खुश होना भी ख़ुशी बांटना भी ( फ़लसफ़ा ) डॉ लोक सेतिया
कल किसी ने जानकारी दी थी कोई पिछले कितने सालों से कभी दुखी नहीं हुआ और उसको दुनिया का सबसे खुश व्यक्ति माना जाता है। पिछली बार वो दुखी हुआ था अपने गुरु की मौत होने पर क्योंकि वह इक बौद्ध भिक्षु है और उसने खुश रहने के पांच तरीके भी खोजने का दावा किया है। सुःख दुःख जीवन के दो रंग हैं और अगर कोई कभी दुःखी महसूस नहीं करता है तब उसको ख़ुशी का अनुभव भी नहीं हो सकता है। आपने अगर वास्तव में साधु संतों की बातों को पढ़ा सुना समझा है तो उनकी चिंता उनकी परेशानी उनका दर्दमंद होना अपने खुद के सुख दुःख के कारण नहीं होता था बल्कि आस पास समाज में औरों को बदहाल देख कर उनका हृदय मन आत्मा विचलित हो जाते थे। कोई भिक्षु भगवा वेश धारण कर उपदेश दे सकता है उसको क्या क्या करने से ख़ुशी मिलती है ये उसकी अपनी सोच और पसंद हो सकती है मगर हर कोई उनकी तरह पांच कार्य करने से खुश हो सकता है ऐसा सोचना उचित नहीं है। उनकी पांच बातें हैं सुबह पीले रंग को देखना कोई ख़ास व्यायाम करना साथ अपनी उपलब्धि को सोचते हुए अपने को पसंद व्यक्ति या वस्तु की फोटो पास रखना अखरोट खाना और ठहाके लगाना।
मुझे नहीं लगता दुनिया की तमाम दुविधाओं चिंताओं और समस्याओं का इन से निदान या समाधान संभव है। और अगर आपके आस पास सब खराब घटता दिखाई देता है मगर आपको उसे देख कर कोई दुःख दर्द का अनुभव नहीं होता है तब उसको ख़ुशी नहीं संवेदनहीनता कह सकते हैं। ख़ुशी क्या है उसको समझना उसको ढूंढना और ख़ुशी सभी को बांटना ये वो कार्य है जो केवल साधु संतों सन्यासी भिक्षु ही नहीं हम सभी को करना चाहिए। केवल खुद खुश रहने की बात कहना ख़ुशी को समझे बिना सही नहीं है ख़ुशी उनकी समझाई बातों से मिलती तो बहुत सस्ती होती और हर कोई खुश हो सकता मगर ऐसा है नहीं। खुश रहने को आपके भीतर ख़ुशी होनी ज़रूरी है और ख़ुशी बाजार से खरीदी नहीं जाती बिकती भी नहीं उपजती है आपके अंर्तमन से। ख़ुशी ढूंढने का काम करने से पहले ख़ुशी उपजती किस तरह है इसको लेकर विमर्श करते हैं।
आपको कोई कुछ देता है और आप ख़ुशी का अनुभव करते हैं तो ऐसी ख़ुशी हमेशा किसी को नहीं मिल सकती है बल्कि ये तो आपको बेबस और मज़बूर बना देता है। वास्तविक ख़ुशी पाने वाले को नहीं उसको मिलती है जो सभी को ख़ुशी बांटने का काम करता है बदले में कुछ भी चाहता नहीं है। लेकिन विषय की वास्तविक बात जिस पर चिंतन किया जाना चाहिए वो ये है कि क्या खुश रहना जीवन का मकसद होता है। बहुत लोग ख़ुशी का अनुभव करते हैं किसी भी तरह कुछ हासिल कर के , जीत धन शोहरत या सफलता अथवा ऐशो आराम के साधन जो कभी भी स्थाई होते नहीं हैं। ये ऐसी ख़ुशी होती है जो आप दुनिया को अपनी अहमियत जताने को अर्जित करते हैं। आपने महाभारत सीरियल देखा महात्मा विदुर का किरदार समझा जो सभी को बहुत सार्थक संदेश देने का कार्य करते रहे। कौन किस पक्ष का कौन किस उच्च पद पर आसीन है इसकी परवाह कभी नहीं की। चलो उनकी बताई कुछ बातें जिसे मृत्युलोक के छह सुःख कहते हैं उनको समझते हैं।
पहला सुःख स्वस्थ्य तन , दूसरा सुःख अपनी ज़रूरत की कमाई से गुज़र करना , तीसरी अपने देश में रहना , चौथा निडरता पूर्वक जीना , पांचवा अच्छे लोगों से संबंध रखना और आखिरी अच्छा जीवन साथी और संतान का होना। सोचेंगे तो यकीन होगा इनसे बढ़कर कुछ भी खुश रहने को नहीं चाहिए। लेकिन मेरा मानना है कि केवल खुश रहने को जीवन की सार्थकता नहीं समझा जा सकता है। वास्तविक ख़ुशी सभी के लिए शुभकामना और सुखी जीवन की कामना और एक ऐसा समाज का निर्माण करना जिस में प्यार दोस्ती और मानवता के कल्याण की भावना हर किसी के भीतर हो बनाकर मिल सकती है। शायद ये संभव भी है मगर पहले निजी स्वार्थ और खुद अपने लिए ख़ुशी पाने की सोच को बदलना होगा , ख़ुशी अकेले नहीं सभी से मिलकर हासिल की जा सकती है और अनुभव की जानी उचित है।
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