अजनबी लोगों में मुझको मेहरबां की तलाश है ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया " तनहा "
अजनबी लोगों में मुझको मेहरबां की तलाश है
प्यार की दौलत हो जिस में उस जहां की तलाश है ।
छोड़ गलियां गांव की जो आ गया शहर भूल से
खो गया है भीड़ में उस बदगुमां की तलाश है ।
दोस्तों को नाम लेकर कब बुलाते हैं दोस्त भी
आईने जैसे किसी इक हमज़ुबां की तलाश है ।
कुछ मुसाफ़िर हैं जिन्हें खुद मंज़िलें ढूंढती रहीं
और ऐसे लोग भी जिनको मकां की तलाश है ।
मौसमों से मिट गए हैं काफ़िलों के निशान तक
पर सभी को आज तक उस कारवां की तलाश है ।
पूछती सब से सड़क की लाश बस ये सवाल है
क़त्ल होना था हुआ क्योंकर निशां की तलाश है ।
गुफ़्तगू आवाम से करनी है "तनहा" निज़ाम ने
दाद दे हर बात पर उस बेज़ुबां की तलाश है ।
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