दिसंबर 19, 2020

गर्दिशे वक़्त है बड़ी गुस्ताख़ , इसने शाहों के ताज उतारे हैं

   किसानों के लिए मीठी लोरी ( उलझन की बात ) डॉ लोक सेतिया 

      उस दिन डरावना सपना देखा था पसीने पसीने हो गए थे। रात को ख़्वाब देखा किसान खेत में पुराने बंद हुए करंसी नोट खाद की जगह डाल रहा और नये दो हज़ार पांच सौ सौ पचास बीस वाले रंगीन नोट की फसल उग रही है। शायद किसान नहीं वही कारोबारी धंधे वाला दोस्त है सोचने पर याद आया कल ही उसने अनुरोध किया था खेतीबाड़ी करनी है नोट उगाने हैं। मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती। मनोज कुमार की फिल्म की बात झूठी नहीं हो सकती अब समझ आया किसान धरती को क्यों इतना महत्व देता है। दोस्त दोस्त नहीं है जान से बढ़कर है इनकार का सवाल ही नहीं। उसकी मर्ज़ी रब की मर्ज़ी दुनिया फ़र्ज़ी की अर्ज़ी क्या खुद्दारी क्या खुदगर्ज़ी। कितने किरदार निभाए हैं अगली फिल्म में किसान बनना है ठान लिया तीन तलाक से बढ़कर कमाल करेगी ऐसी अदाकारी होगी। सुरमाई अखियों में इक सपना दे जा रे। मधुर संगीत होना ज़रूरी है।
 
 बस उसने ज़िद कर ली किसान बनकर अभिनय करना है अपने ख़ास यार से अपनी लिखवाई कहानी के लिए कोई मधुर गीत किसी शायर से उधार मांगने को कहा। बिना अनुमति चुराना कोई कठिन नहीं पर उसको बदलवाना पड़ेगा किसान कोई गायक शराबी पिता की बेटी नहीं है। पिता की जगह अपना नाम शामिल करना है और समझाना है कैसे किसान बनकर नोटों की फसल बोकर काटते हैं। पुराने हज़ार पांच सौ वाले नोट को मटियामेट कर नया बीज दो हज़ार वाला सत्ता की दलदल में बो कर पांच साल में कमाल करना है रंगीन नये नोटों की बहार लानी है। किसान कब से सोया नहीं उसको गहरी नींद में सुलाना है। घर के उजियारे सो जा रे , पापा तेरे जागे तू सो जा रे। जागने से मन की मुरादें नहीं खिलती , ढूंढने से दिल्ली की सीधी राहें नहीं मिलती। मिला नहीं जो तुझे देश में हमारे दे जाएंगे सत्ता के अंधियारे। हाथी घोड़े भालू शेर चीते सारे , नेताओं ने कैसे कैसे रूप धारे। सपनों के खेत की छत पे हैं सितारे , लहलहाते हैं खलियान में नोट भरे गुब्बारे। अंबानी अडानी रिलायंस मिल कर गा रे। आजा पहले आजा पहले पा जा रे। 
 
 सपने बड़े सुहाने होते हैं सपनों के कारखाने होते हैं नये सपने कभी पुराने होते हैं इमली के दाने खिलाने होते हैं। इच्चक दाना बिच्चक दाना दाने ऊपर दाना नायिका शिक्षक है बच्चों को पढ़ा रही है पहेलियां गा रही है। मिर्ची भुट्टा मोर समझा रही थी  छत के ऊपर लड़की नाचे लड़का है दीवाना समझा रही थी। नायक ने आखिरी बंद बनाया सच क्या है सुनाकर समझाया , चालें वो चलकर दिल में समाया , खा पी गया किया है सफाया। तुम भी देखो बच कर रहना चक्कर में न आना। हमने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन ख़ाक हो जाएंगे हम तुमको खबर होने तक। आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक , कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक। दोनों यार मिलकर बैठे हैं पुरानी फ़िल्मों के टुकड़े जोड़ अपनी पसंद की कहानी बनाने लगे हैं। बाहर से किसी ने कह दिया फ्लॉप आईडिया है कब तक पुरानी चीज़ों का कबाड़ा करते रहोगे कभी कुछ अपना मौलिक किया होता। वक़्त वक़्त की बात है कभी कितने नायक सभी को जागने को कहते रहे जागरूक करना अच्छा समझते थे ये जागने नहीं देना चाहते बल्कि सुलाने को लोरी गाकर सपने देखने की सलाह देते हैं। राम करे ऐसा हो जाए मैं जागूं सारा जग सो जाये झूठे ख्वाबों में जनता खो जाये। 
 


1 टिप्पणी:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत उपयोही है वर्तमान में आपका आलेख।