कोरोना आपकी अदालत में ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
फ़िल्मी अभिनेता की मौत का मातम मनाने से फुर्सत मिलते ही टीवी चैनल एक बार दोबारा से कोरोना राग अलापने लगे। जैसे ही इस को लेकर बहस होने लगी कि सत्तर साल में जितना विकास हुआ था उसका भी सत्यानाश हो गया है ये कोई विरोधी नहीं विश्व बैंक के अधिकारी रहने वाले ने कहा है। सरकार ने अपनी बला टालने की खातिर कोरोना को दोषी ठहराने की बात की तो कोरोना को मज़बूर होकर अपनी सफाई देने को सामने आना ही पड़ा। जैसा होता है सब ने देखा है टीवी चैनल वालों को खुद अपनी खबर भले नहीं होती है जिन आंतकवादियों अपराधियों मुजरिमों को पुलिस तलाश नहीं कर पाती उनका साक्षात्कार टीवी वाले दिखलाते हैं। ओसामा बिन लादेन से पहले भी ऐसा होता था उसके बाद ये रिवायत बन गई खुलेआम बताते हैं आज आपको उनसे मिलवाते हैं। रिया को भी अपनी कहानी खुद अपनी ज़ुबानी सुनानी पड़ी क्योंकि बात या असली मामला वही छीना झपटी पैसे दौलत का है। मरने वाले की आत्मा की शांति को श्राद्ध कौन करे बाद की बात है पहले उसका वारिस होना है तो क़ातिल कोई और है कहना ज़रूरी है ख़ुदकुशी करने का इल्ज़ाम कोई अपने पर नहीं लेना चाहता। कोरोना को भी जो अपराध किया नहीं उसका आरोपी बनाया जाना मंज़ूर नहीं है।
पहला सवाल था कोरोना आपको क्यों आना पड़ा इस देश में कोई कमी थी और सब कितना खराब था तुझे आकर पहले से मरे हुए लोगों को मारने की ज़रूरत क्या थी। कोरोना ने कहा मुझे बुलाया गया है बिना बुलाये मुझे इधर नहीं आना था मुझसे खतरनाक और बहुत थे देश की जनता का लहू चूसने वाले। क्या करता मुझे इस शानदार ढंग से नमस्कार करते हुए जान बूझकर बुलावा दिया तो कैसे नहीं आता। क्या आप नहीं जाने उनके बुलाने पर जिनकी हैसियत क्या कमाल की है नामुमकिन को मुमकिन करने वाले से हाथ मिलाना कौन नहीं चाहता है। हाथ मिलाने के बाद हाथ धोने की चर्चा भी अजीब लगती है गले लगाया था हाथ में हाथ भी थामा था कोरोना को जो होना था होना था बस वही कोना था जिस जगह बैठा कोरोना था। उसके बाद हर सरकार हर सत्ताधारी नेता ने खुद मनमानी की कोरोना को फैलाने का काम किया मुझे बदनाम किया खुद नहीं अपना काम किया। कोरोना की लूट की छूट ने उनकी वास्तविकता को सामने ला दिया। मैं जाना भी चाहता था मुझे रोककर अवसर बना दिया मेरे नाम से घर दफ़्तर सब बना लिया।
पहले कहते थे उनसे पहले किसी ने कुछ भी नहीं किया सभी ने लूटा है बर्बाद किया है अब जब सब कुछ खुद अपने हाथ से लुटवा बैठे या लुटवाना चाहते हैं तब अपने गुनाह का दोष मुझ पर लगाना ये तो झूठ की सीमा को पार करने के बाद बेगुनाह को सूली चढ़ाने की बात है। हाथ जोड़कर मुझे बुलाया था अब कहते हैं किस से पूछकर आया था। सच बताऊं तो मैंने उन पर एहसान किया है उनकी गिरती साख की लाज बच गई है मेरे बहाने उनके सर से बला टल गई है। दिल ही दिल से मेरा उपकार समझते हैं जो कभी नहीं समझते थे इस बार समझते हैं कोरोना को लोग खुद उनका नया अवतार समझते हैं। ओ चारागर लोग तुझे सबसे बड़ा बीमार समझते हैं अपने सर पर लटकी हुई तलवार समझते हैं सरकार है बड़ी बेकार समझते हैं तुझ से बढ़कर कोई नहीं लाचार समझते हैं। सबसे बड़े दुश्मन को सब यार समझते हैं इस पार ही नहीं लोग सभी उस पार समझते हैं। जाने है कौन देश का गुनहगार समझते हैं चौकीदार नहीं कोई सौ बार समझते हैं। सच तो है सरकार बहुत खुश है कोरोना वक़्त पे आया है क्या क्या नहीं सरकार ने कोरोना से पाया है कोरोना ने उनको बचाया है ये अवसर उन्होंने जमकर आज़माया है। फितरत है उनकी सितम करते रहे हैं अब झूठा ये इल्ज़ाम कोरोना पे लगाया है ये ज़ुल्म भी देखो सरकार ने ढाया है।
कुछ कहते कहते कोरोना उदास हो गया है उसका इम्तिहान नहीं किसी और का इम्तिहान था जो ज़ीरो नंबर लेकर भी खुश है कोरोना सौ नंबर पाकर पास हो गया है। हर बात जैसे सरकारी मज़ाक हो गया है घोड़ा सत्ता का खुश है हर शख़्स घास हो गया है। अदालत का फैसला नया इतिहास बनाया है इक बेगुनाह को झूठे आरोप लगा मुजरिम बनाया है उसको बाइज्ज़त बरी किया झूठ बोलने वाले पर जुर्माना लगाया है। क्या सरकार को निर्णय मंज़ूर नहीं होगा कोरोना बेकसूर है तो किसी और का कसूर होगा। आखिर वही हुआ जिसका डर था चोरी की है उसी ने खुद जिसका ये घर था। दरवेश कह रहा ये कौन है जो शाहंशाह बन कर आ गया है दौलत सारी दोस्तों को लुटा गया है भीख मांगता था खुद भिखारी सबको बना गया है।
कुछ कहते कहते कोरोना उदास हो गया है उसका इम्तिहान नहीं किसी और का इम्तिहान था जो ज़ीरो नंबर लेकर भी खुश है कोरोना सौ नंबर पाकर पास हो गया है। हर बात जैसे सरकारी मज़ाक हो गया है घोड़ा सत्ता का खुश है हर शख़्स घास हो गया है। अदालत का फैसला नया इतिहास बनाया है इक बेगुनाह को झूठे आरोप लगा मुजरिम बनाया है उसको बाइज्ज़त बरी किया झूठ बोलने वाले पर जुर्माना लगाया है। क्या सरकार को निर्णय मंज़ूर नहीं होगा कोरोना बेकसूर है तो किसी और का कसूर होगा। आखिर वही हुआ जिसका डर था चोरी की है उसी ने खुद जिसका ये घर था। दरवेश कह रहा ये कौन है जो शाहंशाह बन कर आ गया है दौलत सारी दोस्तों को लुटा गया है भीख मांगता था खुद भिखारी सबको बना गया है।
3 टिप्पणियां:
Good very nice sir
हर बात जैसे सरकारी मज़ाक हो गया है घोड़ा सत्ता का खुश है हर शख़्स घास हो गया है।
बहुत खूब
बहुत बढ़िया लिखा है sir मौजूदा मीडिया और हालात पर
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