जनवरी 06, 2021

गिरते हैं समुंदर में बड़े शौक से दरिया , लेकिन किसी दरिया में समुंदर नहीं गिरता - क़तील शिफ़ाई

 कितने प्यासे खारे पानी के समुंदर ( सच पूरा सच ) डॉ लोक सेतिया 

ये सभी खारे पानी वाले समंदर जैसे हैं जिनमें कितनी नदियां  मीठा जल लिए जाकर मिलती हैं खत्म हो जाती हैं फिर भी समुंदर की प्यास और खारापन मिटता नहीं कभी। सरकार और धनवान लोग जितना लेते हैं लौटाते कभी नहीं उतना , उनका आकार विस्तार दैत्य जैसा विशाल होता है आपने कथा कहनियों में राक्षस की बात सुनकर उसकी छवि मन में बनाई होगी या सिनेमा टीवी सीरियल में देखा होगा। रावण की सोने की लंका इक सपना है सत्ता वालों का उनको जनता को हरना है और अपनी कैद में रखना है। समुंदर में खज़ाना ही नहीं कितने राज़ कितनी लाशें दफ़्न रहती हैं मगरमच्छ देखभाल भरते हैं। सागर कभी सूखते नहीं फिर भी शासक ने ख़ज़ाने की तलाश में सारा पानी पीकर देखा मछलियां मरती रही मगरमच्छ ज़िंदा रहे सागर की मेहरबानी से। छुपा खज़ाना चोरों का मिला नहीं या चुपके से हज़म किया उसी ने। सरकार के पास भले कितना भी पैसा संसाधन और संगठन संसथान हों उसकी चादर पांव को ढकने को सफल कभी नहीं होती। और सरकारी क़र्ज़ चुकाना पड़ता है जनता को। जनता की अग्निपरीक्षा होती रहती है फिर भी उसको अपनी निष्ठा शासन के लिए साबित करनी होती है देश राज्य से बढ़कर सत्ताधारी शासक खुद को महान समझते हैं। देश बदहाल है अर्थव्यवस्था रसातल में पहुंचाने के बाद सत्ता का नशा कम नहीं हुआ सरकार को अपनी राजधानी को सुंदर से लाजवाब शानदार बनाना है। क़र्ज़ लेकर घी पियो कर दिखाना है। गरीबों का क्या है फुटपाथ उनका आशियाना है वहीं जीना और मर जाना है।
 
पर्वत और सागर में फर्क यही है पर्वत हाथ नहीं फैलाता कभी अपनी संपदा पानी नदिया बनकर धरती को जीवन देता है। सागर से सूरज की धूप और हवाओं से खारे पानी से बने बादल को टकराने से बारिश करवा फिर मधुर शीतल जल बना देता है। समुंदर की गहराई में मोती कुछ ख़ास लोगों के लिए आरक्षित हैं जो शासन का अंग हैं या शासक की अनुकंपा जिन पर रहती है। मगर सामान्य नागरिक को समुंदर से फ़ासला रखकर नज़ारा देखने की चेतावनी है क्योंकि कितने तूफ़ान सत्ता की दलगत राजनीती उठाती रहती है। समुंदर की मौजों का कोई ऐतबार नहीं सत्ताधारी नेताओं की नीयत की तरह कब बदल जाती हैं। चुनाव में किनारे खड़े व्यक्ति के कदम चूमने के बाद सत्ता की तेज़  हवाओं से मिलकर डुबो भी देती हैं। 
 
सरकार ने समुंदर से सब हासिल कर लिया है। बंदरबांट का वक़्त है हीरे मोती खाने का सब सत्ता और सत्ता के दलालों को मिलेगा और जनता को कंकर पत्थर सीपियां लेकर खुश रहना होगा। कोई नहीं समझता कि समुंदर की हक़ीक़त क्या है कितनी नदियों ने बड़े शौक से अपना अस्तित्व मिटाकर समुंदर को विशाल बनाया था मगर कभी नदिया में कभी समुंदर नहीं गिरता है। बड़े लोगों को लेना आता है देना जानते नहीं लौटाते हैं कभी तो तबाही लाने को तेज़ तूफ़ान की तरह। ये अनोखी रात है अंधेरी तूफानी रात में सत्ता के जंगल की डरावनी आवाज़ में सुनसान हवेली में लोग इकट्ठे होते हैं और किसी अबला का सौदा उसके बेबस पिता को मज़बूर कर धनवान अपनी दुल्हन बना लेता है। कितनी कहानियां इक रात के अंधेरे में बंद हवेली में शुरू होती हैं खत्म हो जाती हैं। शायद जिस सुबह का इंतज़ार है हम सभी को वो अभी बहुत दूर है ये दिन तो अंधकार भरी भयानक काली रात जैसा है। आपत्काल तो नहीं लौट आया , श्मशान की ख़ामोशी कहती है , है लाश वही सिर्फ कफ़न बदला है।   
 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

2 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

कोई नहीं समझता कि समुंदर की हक़ीक़त क्या है कितनी नदियों ने बड़े शौक से अपना अस्तित्व मिटाकर समुंदर को विशाल बनाया था मगर कभी नदिया में कभी समुंदर नहीं गिरता है।

Sanjaytanha ने कहा…

शासकों की लोलुपता पर तंज करता सुंदर लेख