ज़िंदगी तू बेवफ़ा क्यों है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
ज़िंदगी तू बेवफ़ा क्यों है
मौत भी रहती खफ़ा क्यों है ।
बेगुनाहों को सज़ा देना
इस जहां का फ़लसफ़ा क्यों है ।
क्यों इनायत है रकीबों पर
और हम से ही जफ़ा क्यों है ।
तू ही क़ातिल भी मसीहा भी
बेवफ़ा तुझसे वफ़ा क्यों है ।
ऐतबार सबके मिटा देना
ये ही "तनहा" हर दफ़ा क्यों है ।
1 टिप्पणी:
बहुत सुकून मिला आपका ब्लॉग देख कर| पुराने दिनों की याद आ गई जब चिटठाजगत नाम का वेबसाइट भी हुवा करता था|
दिल को छू देने वाला लेख|
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