बेहयाई हुनर हो गई है ( भली लगे या लगे बुरी ) डॉ लोक सेतिया
अधिक विस्तार में नहीं जाकर फिर से बताना है 2002 में लिखा लेख कादम्बिनी के फरवरी अंक में छपा था , आज तक का सबसे बड़ा घोटाला। सरकारी विज्ञापन की ही बात थी और आंकड़े देकर बताया था कि पिछले पचास साल से तब तक जितना धन इस तरह से खर्च नहीं बर्बाद कहने से भी आगे बढ़कर कह सकते हैं टीवी अख़बार वालों को खुश करने अपने प्रभाव में रखने को सभी घोटालों की धनराशि से अधिक कुछ मुट्ठी भर लोगों को फायदा पहुंचाने को किया जाता रहा सभी सत्ताधारी लोगों द्वारा। मुझे याद है जो आज सत्ता पर काबिज़ हैं तब उनको मेरी बात सौ फीसदी सही लगी थी , मगर शायद उन्हीं की सरकार ने पिछली सभी सरकारों को बहुत पीछे छोड़ दिया है। पहले बात अपने आलोचना से बचना भर था जो आज उस से बहुत खतरनाक बढ़ कर चुनावी जीत का साधन बना लिया गया है। आज सत्ताधारी दल के नेता मानते ही नहीं दावा करते हैं कि चुनाव सोशल मीडिया के दम पर उसका सहारा लेकर लड़ना है और जीतना है। आपको इस का अर्थ समझना होगा। बीस साल में राजनीति बदलते बदलते बदकार हो गई है उनकी जीत जनता की हार हो गई है काठ की हांडी बार बार चढ़ती है चमत्कार होते होते झूठ वाला इश्तिहार हो गई है। सरकार आदत से लाचार हो गई है नीयत खराब है बदन भला चंगा है बाहर से भीतर से मगर खोखला है जिस्म खूबसूरत सजा है सोच बीमार हो गई है। फूलों ( मूर्ख अंधभक्तों ) को क्या खबर है दुल्हन की डोली जिसे समझ रहे हैं किसी बदनसीब की लाश है ज़िंदा है फिर भी अर्थी तैयार हो गई है।
रैना बीती जाये शाम न आये , निंदिया न आये। गीत गा रही है नायिका जिसको हमदर्दी जतला कर कोठे पर लाया है कोई भलाई की आड़ में कमाई करने वाला। तभी शराबी नायक घर से परेशान भटकता सुरीली आवाज़ सुनकर कोठे की सीढ़ियां चढ़ ऊपर चला आता है। छलिया धोखेबाज़ खुश होकर स्वागत करता हुए कहता है अरे आनंद बाबू आप और इस मंदिर में। कहानी बदली हुई है बिकना बेबस जनता को है बाज़ार सत्ता का है खरीदार बड़े बड़े धनवान लोग हैं। मुजरा राजनीति की वैश्या कर रही है। सरकार ने अपना सभी कुछ जुए की चौसर बिछा दांव पर लगा दिया है। खुद सरकार ने बुलाया है अपने बंधुओं को शकुनि की चालों के साथ जीतने को। ये अंधे राजा की सभा है जिस में कितने अंधे सभी को रास्ता दिखला रहे हैं। जुआ खेलने के फायदे बता रहे हैं टीवी पर शहंशाह करोड़पति बना रहे हैं। जिधर जाना मना है उधर ले जा रहे हैं क़ातिल को चाटुकार मसीहा बता रहे हैं।
1 टिप्पणी:
सार्थक आलेख।
यही सब तो हो रहा है आजकल।
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