाता तो मैं मान भी लेता हालांकि लोग इनके बगैर भी जीते हैं कोई मानेगा नहीं इतना अवश्य मानोगे कि फ्रिज टीवी और स्मार्ट फोन बिना भी लोग ज़िंदा रहते थे और अधिक ख़ुशी से चैन से जीते थे मगर अब इन से ऐसा रिश्ता बन गया है कि दुनिया घर बार छूट जाए बस ये साधन सुविधाएं मिलती रहें तो मौज ही मौज है । बिजली और इंटरनेट नहीं थे तब भी दुनिया थी सभी कुछ शानदार था अब पल भर इनके बिना रहना आफत लगती है । अब सभी की सबसे अधिक चाहत यही हैं जिनका भावनाओं से कोई सरोकार नहीं भौतिकता महत्वपूर्ण है । प्यार नहीं बेबसी है मज़बूरी है कोई ऐसा प्यार किसी से महसूस नहीं करता कि उस के बगैर क्षण भर भी चैन नहीं आता हो । मशीनों से लगाव उनकी ज़रूरत को मुहब्बत नहीं विवशता कहते हैं , रिश्तों में आजकल ऐसा नहीं दिखाई देता कोई करीब नहीं रहता तो कितना कुछ और होता है । किसी की याद में ज़िंदगी बिताना कौन करता है सफर चलता रहता है हमराही हमसफ़र हमदर्द बदल जाते हैं बिछुड़ने का एहसास थोड़ी देर बाद खो जाता है । 
 
कहते हैं इश्क़ प्यार आदमी को दीवाना बना देता है मजनू बना देता है , दर्द के सिवा कुछ नहीं हासिल होता है लेकिन इक गीत है कि किसी ने बर्बाद किया फिर भी कहते हैं इल्ज़ाम किसी और पर जाए तो अच्छा होगा । हमको तो प्यार का अंजाम कभी खूबसूरत दिखाई नहीं दिया ज़माने में इसलिए उस डगर पर कभी नहीं जाना तय कर लिया है । तौबा मेरी प्यार से तौबा सौ बार तौबा । जिस प्यार में ये हाल हो उस प्यार से तौबा । 

Tauba Tauba Tauba |तौबा तौबा तौबा |Geeta Dutt |Passport 1961 |Bollywood  Famous Old Song| Nupur Audio
 

सितंबर 07, 2024

बेटिकट का सुःख दुःख ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

         बेटिकट का सुःख दुःख ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

चाहने से सभी कुछ हासिल नहीं होता है कीमत चुकानी पड़ती है दुनिया में हर चीज़ की मगर कुछ चीज़ें जो अनमोल नहीं भी होती कोशिश करने पर भी हर किसी को हासिल नहीं होती मानव के खुश होने निराश होने का आधार प्रतीत होती हैं । बस या रेलगाड़ी में बिना टिकट यात्रा का अनुभव अलग अलग होता है लेकिन चुनावी खेल में टिकट नहीं मिलने पर मैदान में उतरना सभी को नहीं आता है । संसद चुनाव में जिस दल की सरकार बनने की संभावना दिखाई देती है उस का टिकट मोक्ष से बढ़कर लगता है तो राज्य के चुनाव में किसी विधानसभा चुनाव में स्वर्ग का द्वार खुलता लगता है । राजनेताओं की कहानी की विडंबना यही है कि पल भर में ऊपर से नीचे पहुंच जाते हैं जबकि नीचे से ऊपर जाने में सौ खतरे उठाने पड़ते हैं ज़िंदगी का सभी कुछ दांव पर लगाना पड़ता है । नेता गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं मगरमच्छ की तरह आंसू बहाते हैं अक़्सर लेकिन कभी कभी बेबसी में भी आंखें भर आती हैं आंसू छलक आते हैं । टीवी वाले कराह पड़ते हैं कहते हैं आप क्यों रोये रोयें आपके दुश्मन जनता है रोती रहती है , रुलाने वाला खुद रोने लगता है तो लगता है जैसे उनके अश्क़ चांद तारों को डुबो देंगे और फ़ना हो जाएगी सारी खुदाई , आप क्यों रोये । ये नज़ारा देख कर इक पुरानी रचना याद आई है विषय अलग है शीर्षक को छोड़ कुछ भी मेल नहीं खाता फिर भी जो कभी अप्रकाशित रही उस से लेखक का मोह जाता नहीं है । रचना है बेटिकट यात्रा का सुःख बहुत पहले नवभारत टाइम्स अख़बार में छपी थी । पेश है वही शुरुआत और अंत आधुनिक संदर्भ में नया है । 
 
कुछ लोग बेटिकट यात्रा का जोखिम उठा लेते हैं , पकड़े गए तो दस गुणा जुर्माना या कैद का विकल्प होता है जबकि कुछ लोगों को अधिकार मिला होता है कि वो बिना टिकट यात्रा कर सकते हैं । साहित्य अकादमी का निमंत्रण पत्र मिलता है जिस में लेखक को आने जाने का किराया देने की बात के साथ इक और बात भी लिखी होती है कि जिनको सरकार से मुफ्त यात्रा की सुविधा मिली हुई है उनको ये राशि नहीं दी जाएगी । पुलिस विभाग का परिवहन विभाग से झगड़ा चलता रहता है मगर पुलिस विभाग और परिवहन विभाग के परिवार से संबंध रखना टिकट नहीं लेने का आधार और अधिकार रहता है । पत्रकारों की बात अलग है उनको इतना नहीं बहुत कुछ और चाहिए जिस की कोई सूचि बन नहीं सकती पत्रकार होने का तमगा पास हो तो कोई कठिनाई रास्ते में नहीं आती है । नेता अधिकारी सभी खुद उपलब्ध करवाते हैं जो भी चाहो यही इक कार्य है जिस में मनचाही मुराद पूरी होना अनिवार्य शर्त है । हरियाणा में हमेशा कोई शुरुआत होती है कुछ साल से महिलाओं को सरकारी बस में राखी के दिन बिना टिकट यात्रा का प्रावधान किया गया है जो शायद महिलाओं को कुछ अनुभव भी करवाता है निःशुल्क कुछ मिलना मुसीबत भी लगता है । हरियाणा की राजनीति बाहरी तो क्या हरियाणवी लोग भी समझ नहीं पाए कभी । हरियाणवी लोकतंत्र लठतंत्र नहीं न ही प्रजातंत्र जैसा है ये पारिवारिक विरासत का बोझ है जिसे जनता को ढोना पड़ता है विवश होकर ।
 
इक घटना पुरानी है नाम को छोड़ देते हैं , रेल मंत्री के सास ससुर बिना टिकट यात्रा करते पकड़े गए । इस में उनको कोई गलती नहीं थी बस अपनी बेटी दामाद को पहले बताते तो टिकट पूछना तो दूर है रेलवे स्टेशन पर अधिकारी हाल चाल जानने सुविधा उपलब्ध करवाने को तैयार रहते । रेलवे विभाग परिवहन विभाग को नेताओं के परिवार के सदस्यों की जानकारी मिलनी चाहिए । किसी माई के लाल में हिम्मत नहीं जो पत्नी से ये कहे की तुम्हारे मायके वालों ने मुझे कितनी मुसीबत में डाल दिया है , हद से हद यही कहते हैं कि अपने मायके वालों से कह दें कि कोई यात्रा करनी हो तो मुझे पहले बता दें ताकि उनको आसानी होगी । हमारे राज्य में बात बिल्कुल अलग है जब भी जो भी नेता सत्ता में होता है बाप भाई चाचा ताऊ साला बहनोई मामा से दूर के नाते वाले रिश्तेदार होने का ढिंढोरा पीटते रहते हैं , हर दिन हर किसी को धमकाते हैं जानते नहीं मैं कौन हूं । शहर गांव गली सभी उनको इसी तरह जानते हैं अन्यथा कोई उनकी पहचान नहीं होती है । मेरे शहर  में आधे लोग ख़ास इसी कारण समझे जाते हैं बाकी आधे बाप दादा की ज़मीन जायदाद से जाने जाते हैं अन्यथा वह लोग शून्य ही होते हैं । लॉटरी पर कभी प्रतिबंध लगाया जाता है कभी सरकार खुद यही करती है लेकिन लॉटरी का टिकट खरीदना आदत होती है आसानी से धन कमाने की आजकल नाम बदल कर करोड़पति बनने का शो या ऐप्प्स पर जाल फैंकने में कौन शामिल नहीं है ।  
 
चुनाव में टिकट मिलने से जीत होना ज़रूरी नहीं है फिर भी शासक दल की टिकट मिलना आर्थिक रूप से लाभकारी होती है इसलिए भले लग रहा हो सरकार नहीं बनने वाली तब भी टिकट मिलने को कोई कोशिश छोड़ते नहीं है । दल से मिलने वाली धनराशि का कोई हिसाब किताब नहीं होता जैसे जब सरकार बनने का भरोसा होता है तब पैसे दे कर भी टिकट खरीदी जाती है । कई नेता पहले करोड़ों देते हैं टिकट पाने को अगली बार दल वाले टिकट देते हैं साथ कई गुणा धनराशि भी चुनाव लड़ने को । मगर कुछ बदनसीब होते हैं जिनको दल फिर से टिकट नहीं देता क्योंकि उसकी जगह कोई और अपनी शतरंज पहले बिछा चुका होता है । राजनीति की यात्रा में भी सावधानी रखना ज़रूरी है अन्यथा दुर्घटना घटते देर नहीं लगती है । ताश की बाज़ी में पत्तों की तरह सही पत्ते मिलना टिकट कब किस से मिला इस पर निर्भर करता है । निर्दलीय चुनाव लड़ने में जीत कर तभी अहमियत बढ़ती है जब किसी को भी पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हो तब घोड़ा मंडी में हर नस्ल की कीमत बराबर समझी जाती है । आज़ाद उम्मीदवार त्रिशंकु विधानसभा में नायक होते हैं ।   
 
 Haryana Election 2024: कांग्रेस में दागी और दो बार चुनाव हारने वालों का  कटेगा पत्‍ता; पार्टी किन नेताओं को देगी टिकट? - Haryana Election 2024  Congress will not give tickets to ...

सितंबर 04, 2024

रंग बदलती दुनिया ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

      रंग बदलती दुनिया ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

  चुनावी राजनीति की बात है मौसम रंगीन है ,  नज़र आये चाहे कुछ भी समझ नहीं आये नज़ारा हसीन है । संख्या अनगिनत है चुनाव में सभी मैदान में उतरने को तैयार हैं जिस भी दल से टिकट मिल जाए उसे लेकर विचार बदल जाते हैं । जीत हार बाद की बात है अवसर मिलने की बात है कितनी हसीं मुलाक़ात है चांद भी है और उनका साथ है वाह भाई वाह क्या बात है । फूल है हाथ में , हाथ छोड़ना नहीं , ऐसा जज़्बात है इक यही खेल है जिसमें होती करामात है बिन बादल बरसती नोटों की बरसात है । हमारा देश और समाज कभी चलता था सोच समझ कर कुछ सार्थक पहले से बेहतर बनाने की दिशा में कोशिश करते हुए । लेकिन अब लगता है जैसे हम ठहर गए हैं किसी तालाब के पानी की तरह बहना दरिया नदिया की तरह भूल गए हैं । जिसे भी देखते हैं खुद की खातिर कोई अवसर ढूंढता है अन्य सभी को पीछे छोड़ आगे बढ़ना चाहता है , इक कारवां था जिस में तमाम लोग शामिल थे उसे बिखरने दिया मतलब की खातिर । भीड़ है फिर भी हम सभी अकेले ही नहीं अजनबी लगते हैं खुद को भी पहचानना कठिन लगता है । चर्चा बहुत होती है सार्थक संवाद नहीं होता है क्योंकि विचार विमर्श करते हुए भी हमारा ध्यान निष्कर्ष को लेकर नहीं उसका हासिल क्या हो सकता है हमें ऊपर ले जाने के लिए इस की चिंता रहती है । 

सभी को इक छलांग लगाकर शिखर पर पहुंचना है सत्ता हथियानी है लेकिन सत्ता का उपयोग कर देश समाज को कोई दिशा देनी है ऐसा कभी सोचते ही नहीं । अर्थात हमारे पास सब कुछ हो सिर्फ खुद के लिए ऐसा संकीर्ण मानसिकता का समाज बन गया है । और ये इक राजनीति की बात नहीं है शिक्षा स्वास्थ्य धर्म से न्याय व्यवस्था सुरक्षा प्रणाली प्रशासन तक सभी ईमानदारी से कर्तव्य निभाना छोड़ मनमानी करने लगे हैं । विडंबना है कि बावजूद इस के सभी मानते हैं हम देश और समाज की सेवा करते हैं जबकि लूट का कारोबार करने में इक होड़ सी लगी है । कारोबार व्यौपार उद्योग से लेकर सिनेमा टीवी चैनल लेखन तक हर कोई सही राह से भटक गया है आईना बेचने लगे हैं दर्पण को देखते नहीं हैं । बारिश में जैसे मेंढक टरटराने लगते हैं हम सभी की आदत बन गई है रोज़ किसी बदले विषय पर बातचीत करते हैं । कोई गिनती नहीं रोज़ कुछ न कुछ नया होता है नव वर्ष से लेकर त्यौहार या खास अवसर ही नहीं महिला दिवस बाल दिवस स्वतंत्रता दिवस गणतंत्र दिवस से तमाम दिन निर्धारित हैं किस दिन हिंदी की बात करनी है कब संविधान को लेकर कुछ कहना है । बस उस दिन उस अवसर को छोड़ कभी किसी की चिंता करना अनावश्यक लगता है , सभाओं में भाषण भी इक सिमित परिधि में देते हैं सुनते हैं और अधिकांश औपचारिकता निभाते हैं कोई प्रभाव नहीं छोड़ते इस कदर खोखले हो गए हैं । 

कोई चित्रकार इक चित्रकारी करते हुए कितने रंगों का उपयोग करता है अपनी बात को अभिव्यक्त करने को अब लगता है तस्वीर खूबसूरत नहीं डरावनी लगती है । दोष तस्वीर का रंगों का नहीं है जो सामने दिखाई देता है उसी को दर्शाना होता है । आज इस रचना में भी बात निराशा की नहीं है अंधकार ही अंधकार है हर तरफ और कहीं कोई आशा की किरण नहीं दिखाई देती तो उस बेबसी का दर्द झलकता है शब्दों में सिर्फ कल्पना लोक में जीना संभव नहीं रचनाकार के लिए । मुझे जिस सुंदरता की चाहत है लाख कोशिश करने पर भी उसका कोई निशान कोई सिरा मिलता नहीं है तो महसूस होता है भटक गए हैं अब फिर से उसी जगह से नई शुरुआत करनी होगी जिस मोड़ से हमने राह बदल ली थी भटक गए हैं । वक़्त लौटता नहीं कभी भी तब भी सफ़र में जब समझ आये कि मंज़िल नहीं दिखाई दे रही तो सोच समझ कर इक मोड़ लेना ज़रूरी है । नहीं तो चलते चलते थक कर सोना हमेशा हमेशा के लिए नियति बन जाएगी । उलझी हुई तस्वीर है बिगड़ी हुई तकदीर है टूटी हुई शमशीर है शिकारी खुश निशाने पर है घायल हुआ हर तीर है ।
 
 
Die Geheimis der Kletterkünstler: Lianen leisten Wäldern unschätzbare  Dienste - [GEO]